दुष्प्रभाव हैं कई –
लगातार नकारात्मक सोचते रहने से चिंता, परेशानी, चिड़चिड़ापन, रिश्तों में कड़वाहट और जीवन से निराशा जैसी समस्याएं होने लगती हैं। इसी तरह तनाव में रहने की वजह से कई शारीरिक बीमारियां जैसे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हृदय संबंधी रोग, थकान और इंसोमेनिया (नींद न आने की समस्या) आदि होने लगती हैं।
बदलाव लाएं इस तरह –
किसी भी व्यक्ति या चीज के बारे में अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले विचार जरूर करें जैसे यह इतना बुरा नहीं है जितना मैं सोच रही हूं/ रहा हूं।
कुछ नहीं से कुछ ज्यादा बेहतर है।
हमेशा खुद को दोष देने से अच्छा है कि सोचने का नजरिया बदल लिया जाए।
लंबी गहरी सांस लें और रिलेक्स होने की कोशिश करें।
जो भी परिस्थिति हो उसके साथ तालमेल बिठाने का प्रयास करें।
खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करें। पंसदीदा कामों या खेलकूद में मन लगाएं।
लोगों से मिलें, उनकी जगह खुद को रखकर अपने व्यवहार को संतुलित रखें।
जब भी कुछ बढ़िया करें तो खुद की पीठ थपथपाना न भूलें।
अनुभवों को डायरी में जरूर लिखें ताकि अगली बार वैसी परिस्थिति आने पर आप अपनी मदद खुद कर सकें।
ऐसे लोगों से दूरी बनाएं जो नकारात्मक सोच को बढ़ाते हों।
नकारात्मक परिस्थितियां भी बहुत कुछ सिखाकर जाती हैं। उनमें से अच्छी बातें स्वीकार करें और बेकार को दिमाग से निकाल दें।