पिछली बार वे 2022 में मप्र के शहडोल जिले के दौरे पर थीं। आज द्रोपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति हैं, लेकिन जीवन में कुछ हासिल कर राष्ट्रपति पद पर पहुंचने वाली द्रोपदी मुर्मू की लाइफ बिल्कुल भी आसान नहीं थी। हर किसी की लाइफ में कोई न कोई स्ट्रगल जरूर होता है। कुछ यही हाल द्रोपदी मुर्मू का भी रहा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि द्रोपदी मुर्मू बचपन से ही मीठे की बेहद शौकीन रहीं।
लेकिन ओडिशा के आदिवासी परिवार में जन्मीं द्रोपदी मुर्मू के साथ ही अन्य आदिवासी परिवारों को मिठाइयां दुर्लभ ही थीं। और हैरानी की बात यह है कि हर बार वे पिता के समझाने पर समझ जातीं और कभी मिठाई की जिद नहीं करती थीं। आज इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं द्रोपदी मुर्मू की लाइफ के ऐसे ही मोटिवेशनल और इंट्रेस्टिंग फैक्टस, जिन्हें आपको भी जरूर जानना चाहिए…
राष्ट्रपति के पैतृक गांव में मनाया जश्न
आपको जानकर हैरानी होगी कि जैसे ही द्रौपदी मुर्मू को 21 जुलाई को भारत का राष्ट्रपति घोषित किया गया, ओडिशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर में उनके पैतृक गांव में ओडिशा के ट्रेडमार्क रसगुल्ले और छेनापोड़ा के अलावा लड्डू बांटकर खुशियां और जश्न मनाया गया।
मिठाइयों की शौकीन लेकिन नहीं मिलती थी मिठाई
ये बात कम ही लोग जानते हैं कि मुर्मू को मीठा खाने का बेहद शौक है। लेकिन सत्तर के दशक में, जब वे अपनी किशोरावस्था में थीं तब, ओडिशा के आदिवासी घरों में मिठाइयां दुर्लभ थीं। उनका जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ था। उस समय दिन का भोजन तक मिलना अपने आप में एक चुनौती थी।
जब भी मिठाई मांगी, मिली पिता से सीख
मिठाइयों की लालसा के बावजूद, मुर्मू ने कभी मिठाई नहीं खाई और न ही उसके लिए जिद की। बताया जाता है कि जब भी वे पिता से मिठाई के शौक की बात करतीं, तो अक्सर उनके माता-पिता उन्हें सिखाते कि ज्यादातर बच्चों को मिठाइयां पसंद होती हैं, लेकिन बच्चों के लिए मिठाई की तरह मधुर स्वभाव विकसित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। अपने माता-पिता से अक्सर मधुर स्वभाव की बात सुनने वाली मुर्मू ने इन्हें अपने जीवन में उतारा भी।
पहला वेतन मिला तो मुर्मू ने खूब बांटी मिठाई
जब मुर्मू ने कमाना शुरू किया, तो अपनी पहली कमाई से भी उन्होंने चॉकलेट और मिठाइयां खरीदीं और अपने आस-पास के लोगों को खिलाईं। अब वे ऐसा अक्सर करतीं और लोग उनके ऐसे स्नेही स्वभाव से उनसे हमेशा खुश रहते हैं। वे अपने छात्रावास के सुरक्षा गार्ड को उसके जन्म दिन पर कैंडी देना कभी नहीं भूलती थीं।
ओडिशा के पहाड़पुर में एसएलएस आवासीय जनजातीय स्कूल में बच्चों के लिए मिठाइयां लाना और खिलाना भी उन्हें बेहद पसंद था।
दिवंगत बेटों की याद में खोला स्कूल, स्नेही स्वभाव की लोग खाते हैं कसमें
उन्होंने अपने दो दिवंगत बेटों की याद में स्कूल की स्थापना की है। माता-पिता की कही बातों को उन्होंने इतना आत्मसात किया कि आज भी लोग उनके स्नेही स्वभाव की कसम खाते हैं। बताया जाता है कि खुद उनकी उनकी बहू रुक्मणी मुर्मू भी उनके स्नेही भाव की कसम खाती हैं।
मुर्मू की बहू ने सुनाया किस्सा
मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में मुर्मू की बहू रुक्मणि ने द्रोपदी मुर्मू से 2017 में अपनी पहली मुलाकात को याद करते हुए कहा कि जब उनके पति उन्हें उनके यानी द्रौपदी मुर्मू के घर पर ले गए तो वे काफी कांप रही थीं। वे झारखंड के राज्यपाल से मिलने जा रही थीं। जो पहले ओडिशा सरकार में मंत्री थीं, लेकिन जैसे ही वे उनसे मिलीं, उनके स्नेही स्वभाव से उनकी घबराहट थोड़ी देर में ही दूर हो गई।
