सन 1930 में होलकर शासकों ने शहर की पेयजल आवश्यकता को पूरा करने के लिए यह बांध बनवाया था। मिट्टी का होने के बाद भी तालाब के पाल बेहद मजबूत स्थिति में हैं। क्षमता से ज्यादा पानी भरने पर तालाब को खाली कराने के वैकल्पिक प्रबंध भले ही अब भी नए बांधों और तालाबों में नहीं हो पा रहे हों लेकिन तत्कालीन इंजीनियरों ने इसका बखूबी इस्तेमाल किया था. तब महाराजा तुकोजीराव होलकर ने पाल के एक हिस्से से आशापुर गांव में अतिरिक्त पानी निकालने की व्यवस्था तत्कालीन इंजीनियरों से करवाई थी।
ज्यादा वर्षा होने पर नौ साल पहले तालाब में इतना पानी आ गया था कि बांध के ऊपर से पानी बहने की स्थिति बन चुकी थी। उस स्थिति में भी मिट्टी की पाल को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। तब आशापुर गांव के पास पाल से तालाब का पानी निकालकर यहां पानी कम कर दिया गया था। इस कवायद के कारण तालाब की निचली बसाहट के गांवों में बाढ़ की स्थिति बनने से बच गई थी।
यशवंत सागर बांध के पास एक नाला भी है जो गंभीर नदी में जाकर मिलता है। उस नाले के बाद की पाल से पानी बहाने की वैकल्पिक व्यवस्था तालाब निर्माण के समय ही की गई थी। पुराने अफसर और नगर निगम के नेता व कर्मचारी बताते हैं कि अधिक वर्षा की स्थिति में तालाब में पानी ज्यादा हो जाने पर एक बार नाले की पाल को तोड़कर भी अतिरिक्त पानी निकलवाया गया था।
बांध जरूर मजबूत है पर हादसे का अंदेशा बना हुआ है. दरअसल प्रशासन ने अभी तक सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए हैं. यहां आ रहे पर्यटकों की सुरक्षा के लिए न तो रेलिंग लगाई गई और न ही यहां कोई नोटिस बोर्ड लगाया गया है. यहां सुरक्षा उपायों की दरकार है.