ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने पाया कि जो लोग अपने परिवार और दोस्तों से नियमित रूप से मिलते रहते हैं उनमें उन लोगों के मुकाबले अवसाद के लक्षण कम पाए गए जो लोगों से फोन या ई-मेल के ज् रिए बात करते हैं।
अध्ययन में यह भी पता चला कि लोगों से आमने-सामने मिलने से होने वाले फायदे काफी बाद तक अपना असर दिखाते हैं। मनोविज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर एलन टिओ ने कहा, यह लोगों को अवसाद से बचाने के लिए अपने खास रिश्तेदारों और दोस्तों से संवाद के तौर तरीके के बारे में मिली जानकारी का पहला रूप है।
टीम ने शोध में पाया कि सामाजिक रूप से मिलने जुलने के सभी तरीके एक समान असर नहीं छोड़ते। टिओ ने कहा, परिवार या दोस्तों के साथ फोन काल या डिजिटल संवाद का अवसाद से बचाने में उतना असर नहीं है जितना प्रत्यक्ष मिलने-जुलने में है।
युनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के लांगीट्यूडनल हेल्थ एंड रिटायरमेंट स्टडी में टिओ और उनके सहयोगियों ने 50 और इससे अधिक उम्र के 11000 व्यस्कों का अध्ययन और परीक्षण किया। अध्ययन करने वालों ने फोन और ई-मेल से लोगों से संपर्क रखने वालों पर ध्यान केंद्रित किया। दो साल तक देखा कि ये कितने अंतराल पर इन जरियों से संवाद करते हैं। उन्होंने पाया कि लोगों से आमने-सामने न मिलने वाले इन लोगों के दो साल बाद अवसादग्रस्त होने की संभावना दोगुनी हो गई है।
अध्ययन में पाया गया कि हफ्ते में कम से कम तीन बार परिवार और दोस्तों से प्रत्यक्ष मिलने वालों में दो साल बाद अवसाद का शिकार होने की संभावना न्यूनतम स्तर पर होती है। जो लोग प्रत्यक्ष तो मिलते हैं लेकिन कम मिलते हैं उनमें इसकी संभावना बढ़ जाती है।