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सेप्टीसीमिया बैक्टीरिया के संक्रमण से होता है। ये संक्रमण पूरे शरीर में फैल जाता है। इस बार यह संक्रमण वायरस से हो रहा है, जिससे स्थिति और बिगड़ गई है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस मौसम में वायरल फीवर का जोर रहता है, ऐसे में इन मरीजों को सेप्टीसीमिया हो तो यह जानलेवा हो जाता है। हमीदिया अस्पताल के किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. हिमांशु शर्मा बताते हैं कि इस मौसम में गंदगी, हाइजीन का अभाव होने से इंफेक्शन फैलता है। ऐसे में कई बार मरीज अस्पताल में सामान्य बीमारी के इलाज के आता है, पर उसकी मौत इंफेक्शन से हो जाती है।
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क्या है सेप्टीसीमिया
लिवर रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रणव रघुवंशी बताते हैं कि सेप्टीसीमिया असल में किसी भी संक्रमण का ब्लड में फैल जाने को कहते हैं। बच्चों और बुजुर्गों या ऐसे लोग जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है, उन्हें यह दिक्कत होती है। इसमें मरीज के शरीर पर लाल चकत्ते, फोड़े और फुंसी होने लगती है। इसके बाद बुखार एवं उल्टी-दस्त की शिकायत होती है।
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4-5 दिन में संक्रमण
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भोपाल चैप्टर के पूर्व अध्यक्ष और किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय गुप्ता के मुताबिक बारिश के मौसम में निमोनिया, सीओपीडी या डायरिया के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। ऐसे में लोग घरेलू उपचार करते हैं। यही गलती जानलेवा साबित होती है। चार से पंाच दिन में संक्रमण पूरे शरीर में फैल जाता है और मल्टी ऑर्गन फैलियर का कारण बन जाता है।
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ऐसे करें बचाव
डायबिटीज या निमोनिया से पीडि़त मरीज को रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखना चाहिए। बच्चों को गंदे हाथ से न छुएं। बार-बार साबुन से हाथ धोएं। सामान्य वायरल बुखार होने पर भी डॉक्टर से परामर्श लें, खुद से इलाज न करें।
बारिश के मौसम में ज्यादा असर
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश भार्गव के अनुसार नवजातों और एक वर्ष तक के बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है। बच्चों को गंदे हाथों से छूने, बोतल से दूध पिलाने एवं उन्हें गंदे कपड़ों में रखने से यह रोग होता है। डॉ. भार्गव ने बताया कि यह रोग सबसे अधिक बरसात के मौसम में फैलता है। सेप्टीसीमिया होने के बाद बच्चे को टायफ ायड और निमोनिया आदि वायरल बीमारियां हो जाती हैं।