कई मुद्राएं बना सकते हैं –
चारों अंगुलियों को बारी-बारी से अंगूठे के साथ मिलाने से चार व बारी-बारी से मोड़ने से जो कुल आठ मुद्राएं बनती हैं, उन्हें तत्त्व मुद्राएं कहते हैं। हमारे शरीर में पांच प्राण होते हैं जिनमें असंतुलन होने से कई रोग जन्म लेने लगते है। इन पांच प्राणों के आधार पर पांच प्राणिक मुद्राएं बनती हैं। कुछ मुद्राएं प्राणिक व तत्व मुद्राओं को मिलाकर बनती हैं। लगभग 80 प्रकार की मुद्राएं हैं जो दोनों हाथों में अलग-अलग, दोनों हाथों को मिलाकर एक या प्रत्येक हाथ से अलग बनती हैं। अंगुलियों को आपस में मिलाकर मुद्राएं बनती हैं।
यूं सहायक है –
हमारे हाथों की पांचों अंगुलियों में पांच तत्त्व हैं जिनमें संतुलन जरूरी है। हर अंगुली के ३ हिस्से हैं- शीर्ष, मध्य व मूल। अंगुली के शीर्ष को अंगूठे के शीर्ष भाग से मिलाने से तत्त्व सम होता है। अंगूठे के शीर्ष को अंगुली के मूल से लगाने से शरीर में तत्व विशेष बढ़ता है। अंगुली के मध्य को अंगूठे के अग्रभाग से दबाने पर तत्व घटता है। बाएं हाथ की मुद्रा से दाएं व दाएं हाथ की मुद्रा से बाएं भाग का शरीर प्रभावित होता है।
ये मुद्राएं लाभदायक-
अंगूठे को तर्जनी अंगुली के सिरे पर लगाकर बाकी अंगुलियां सीधी रखें। दिमाग पर सकारात्मक असर होने से याददाश्त, एकाग्रता बढऩे से तनाव दूर होगा।
अनामिका अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग से लगाकर बाकी अंगुलियां सीधी रखें। वजन सामान्य रहेगा व एनर्जी आएगी।
मध्यमा और अनामिका अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग से लगाकर बाकी अंगुलियां सीधी रखें। इससे कब्ज, डायबिटीज, किडनी से जुड़े रोग, वायु विकार, बवासीर में लाभ होगा। साथ ही यह यूरिनरी ट्रैक व दांत से जुड़ी परेशानियां दूर करेगी।