इन क्षेत्र में उपज
छतरगढ़, सतासर, मोतीगढ़, लाखूसर, केला, महादेववाली, राजासर भाटियान, पूगल, दंतौर सहित आसपास के क्षेत्र के बारानी खेतों में ग्वार, मोठ, मूंग व बाजरा की फसल के साथ खरपतवार के रूप में तुंबा काफी मात्रा में उगता है। टिब्बा क्षेत्र में बारिश कम होने पर खाली खेतों में भी तुंबा की बेल उग जाती है। पहले किसान इसे खरपतवार मानकर खेत से हटाने के लिए परिश्रम और पैसा खर्च करते थे, लेकिन अब तुंबा की पूछ होने से यह ग्रामीणों के लिए आमदनी का जरिया बन गया है।महंगा बिकता बीज
तुंबे को काटकर सुखाने के बाद थ्रेसर मशीन से इसके बीज अलग किए जाते हैं। एक क्विंटल तुंबे से करीब 4 से 5 किलोग्राम बीज निकलते हैं। बाद में यह बीज दिल्ली, जोधपुर, अमृतसर, रावतसर सहित अन्य शहरों के व्यापारी 25 से 30 हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचते हैं। आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कपनियां भी तुंबे के बीज को खरीदती है। व्यापारी अर्जुन भाट ने बताया कि हर वर्ष सीजन में 200 से 250 क्विंटल तक बीज तैयार कर आगे बेचते हैं।दवा के रूप में उपयोग
तुंबा का छिलका पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ इंसानों की आयुर्वेदिक औषधियों में भी काम आता है। शुगर, पीलिया, कमर दर्द आदि रोगों की आयुर्वेद औषधियों में तुंबे का उपयोग हो रहा है। गाय, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट आदि में होने वाले रोगों में तुंबे की औषधि लाभदायक है। तुंबे की मांग दिल्ली, अमृतसर, जोधपुर, भीलवाड़ा, रावतसर आदि में है।औषधीय गुण से भरपूर
पशुओं में औषधि के रूप में तुंबा दिया जाता है, जो कारगर दवा है। आजकल कई देशी और आयुर्वेदिक दवाइयों में भी इसका उपयोग होने लगा है। चिकित्सक की सलाह से इसे तय मात्रा में ही लेना चाहिए।– डॉ. संदीप खरे, पशु चिकित्सा प्रभारी छतरगढ़
– रामस्वरूप लेघा, कृषि पर्यवेक्षक, ग्राम पंचायत सत्तासर