लोककथाओं से जुड़ी पेंटिंग्स तैयार कर रहे हैं
अभी ये कलाकार जनजातीय संग्रहालय में लोककथाओं से जुड़ी पेंटिंग्स तैयार कर रहे हैं। संग्रहालय के क्यूरेटर अशोक मिश्रा का कहना है कि अभी गोंड पेंटिंग की दुनियाभर में मांग है। हर साल करीब 70 से 80 करोड़ की पेंटिंग की खरीद-बिक्री होती है। इसकी प्रसिद्धि की देखते हुए दुनियाभर के बड़े पेंटिंग कलेक्टर्स भी अनूठे कलेक्शन का संग्रहित कर रहे हैं।
लोककथाओं को आकार देने वाली पहली कला है गोंड पेंटिंग
मिश्रा के अनुसार अफ्रीकी जनजातीय लोककलाओं का वैश्विक स्तर पर हमेशा दबदबा रहा है। जनजातियों में अपनी लोककथाओं की समृद्ध इतिहास है। गोंड समुदाय पहला ऐसा समुदाय है जिसने मौखिक लोककथाओं को चित्रकारी के जरिए कैनवास पर उकेरा है। हर कलाकार अपनी कल्पनाओं में देवता, जंगल, पशु-पक्षियों की कथाओं को अलग स्टाइल में उकेरता है। इसकी मांग को देखते हुए देश-दुनिया के कलाकार गोंड पेंटिंग्स की नकल तैयार कर इसे ऊंचे दामों में बेच रहे हैं। अकादमी की टै गिंग के बाद वे इसके असल होने का दावा नहीं कर सकेंगे।
जनजातीय कलाओं के 5 पद्मश्री हैं प्रदेश में
गोंड चित्रकारी को जनगढ़ सिंह श्याम ने वैश्विक स्तर पर अलग पहचान दी। भज्जू श्याम पहले ऐसे गोंड आर्टिस्ट हैं, जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। इसके बाद दुर्गा बाई को भी पद्मश्री मिल चुका है।