वे चाय बनाने और नाश्ते की व्यवस्था करने में बिजी हो गईं। उनके लिए उपहारों से भरी ट्रे लेकर आईं और मेरे पास बैठीं। उन्होंने मेरा हाथ हाथ में लेकर बड़े प्यार से उनसे बात की। द्रोपदी मुर्मू बड़े ही विनम्र और मिलनसार व्यक्तित्व की धनी हैं।
राजनीति में कैसे रखा कदम
मुर्मू को राजनीति में लाने वाले भाजपा नेता राजकिशोर दास ने एक इंटरव्यू में बताया था कि कैसे उन्होंने उन्हें राजनीतिक कूटनीति का एक बड़ा सबक सिखाया था। वे बताते हैं कि उनके दिनों में, भाजपा में विभिन्न नेताओं के फॉलोअर्स के बीच बहुत अंदरूनी कलह हुआ करती थी।
एक दिन दिन, द्रौपदी मुर्मू उनके पास आईं और सभी फॉलोअर्स के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करना शुरू कर दिया। राजकिशोर ने कहा था कि ये उनके लिए राजनीति का एक बड़ा सबक था। नेताओं के रूप में, उन्हें यह रास्ता दिखाना होगा और अधिक जिम्मेदार होना होगा।
ये भी जानें
– 64 साल की द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति और दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं।
– वे भारत की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति भी हैं। वे आजादी के बाद जन्म लेने वाली भारत की पहली राष्ट्रपति भी हैं।
– उनका जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले में संथाल आदिवासी समुदाय में हुआ।
– उनका जन्म 20 जून 1958 को बिरंची नारायण टुडू के घर में हुआ।
– टुडू ओडिशा के बलदापोसी गांव में एक किसान थे।
– 1997 में, वह रायरंगपुर एनएसी की उपाध्यक्ष और भाजपा के राज्य एसटी मोर्चा की उपाध्यक्ष बनीं।
– रमादेवी महिला कॉलेज, भुवनेश्वर से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्हें श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च, रायरंगपुर में मानद सहायक प्रोफेसर के रूप में काम करने का मौका मिला।
– 1979 से 1983 के दौरान उन्होंने ओडिशा के सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में काम किया।
– उनका विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ था।
– मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनका प्रेम विवाह हुआ था। श्याम शादी का प्रस्ताव लेकर उनके पास पहुंचे थे, जबकि उन्हें दहेज में गाय, बैल और 16 जोड़ी कपड़े मिले थे।
– उनके दो बेटे और एक बेटी थी। लेकिन उनके पति और दोनों बेटों को वे खो चुकी हैं।
– पति और दो बेटों के निधन के बाद मुर्मू ने घर में ही स्कूल खोल दिया, जहां वह बच्चों को पढ़ाती थीं। उस बोर्डिंग स्कूल में आज भी बच्चे शिक्षा हासिल करते हैं।
– उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी बेटी शादीशुदा हैं और वह भुवनेश्वर में रहती हैं।
– मुर्मू ने एक टीचर के तौर पर व्यावसायिक जीवन शुरू किया और फिर धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति में कदम रखा।
– रोचक बात है कि वह सियासत में नहीं आना चाहती थीं। पति तो यही कहा करते थे कि हम छोटे लोग हैं। पत्नी टीचर बन गईं, यही बहुत है।
– उनका राजनीतिक करियर 1997 में भाजपा में शामिल होने के बाद शुरू हुआ।
– 1997 में, वे ओडिशा के रायरंगपुर जिले की पार्षद चुनी गईं।
– 1998 में, वे रायरंगपुर एनएसी की उपाध्यक्ष बनीं।
– 2000-2002 के बीच वे ओडिशा सरकार में परिवहन और वाणिज्य मंत्री रहीं।
– 2007 में, उन्हें वर्ष के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए ‘नीलकंठ पुरस्कार’ मिला।
– वे 2015 में झारखंड की 9वीं और पहली आदिवासी राज्यपाल बनीं और 2021 तक कार्यरत रहीं।