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नींद आए बिना ही सो जाता है पीड़ित
नारकोलेप्सी से ग्रस्त व्यक्ति के जीवन पर इस समस्या का घातक असर पड़ सकता है। इसमें REM यानी रैपिड आई मूवमेंट वाली नींद ज्यादा होती है, जिसमें सपने आते हैं, मस्तिष्क सक्रिय रहता है और मरीज को पूरी नींद के बाद भी नींद की कमी महसूस करता है। सामान्य अवस्था में रैम 20 प्रतिशत तक होता है, जबकि भारी नींद नॉन-रैम स्लीप की श्रेणी में आती है, जिसमें मस्तिष्क को आराम मिलता और वो सो जाता है।
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इस समस्या की हैं कई वजहें
इस समस्या के कई कारण होते हैं। ज्यादातर स्थितियों में दिमाग में एक न्यूरोकेमिकल हाइपोक्रीटिन की कमी हो जाने से होता है, जो नींद और जागृत अवस्था को कंट्रोल रखती है। विशेषक्ष इसे एक आनुवंशिक बीमारी मानते हैं। क्योंकि कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता भी नारकोलेप्सी के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा करती है। इसलिए कुपोषण से ग्रस्त या बीमार व्यक्ति को इस बीमारी का खतरा अधिक रहता है।
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ये हैं इस बीमारी के लक्षण
इसके लक्षणों की शुरुआत किशोरावस्था से लगभग 25 की उम्र के बीच होती है। हालांकि, किसी अच्छे चिकितस्क से इसका उपचार नहीं कराया गया, तो समय के साथ साथ ये बीमारी बढ़ती जाती है। आइये जानते हैं कैसे की जा सकती है इस बीमारी के लक्षणों की पहचान-
-बार बार नींद आना
नारकोलेप्सी के मरीज बिना संकेत, कभी भी, कहीं भी सो जाते हैं। ये नींद कुछ मिनटों से लेकर लगभग आधे घंटे की हो सकती है। उठने के थोड़ी देर बाद ही मरीज को दोबारा नींद आ जाती है।
-मांसपेशियों से नियंत्रण खोना
ये स्थिति कैटाप्लेक्सी कहलाती है, जिसमें शरीर की लगभग सारी मांसपेशियां थोड़ी देर के लिए शिथिल हो जाती हैं। हकलाना, मरीज का एकाएक गिर जाना या सिर का लगातार हिलना जैसी बातें दिखाई पड़ती हैं। आमतौर पर ये किसी भावनात्मक मौके जैसे हंसी, गुस्सा आदि के दौरान होता है।
-स्लीप पैरालिसिस
नींद के एपिसोड से ठीक पहले कई बार मरीज चलने, बोलने या कुछ भी करने में असमर्थ हो जाता है। ये अवस्था भी कुछ सेकंड्स से लेकर कुछ मिनटों तक की होती है।
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समस्या इसलिए हो सकती है जानलेवा
इन लक्षणों के अलावा नारकोलेप्सी से प्रभावित व्यक्ति को मतिभ्रम, ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया एवं रेस्टलेस लेग सिंड्रोम जैसी परेशानियां भी हो सकती हैं। कई बार काम करते हुए मरीज को नींद आ जाती है और नींद में ही वो काम करने का अभिनय करने लगता है, जो पीड़ित के जानलेवा भी हो सकता है।
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ऐसे किया जा सकता है उपचार
हर पीढ़ी में रोग की तीव्रता घटती-बढ़ती रहती है, जबकि किसी पीढ़ी में रोग नहीं के बराबर भी हो सकता है। रोग की पहचान के तरीकों में ओवरनाइट स्लीप स्टडी और कंप्लीट स्लीप स्टडी होती है ताकि बीमारी की गंभीरता का आकलन किया जा सके व देखा जा सके कि मरीज को नारकोलेप्सी से जुड़ा हुआ कोई अन्य स्लीप डिसऑर्डर तो नहीं। इसी आधार पर इलाज किया जाता है, जिसके तहत मरीज की नींद को नियंत्रित करते हैं। कई बार कुछ स्टिमुलेटिंग एजेंट्स भी दिए जाते हैं, ताकि मरीज दिन के समय सक्रिय रह सके। इसके लिए स्लीप स्पेशलिस्ट आपकी मदद कर सकते हैं।