एमपी गजब है: मानसून में ट्रैकिंग के लिए यहां हैं कई डेस्टीनेशन
mp.patrika.com बताने जा रहा है राजधानी और उसके आसपास ट्रैकिंग स्पॉट जहां मानसून शुरू होते ही सैलानियों की हलचल शुरू रही है। यह सभी स्पॉट राजधानी से 75 किलोमीटर के दायरे में हैं।
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मानसून आते ही राजधानी और उसके आसपास सैकड़ों सैलानी पिकनिक स्पॉट की ओर रुख करते हैं। इनसे अलग राजधानी में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो रोमांच के लिए दुर्गम पहाड़ों की तलाश में रहते हैं। इन पर्वतारोहियों (ट्रैकर्स) में पर्यावरण और वन्यप्राणियों के जानकार, पंछी विशेषज्ञ, फोटोग्राफी के शौकीन, डॉक्टर्स, स्कूल-कॉलेजों के स्टूडेंट्स भी हैं, जो किसी विषय का अध्ययन करने जाते हैं। mp.patrika.com बताने जा रहा है राजधानी और उसके आसपास ट्रैकिंग स्पॉट जहां मानसून शुरू होते ही सैलानियों की हलचल शुरू रही है। यह सभी स्पॉट राजधानी से 75 किलोमीटर के दायरे में हैं। यह है ट्रैकिंग स्पॉट्स राजधानी के आसपास कई रोमांचक और खूबसूरत ट्रैकिंग स्पॉट्स हैं। इनमें बुदनी, कठौतिया, केरवा डैम, कोलार डैम, हलाली डैम, अमरगढ़ वाटर फॉल, समरधा, गिन्नौरगढ़, चिड़ीखो, चिड़ियाटोल, महादेवपानी और भूतों का मेला आदि प्रमुख हैं। यूथ हॉस्टल एसोसिएशन के सचिव संजय मधुप के मुताबिक यह सभी ट्रैक MP लेवल के हैं, यहां जाने से पहले हम ट्रैकिंग की बारीकियां समझाते हैं। इसे सभी आयु वर्ग के लोगों के हिसाब से डिजाइन किया गया है। बुदनी के जंगलों में है ‘मिडघाट ट्रैक’ यह राजधानी से करीब 65 किलोमीटर दूर है। हरीभरी वादियों में स्थित दुर्गम पहाड़ी रास्तों से यहां पहुंचा जाता है। यह सबसे रोमांचकारी ट्रैकिंग स्पॉट है। इसके लिए हबीबगंज स्टेशन से ट्रेन द्वारा जाते हैं। यही से इसका रोमांच शुरू हो जाता है। इसके बाद मिडघाट पर ट्रेन से उतरकर करीब 800 फीट ऊंचे पहाड़ पर चढ़ाई की जाती है। घने जंगलों से गुजरते हुए पहाड़ पर एक बड़ा झरना है, जो लोगों को सुकून देता है। वहीं से कुछ किलोमीटर चलने के बाद बाबा मृगेंद्र नाथ का मंदिर है, जहां से नर्मदा का विहंगम दृश्य नजर आता है। यहां से नर्मदा नदी को आप करीब 40 किलोमीटर दूर तक अपना आंचल फैलाए देख सकते हैं। इसी पहाड़ी से रेलवे ट्रेक का सर्पिलाकार रास्ता अपने आप में अनोखा दृश्य निर्मित करता है। यह मंदिर बुदनी रेलवे स्टेशन से नजर आ जाता है। सावधानीः यहां जाने के लिए अनुभवी ट्रैकर्स के साथ जाना चाहिए। कभी भी अकेले या परिवार के साथ न जाएं। क्योंकि यह स्थान रातापानी सेंचुरी से लगा है, इसलिए यहां कई वन्यप्राणी भी हैं। बी फॉल को टक्कर देता है अमरगढ़ फॉल यह भी राजधानी से करीब 55 किलोमीटर दूर रायसेन जिले में स्थित है। यह स्थान शाहगंज के पहले खटपुरा में है। बारिश के चलते यहां दो बड़े वाटर फॉल बनते हैं, जो बेहद खूबसूरत हैं। इनमें से एक सिलवानी खो और दूसरा अमरगढ़ वाटर फॉल हैं। यहां पहुंचने के लिए बुदनी के जंगल से शाहपुरा