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भोपाल

किस बीमारी से हुई उस्ताद जाकिर हुसैन की मौत, क्या हैं लक्षण और इलाज

Zakir Hussain Death Cause: एमपी के इस शहर में हैं जाकिर हुसैन की जान लेने वाली गंभीर बीमारी के मरीज, धीरे-धीरे गिरफ्त में लेता है ये रोग, गैस पीडि़त, क्रोनिक स्मोकर व निर्माणकर्मी सबसे ज्यादा पीड़ित

भोपालDec 17, 2024 / 09:26 am

Sanjana Kumar

Zakir Hussain Death
Zakir Hussain Death Due To IPF: मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन का निधन इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस यानी आइपीएफ रोग की वजह से हुआ। वह इस बीमारी से लंबे समय से पीडि़त थे। राजधानी के चिकित्सकों का कहना है कि फेफड़ों में होने वाली इस क्रोनिक बीमारी के मरीज भोपाल में भी है। गैस कांड के दौरान रिलीज हुई मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के अलावा चारों ओर चल रहे कंस्ट्रक्शन से निकलने वाली धूल इस रोग को बढ़ा रही है। कुछ पर्यावरणीय कारकों से इसका खतरा बढ़ सकता है,जो भोपाल के आसपास पाए जाते हैं। यह रोग बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है। इसीलिए ज्यादातर लोग इसे उम्र जनित बीमारी मान कर नजरअंदाज कर देते हैं। और इलाज में देरी मौत का कारण बनती है।

क्या है इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस

इस बीमारी का स्पष्ट कारण नहीं पता चल पाता इसलिए इसे इडियोपैथिक कहते हैं। इसमें फेफड़ों के फैलने और सिकुडऩे की क्षमता प्रभावित होती है। फेफड़ों से ऑक्सीजन रक्त तक पहुंचाने वाली मे्ब्रेन (नली) मोटी हो जाती है। जिससे शरीर में ऑक्सीजन लेवल कम होने लगता है। पहले मरीज कमजोर होता है और अंत में मौत हो जाती है।

ये जांच जरूरी

-8 सप्ताह से अधिक समय से सूखी खांसी

– अक्सर सांस फूलना और आराम करते समय भी सांस लेने में कठिनाई

– गठिया जैसे ऑटो इ्युन रोगों से ग्रसित मरीज ज्यादा खतरे में
– स्मोकिंग, गैस पीडि़त, डस्ट, सीमेंट और पत्थर से जुड़े कार्य करने वाले

– जिनमें बीमारी की फैमिली हिस्ट्री रही हो

क्या कहते हैं हेल्थ एक्सपर्ट

आइपीएफ रोग बेहद धीरे-धीरे बढ़ता है। जब बीमारी फैल चुकी होती है तब इसे पूरी तरह ठीक करना संभव नहीं होता। फेफड़े का जितना हिस्सा प्रभावित होता है उसे उतने पर ही सीमित कर बाकी बचे हिस्से को ऑक्सीजन थेरेपी, एक्सरसाइज और दवाओं की मदद से बचाया जा सकता है। रोग के लक्षण दिखने पर मरीज की सीटी स्कैन और पीएफटी जांच से रोग की पहचान होती है। भोपाल में इसके अन्य शहरों की तुलना में ज्यादा केस मिलते हैं। हालांकि, ज्यादातर मामले बहुत देरी से आते हैं। यदि मरीज में समय से पहचान हो तो इस रोग के प्रभाव को सीमित करना संभव है।

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