बीसवीं सदी के आखिर में भूमंडलीकरण (ग्लोबलाइजेशन) की लहर ने हॉलीवुड और बॉलीवुड के बीच कलाकारों के आदान-प्रदान का सिलसिला तेज किया था। दोनों तरफ अपने-अपने दर्शकों का दायरा बढ़ाने के लिए एक-दूसरे के कलाकारों को मौका देना अब जैसे फार्मूला ही बन गया है। हॉलीवुड के कई बड़े सितारे भी बॉलीवुड की फिल्मों में नजर आ चुके हैं। ‘रैम्बो’ सिल्वस्टर स्टैलॉन के साथ ‘सुपरमैन रिटर्न्स के ब्रेंडन रौथ के अक्षय कुमार की ‘कमबख्त इश्क’ में छोटे-छोटे किरदार थे। अक्षय की ही ‘इंटरनेशनल खिलाड़ी’ में ‘ट्रांसफॉरमर्स’ के लेस्टर स्पाइट ने बदमाश का किरदार अदा किया था। आमिर खान की ‘लगान’ में रशेल शैली उनकी मूक प्रेमिका, जबकि पॉल ब्लैकथॉर्न जालिम ब्रिटिश अफसर के किरदार में थे। अमिताभ बच्चन की ‘तीन पत्ती’ में बेन किंग्सले का अहम किरदार था, जो रिचर्ड एटनबरो की ‘गांधी’ में महात्मा गांधी बने थे। ‘डाय अनादर डे’ के लिए मशहूर टॉबी स्टीफन्स ने आमिर खान की ‘मंगल पांडे’ में कैप्टन विलियम कॉर्डन का किरदार अदा किया था।
गौर करने वाली बात यह है कि हॉलीवुड ने किसी भारतीय सितारे को अब तक नायक या नायिका के किरदार नहीं सौंपे। अतिरिक्त आकर्षण के तौर पर उन्हें फिल्मों से जोड़ा गया। उसी तरह, जैसे बॉलीवुड की फिल्मों में आइटम सॉन्ग रखे जाते हैं। कहानी कहीं और दौड़ रही होती है। अचानक फड़कता हुआ आइटम सॉन्ग आता है। इसके बाद कहानी फिर अपनी दिशा में दौडऩे लगती है। ऋतिक रोशन की ‘काइट्स’ अपवाद है, जिसमें मैक्सिकन अभिनेत्री बारबरा मोरी को नायिका बनाया गया, वर्ना बॉलीवुड ने भी जैसे को तैसा पर अमल करते हुए हॉलीवुड के कलाकारों को छोटे-मोटे किरदारों से ज्यादा आगे नहीं जाने दिया।