आजादी के बाद 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव से अब तक बिलासपुर लोकसभा सीट पर पुरुष सांसद ही रहे हैं। कांग्रेस ने वर्ष 2009 में रेणु जोगी और 2014 में करुणा शुक्ला को टिकट देकर यहां यह स्थिति बदलने की कोशिश की। लेकिन पार्टी को सफलता नहीं मिली। रेणु जोगी की जीत का अंतर तो फिर भी कम लगभग 20 हजार ही था। लेकिन जांजगीर से सांसद रह चुकीं करुणा शुक्ला रिकॉर्ड 1 लाख 76 हजार वोट से पहली बार चुनावी मैदान में उतरे भाजपा के लखनलाल साहू से चुनाव हार गईं थीं। इसके बाद 2019 और इस बार कांग्रेस ने भी पुरुष प्रत्याशियों पर ही भरोसा किया है।
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राहुल गांधी अपनी जनसभा से कांग्रेस को पहुंचाते है नुकसान, बस्तर दौरे पर बोले CM साय, देखें Video पुरुषों से ज्यादा महिला वोटर बिलासपुर क्षेत्र में महिला वोटर्स संख्या और वोटिंग में पुरुष मतदाताओं से लगभग बराबरी पर ही रहीं हैं। इस बार महिला वोटर्स की संख्या पुरुषों से ज्यादा ही है। लेकिन वोटिंग पैटर्न पुरुष प्रत्याशी के पक्ष में ही जाता है। यही वजह है कि दो बार की हार के बाद कांग्रेस ने भी यहां महिला प्रत्याशी उतारने की हिम्मत नहीं की।
17 चुनावों में 10 बार प्रत्याशी मुंगेली से बिलासपुर क्षेत्र के लिए यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि आजादी के बाद से अब तक हुए 17 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा से 10 बार मुंगेली क्षेत्र से प्रत्याशी मिले। 1977 के सांसद निरंजन केशरवानी, 1989 और 91 के कांग्रेस सांसद खेलनराम जांगड़े, लगातार चार बार जीत चुके पुन्नूलाल मोहले, फिर लखनलाल साहू, वर्तमान डिप्टी सीएम अरुण साव के बाद अब भाजपा प्रत्याशी तोखन साहू भी मुंगेली से हैं।
राजनांदगांव से अब तक एक महिला पहुंचीं लोकसभा महिलाओं को ध्यान में रखकर योजनाएं बनाने वाली राजनीतिक पार्टियां इन्हें टिकट देने को लेकर बचती है। 1962 से अस्तित्व में आए राजनांदगांव में भी अब तक सिर्फ एक महिला रानी पद्मावती ही लोकसभा की दहलीज तक पहुंची है। इसके बाद इस जिले में किसी भी राजनीतिक दल ने यहां महिला को उम्मीदवार नहीं बनाया। इस चुनाव में यहां महिला मतदाता 9 लाख 36 हजार 837 जबकि पुरुष मतदाता 9 लाख 28 हजार 329 है।