जानकारी के अनुसार ट्रेनें चलाने में रनिंग स्टॉफ की भूमिका रेलवे में सबसे अहम है। चालक, सहायक चालक और गार्ड ट्रेनों के परिचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 45-55 वर्ष की आयु के कर्मचारियों को ड्यूटी पर भेजने से पहले अधिकारी दो साल में एक बार पीएमई ( पीरियोडिक मेडिकल एग्जामिनेशन) कराते हैं। साथ ही 55-60 वर्ष की आयु के कर्मचारियों का प्रतिवर्ष परीक्षण होता है, ताकि कर्मचारियों को किसी तरह की परेशानी का सामना करना न पड़े।
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बिलासपुर मंडल के अलावा बिजूरी, सूरजपूर, शहडोल, अकलतरा, रायगढ़, कोरबा समेत आउटर स्टेशनों में पदस्थ कर्मचारियों को रेलवे सेन्ट्रल हॉस्पिटल में जांच कराने के लिए आना पड़ता है। प्रतिवर्ष करीब 8 हजार से अधिक रनिंग स्टॉफ जांच कराने अस्पताल आते हैं। जांच से पहले कर्मचारियों को 3 दिनों का विश्राम जरूरी है। रेलवे की ओर से कर्मचारियों को रुकने की व्यवस्था पहले से की जाती आ रही है जिसमें स्टॉफ रनिंग रूम लॉबी में कर्मचारी ठहरते थे, लेकिन कोराना काल में कर्मचारियों को आराम के लिए जगह नहीं मिल पा रही है।
रेस्ट हाउस में लग गया ताला
पूर्व में जांच कराने पहुंचने वाले कर्मचारियों को आराम करने के लिए रेस्ट हाउस की सुविधा मिलती थी। इसके साथ ही रनिंग लॉबी या साथी कर्मचारियों के घर में कर्मचारी आराम करते थे, लेकिन कोराना काल में बाहर से आने वाले कर्मचारियों के लिए उन्हीं के साथी संक्रमण के डर से घरों के दरवाजे बंद कर दिए हैं। वहीं रेस्ट हाउस और रनिंग लॉबी में भी कर्मचारियों को ठहरने की अनुमति नहीं दी जा रही है और वहां ताला लगा दिया गया है।
यूनियन ने की मांग
श्रमिक यूनियन के केन्द्रीय उपाध्यक्ष सी नवीन कुमार ने कर्मचारियों के विश्राम के लिए स्थान मुहैया कराने की मांग की है। उनके अनुसार रनिंग स्टॉफ का कड़ाई से टेस्ट होता है, जिसमें मेडिकल, एक्सरे, ईसीबी, हार्ट, ब्लड, यूरिन, शुगर और आंखें की जांच होती है। जांच से पहले कर्मचारियों के लिए विश्राम की जगह मुहैया करने यूनियन की ओर से मांग की गई है।