एफएओ की रिपोर्ट में इस नस्ल के घोड़ों की संख्या 100
डॉ. मेहता ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ के एफ.ए.ओ. की रिपोर्ट के अनुसार दक्कनी यानी भीमथड़ी घोड़ों की संख्या 100 बताई गई है। ऐसी स्थिति में नस्ल का मान्यता संबंधी कार्य लगभग असंभव था। जब यह पता चला की इस नस्ल के घोड़े कुछ घुमक्कड़ जन-जाति के लोगों के पास ही मिल सकते हैं, तो यह कार्य और भी कठिन हो गया। ऐसी स्थिति में पूना, बारामती जाकर एग्रीकल्चर डेवलपमेंट ट्रस्ट के साथ कार्य किया। ट्रस्ट के मुख्य सदस्य रंजीत पवार का साथ महत्वपूर्ण साबित हुआ।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की बैठक में मिली मान्यता
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली में हाल ही में हुई नस्ल पंजीकरण समिति की ग्यारहवीं बैठक में भीमथड़ी नस्ल को मान्यता दी गई। बैठक में बताया गया की राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल को इस वर्ष 66 आवेदन पत्र विभिन्न नस्लों की मान्यता के लिए प्राप्त हुए। इसमें से मात्र 8 नस्लों को मान्यता प्रदान की गई। इन 8 में से भीमथड़ी घोड़े की नस्ल भी शामिल थी।
शिवाजी महाराज के वंशज आगे आए
डॉ. मेहता ने बताया कि इस कार्य में उनके और पवार के साथ सहयोग के लिए क्षत्रपति शिवाजी महाराज के ससुराल पक्ष के वंशज रघुनाथ राजे नाईक निम्बालकर स्वयं आगे आए। क्षत्रपति शिवाजी महाराज के सेना प्रमुख स्वराज्य संग्रामतीलजेधे के वंशज इन्द्रजीत जेधे, जाधव घराने से समीर सिंह जाधव, मालुसरे घराने से रायबा मालुसरे, कंक घराने से सिद्धार्थ कंक, मरल घराने से प्रवीण मरल, इंदलकर घराने से श्रीनिवास इंदलकर, करन्जावने तथा देशमुख घराने से गोरख करन्जावने आगे आए।
इस समय 5134 घाेड़े हैं देश में
इस समय देश में घोड़ों की संख्या 5134 है। इनमें घोडि़यो की संख्या सिर्फ 30 प्रतिशत है एवं बच्चे और भी कम हैं। पशुगणना 2019 के आंकड़े बताते हैं कि प्रतिवर्ष लगभग 9 प्रतिशत घोड़े कम हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में घुमक्कड़ जनजाति के लोगों से अच्छे घोड़ों का चयन करना एवं उनका प्रजनन करवाना एक गंभीर चुनौती है। साथ ही आज के समय में पुनः पारंपरिक तांगा रेस, एन्डुरेन्स रेस, पोलो एवं अन्य प्रतियोगिताओं को इनके संवर्धन के लिए राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करना एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इस नस्ल का पहला शो बारामती पुना में 21 जनवरी को होगा।
यह हैं देश में उपलब्ध घोड़ों की बाकी सात नस्लें
मारवाड़ी, काठियावाड़ी, मणिपुरी, भूटिया, स्पीति, जंस्करी, कच्छी-सिंधी घोड़ा और अब भीमथड़ी।