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भोपाल

यहां छिपा है अरबों का खजाना!, आज भी राजा भोज की नजरें करती हैं इसकी निगरानी

भोपाल में सांस्कृतिक धरोहरों व स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इसके साथ ही कई भवनों,दीवारों कई जगहों की अनेक रहस्यमय कहानियां भी प्रचलित हैं। 

भोपालJul 11, 2017 / 12:06 pm

दीपेश तिवारी

red wall at bhopal

treasure behind the wall


भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल शहर प्राकृतिक की खूबसूरती के लिए भी पहचानी जाती है। जितना खूबसूरत यहां का इतिहास है,यहां की इमारतें भी उतनी ही कहानियों को समेटे हुए हैं। 

यहां न सिर्फ महल और भव्य भवन, बल्कि हर छोटे-बड़े प्राचीन निर्माण की अलग ही खासियत है। जिनमें से कुछ जाने पहचाने हैं तो कुछ काफी हद तक आज भी अनजाने बने हुए हैं। दरअसल यहां सांस्कृतिक धरोहरों व स्थापत्य कला का बेजोड़ मुकाम आसानी से देखने को मिल जाता है। इसके साथ ही कई भवनों,दीवारों या अन्य जगहों की अनेक रहस्यमय कहानियां भी प्रचलित हैं। 




रोज यहां के रास्तों से हजारों लाखों लोग गुजरते हैं, उन्हें इस ​दौरान दिखने वाली कई इमारतों,भवनों व अन्य स्थान ऐसे भी दिखतें हैं जो एक खास विशेषता लिए हुए हैं।

यहां है दीवार
वीआईपी रोड पर राजा भोज की प्रतिमा के पास एक लाल रंग की दीवार है। यह खजाने की दीवार मानी जाती है। इसका स्थापत्य गौहर महल के समकालीन है। लेकिन इस खजाने वाले भवन के भीतर जाने का राज आज तक सामने नहीं आया।




कुछ जानकारों के अनुसार इस ​दीवार को खजाने वाली दीवार इसलिए कहा जाता है, क्योंकि पुराने समय में इसी दीवार के पास से भोपाल के शासकों का खजाना जमा किया जाता था। यह दीवार काफी हद तक पानी में डूबी हुई है। इसके अलावा शहर के कई लोगों का मानना है कि इस दीवार के पीछे अरबों का खजाना छिपा है, जो कभी यहां के शासकों का हुआ करता था।



यह भी हैं खास:
नूर महल : शाहजहां बेगम 1872-1901 के शौहर सिद्दीक हसन खान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़े थे। वे अक्सर अंग्रेजों के खिलाफ लिखा करते थे। जिससे अंग्रेज उनसे नाराज थे और बेगम पर तलाक लेने का दबाव बना रहे थे। तब बेगम ने उनके लिए अलग नूर महल बनवाया। वे ताजमहल में रहती थीं। उनसे मिलने के लिए वे तीन डिब्बों की गाड़ी से आती थीं।



लैला बुर्ज : कमलापति महल के सामने लाल रंग का बुर्ज। इस पर लैला तोप रखी जाती थी। इसी के चलते इसका नाम लैला बुर्ज पड़ गया। यह गौंड शासनकाल के किले की दीवार का एक हिस्सा है। इसका निर्माण 17-18वीं सदी में हुआ था।

गढ़ी मस्जिद और सती स्तंभ : खानूगांव में गढ़ी की मस्जिद है। यहां गौंडकाल के स्थापत्य के अवशेष देखे जा सकते हैं। ऐसी गढ़ियां किले के चारों तरफ सुरक्षा के लिए बनाई जाती थीं। यहां कई सती स्तंभ भी हैं। जहां पति की मृत्यु के बाद पत्नी भी सती होती थी उन्हीं की याद में ये स्तंभ बनाए जाते थे।


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