भोपाल। संगीत इनकी रगों में बसता है। दादा और पिता की खूबियों से मिलकर तैयार हुआ है ये नायाब हीरा। 12 साल की उम्र में ही इस नन्हे कलाकार की आवाज में जो परिपक्वता है वो अच्छे-अच्छे उस्तादों में नहीं होती। हम बात कर रहे हैं भारत रत्न पं. भीमसेन जोशी के पोते और शास्त्रीय गायक श्रीनिवास जोशी के बेटे विराज श्रीनिवास जोशी की। शनिवार को वे भारत भवन के 34वें स्थापना दिवस में हिस्सा लेने आए थे।
विराज बताते हैं जब में नौ साल की उम्र में मैंने सवई गंधर्व सम्मेलन में सुर छेड़े। तब लोगों ने कहा कि मेरी गायकी में दादाजी की झलक दिखती है।
रियाज जरूरी
विराज संगीत की शिक्षा सुधाकर चवाण और अपने पिताजी से ले रहे हैं। 7वीं क्लास में पढऩे वाले विराज कहते हैं पढ़ाई से जब भी समय मिलता है रियाज करने बैठ जाता हूं। एक बैठक कम से कम डेढ़ घंटे के रियाज जरूर करता हूं।
आत्मा में बसना जरूरी
गायन से पहले मैंने गुरूजी प्रशांत पाण्डव से तबला बजाना सीखा था। लेकिन, मुझे वादन से ज्यादा गायन पसंद है। पिताजी कहते हैं अगर संगीत आपकी आत्मा में हैं तो वो सुनने वाले के दिल को जरूर छूता है। पिताजी बारीकियों से मुझे अवगत कराते हैं और मेरे संगीत को निखारने में मदद करते हैं।
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