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बीकानेर

फर्जीवाड़ा की तहसीलदारी: 30 साल बाद रद्द इंतकाल को किया जिंदा, दूसरों के नाम चढ़ा दी वनभूमि

कमेटी की जांच में 28 साल पहले 1995 में उपनिवेशन आयुक्त न्यायालय के जारी आदेशों को अनदेखा करने की पुष्टि हुई है। तहसील प्रशासन छतरगढ़ ने 30 साल पहले जो इंतकाल रद्द किए थे, उस भूमि के आवंटियों के हवाले से अन्य लोगों के नाम इंतकाल दर्ज कर दिए।

बीकानेरJul 25, 2024 / 02:14 pm

dinesh kumar swami

बीकानेर. छतरगढ़ तहसील के चक 2 डीएलएम और 1 आरएसएम में वन विभाग की 1200 बीघा भूमि को राजस्व रिकॉर्ड से गायब करने और 90 बीघा भूमि का फर्जीवाड़ा से इंतकाल करने के मामले की जांच पूरी हो चुकी है। राजस्थान पत्रिका की ओर से गत 13 मई काे रिपोर्ट प्रकाशित कर सरकारी वन भूमि फर्जीवाड़े के इस कारनामे का खुलासा किया गया था। इसके बाद जिला कलक्टर नम्रता वृष्णि ने अधिकारियों की कमेटी को जांच सौंपी।

कमेटी को जांच में यह मिला

कमेटी की जांच में 28 साल पहले 1995 में उपनिवेशन आयुक्त न्यायालय के जारी आदेशों को अनदेखा करने की पुष्टि हुई है। तहसील प्रशासन छतरगढ़ ने 30 साल पहले जो इंतकाल रद्द किए थे, उस भूमि के आवंटियों के हवाले से अन्य लोगों के नाम इंतकाल दर्ज कर दिए। इसके लिए न्यायिक प्रक्रिया अपनाकर सुनवाई करने की बजाए प्रशासनिक आदेश जारी कर यह फर्जीवाड़ा कर डाला। इसी के आधार पर पटवारियों ने चक 1 आरएसएम में वन विभाग की 90 बीघा भूमि के निजी लोगों के नाम इंतकाल दर्ज कर दिए। जांच कमेटी ने प्राथमिक तौर पर छतरगढ़ में रहे तहसीलदार और पटवारियों की फर्जीवाड़ा में लिप्तता को मानते हुए कार्यवाही की अनुशंसा कर दी है। अब जिला कलक्टर के स्तर पर इस मामले में दोषियों के खिलाफ कार्यवाही प्रस्तावित है।

यूं समझिए फर्जीवाड़ा की कहानी

– वन विभाग को उपनिवेशन विभाग ने 1997 में चक 1 आरएसएम में 90 बीघा और 2 डीएलएम में 1200 बीघा भूमि आवंटित की।

– उपनिवेशन विभाग ने साल 1985-87 के बीच 1 आरएसएम की भूमि का दोहरा आवंटन महाजन फील्ड फायरिंग रेंज के विस्थापित सीताराम निवासी कानोलाई, गंगुराम, नागरमल निवासी रघुनाथपुरा, खुमा पुत्र रूघा निवासी कपूरीसर को कर दिया।
– लूणकरनसर की ढाणी पांडूसरी के पांच परिवारों ने इस जमीन की पॉवर ऑफ अटॉर्नी आवंटियों से लेकर साल 1991 में अपने नाम इंतकाल दर्ज करवा लिए। इस तरह यह जमीन पांडूसरी के जगदीश प्रसाद, शांति देवी, गोमती देवी, विद्यादेवी आदि के नाम 25 अगस्त 1992 को चढ़ गई।
– एक महीना होने से पहले ही यह गलती तत्कालीन तहसीलदार के पकड़ में आने पर उन्होंने 24 सितम्बर 1992 को इंतकाल रद्द कर दिए। यह जमीन तब तक ऑनलाइन जमाबंदी में नहीं चढ़ी होने से वन विभाग के नाम ही दर्ज रह गई।
– इसके बाद मामला उपनिवेशन आयुक्त के न्यायालय में पहुंचा तो वर्ष 1995 में न्यायालय ने तहसीलदार बीकानेर को तीन बिन्दुओं पर पक्षों को सुनकर निर्णय करने के आदेश दिए। इसमें वन विभाग के लिए आरक्षित भूमि का आवंटन कैसे हुआ तथा आवंटियों को खातेदारी कैसे मिली। उपनिवेशन क्षेत्र में भूमि आवंटन नियम 1975 के तहत कार्यवाही विचाराधीन थी अथवा नहीं, देखने के साथ ही वर्तमान में भूमि वन विभाग के आरक्षण से बाहर है अथवा नहीं, के आधार पर निर्णय करने के लिए कहा।
-1995 से चुप बैठे लूणकरनसर क्षेत्र के लोग साल 2023 में सक्रिय हुुए। उन्होंने तहसीलदार छतरगढ़ के समक्ष प्रार्थना पत्र देकर इंतकाल दर्ज करने की मांग की। तहसीलदार ने बिना पक्षों को सुने सीधे ही प्रशासनिक आदेश से भूमि इन लोगों के नाम चढ़वा दी।

भूमि फर्जीवाड़ा की यह जांच कमेटी

जिला कलक्टर नम्रता वृष्णि ने 26 मार्च को सीएडी विभाग के अतिरिक्त आयुक्त एमएल नेहरा की अगुवाई में जांच कमेटी का गठन किया। इसमें अतिरिक्त आयुक्त उपनिवेशन अरविन्द जाखड़, प्रभारी क्षेत्रीय वन अधिकारी योगेन्द्र सिंह राठौड़, सहायक राजस्व लेखाधिकारी श्रवण सिंह चारण और वरिष्ठ विधि अधिकारी कलक्ट्रेट कपिल तंवर को शामिल किया। कमेटी 1 जनवरी 2014 से 1 जनवरी 2024 के बीच 10 साल के दौरान जिले की सभी तहसीलों में राजकीय भूमि के अंतरण संबंधी प्रकरणों की जांच कर रही है।

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