उसने तीन साल तक अपने स्तर पर शोध कर छह लाख रुपए का सामान आदि पर स्थाई निवेश कर पहली फसल भी ले ली है। उसने करीब चार लाख रुपए की केसर बेच दी है। अगली फसल के लिए अब कोई खर्चा नहीं करना पड़ेगा। बल्कि पहली बार प्रायोगिक तौर पर प्रयास सफल रहने के बाद इस बार दोगुणा उत्पादन होगा।एक बार छह लाख का निवेश, फिर हर साल लाखों की कमाई
सुनील ने बताया कि निवेश के छह लाख रुपए भी स्थाई सामान पर है। पहली बार बीज खरीदकर लाने पड़े थे। अब वे भी नहीं लाने पड़ेंगे, बल्कि कई गुणा बीज हर साल तैयार होते रहेंगे। अब सिर्फ एयरोपोनिक तकनीक के तैयार किए कक्ष में तापमान और आवश्यक नमी मेंटेन रखने और फूलों को खिलने के लिए जरूरी यूवी (अल्ट्रावॉयलेट) रोशनी पर खर्च होने वाली बिजली ही लगेगी।
पैदा की गई केसर के विपणन के लिए बाजार भी खूब उपलब्ध है। अभी आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने के काम आने वाली केसर के फूलों की पंखुडि़यां और केसर के नीचे की डोडी को बेचने के लिए खरीददार तलाश रहे हैं। इसके बाद इसी एक कक्ष में सालाना दस लाख रुपए तक आय होने लगेगी।
देश में केसर उत्पादन और मांग पर एक नजर…
– 5 से 7 हजार टन केसर की सालाना डिमांड है देश में
– 5 क्विंटल महज उत्पादन है सर्वश्रेष्ठ कश्मीरी केसर का
– 90 फीसदी केसर का आयात ईरान से हो रहा
– 4 से 5 लाख रुपए किलो बिकती है अच्छी केसर
लॉकडाउन में आया आइडिया, तीन साल की रिसर्च
स्नातकोत्तर तक शिक्षित और किसान परिवार के बेटे सुनील जाजड़ा बीकानेर के चोपड़ाबाड़ी गंगाशहर क्षेत्र में रहते है। उन्होंने बताया कि अप्रेल 2020 में लॉकडाउन के दौरान अपना टायरों का शोरूम बंद हो गया, तब एक वीडियो देखकर केसर की खेती का विचार आया।
केसर की खेती देखी
साल 2021 में श्रीनगर के पम्पोर इलाके में गए। वहां केसर की खेती देखी और कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से बात की। फिर चार-पांच बार थोड़े-थोड़े अंतराल पर श्रीनगर जाकर किसानों से मिलते रहे। केसर की खेती के लिए जरूरी तापमान और नमी आदि की जानकारी जुटाई।
श्रीनगर जैसा क्लाइमेट तैयार
आईटी एक्सपर्ट सुनील पाणेचा की मदद से कमरे में श्रीनगर जैसा क्लाइमेट तैयार किया। चिंलिंग प्लांट, दीवारों पर थर्माकोल लगाकर कक्ष में लकड़ी के फ्रेम बनाए। इस तरह तीन साल की पूरी तैयारी के बाद अगस्त 2023 में कश्मीर से केसर के पौधे की बल्बनुमा जड़ यहां लाकर कक्ष में रखी। नवम्बर में इनकी कपोल पर फूल खिलने के साथ केसर प्राप्त होनी शुरू हो गई।
अब अगले साल की तैयारी
सुनील ने केसर की एक फसल लेने के बाद अब दिसम्बर में ट्रे में बची जड़नुमा बल्ब को कमरे के बाहर 30 गुणा 45 फीट की क्यारी बनाकर मिट्टी में खाद देकर बो दिया है। यह लहसुन और प्याज की तरह उग आए हैं। नौ महीने खाद-पानी देते रहेंगे और मिट्टी के भीतर एक बल्ब से दस से बारह बल्ब बन जाएंगे।
नवम्बर में केसर के फूल
फिर अगस्त में इनको निकालेंगे और एयरोपोनिक तकनीक से तैयार वातानुकूलित कक्ष में ट्रे में रख देंगे। जहां फूलों को खिलाने के लिए यूवी रोशनी के लिए एलईडी लड़ी भी लगी है। कक्ष में सितम्बर, अक्टूबर में रहने के बाद नवम्बर में केसर के फूल खिल जाएंगे।