की ओर जाते हैं। वहां खटपुरा गांव से किसी स्थानीय गाइड की मदद से यहां पहुंचा जा सकता है। राजधानी से हर साल कई लोग ट्रैकिंग के लिए इन दोनों झरनों को देखने जाते हैं। इस स्थान पर जाने के लिए सड़क मार्ग से खटपुरा गांव पहुंचा जाता है, वहीं से 5 किलोमीटर पैदल जाना और आना पड़ता है। सावधानीः यह स्थान भी ट्रैकिंग के लिए है, इसलिए परिवार के साथ अकेले जाने का यहां जोखिम न उठाना चाहिए। यह स्थान भी रातापानी सेंचुरी से लगा हुआ है, इसलिए यहां वन्यप्राणियों का खतरा हो सकता है। यह है गिन्नौरगढ़ का किला गौंड राजा का यह किला रातापानी सेंचुरी के मध्य है। चारों तरफ जंगल और बीच में पहाड़ी पर स्थित यह किला रहस्यमय है। जिसे देखने बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। इसके अलावा यहां ट्रैकिंग दल भी पहुंचता है, जो पहाड़ी रास्तों से दुर्लभ और बेशकीमती प्राचीन प्रतिमाओं को देखने पहुंचता है। यह स्थान भोपाल से 55 किलोमीटर दूर स्थित देलाबाड़ी में है। यहां फारेस्ट विभाग की एंट्री फीस देकर भीतर जाया जाता है। समरधा ट्रैक में है रिवर क्रासिंग का मजा भोपाल से करीब 30 किलोमीटर दूर है समरधा ट्रैक। यहां स्थित फारेस्ट गेस्ट हाउस से इंट्री फीस जमा करने के बाद ट्रैक शुरू किया जाता है। यहां भी पहाड़ों के दुर्गम रास्ते और घने जंगलों के बीच से जाना पड़ता है। इस दौरान ट्रैकिंग के साथ ही यहां बरसाती नदियों को भी पार करना रोमांचकारी होता है। यहीं से महादेवपानी के लिए भी रास्ता है, जहां आप अपना ट्रैक समाप्त कर सकते हैं। यह ट्रेक करीब 10 किलोमीटर लंबा है। सावधानीः यहां भी अनुभवी दल के साथ ही जाना उचित है। क्योंकि यह स्थान फॉरेस्ट की समरधा रेंज में आता है और वन्य प्राणियों से खतरा हो सकता है। इसलिए यहां ग्रुप में ही जाना चाहिए। कोलार ट्रैक में है एडवेंचर और मस्ती यह ट्रैक भी राजधानीवासियों की पसंद बना हुआ है। कोलार डैम से पहले जंगलों में प्रवेश करने के बाद बरसाती झरने का लुत्फ लेते हुए जाने का रोमांच यहां मिलता है। खासबात यह है कि इस ट्रैक पर बहते पानी के रास्ते से ही जाना पड़ता है। यह ट्रैकर्स को और भी रोमांचित कर देता है। यह स्थान पेड़-पौधों का अध्ययन करने वालों के लिए अच्छा स्थान है। इसी स्थान पर कई जगह रीवर क्रॉसिंग के भी स्पॉट हैं। सावधानीः यह स्थान दुर्गम है और घने जंगल के बीच में है, इसलिए यहां ट्रैकर्स दल में ही जाना उचित है। जुलाई, अगस्त और सितंबर में यहां कई संगठन अपनी एक्टीविटी करते हैं। बारह माह गिरता है कैरीमहादेव में झरना यह स्थान भी राजधानी से करीब 25 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने के लिए कोलार रोड से झिरी गांव तक जाना पड़ता है। वहां से करीब 10 किलोमीटर लंबा ट्रैक है। इस स्थान पर बारह मास पानी की धार गिरती रहती है। किंवदंती है कि यह पानी महादेव का जटा में से आ रहा है। तीनों ओर से चट्टानों से घिरे इस स्थान पर गुफा में महादेव विराजे हैं। सावधानीः यह स्थान राजधानी से लगे रातापानी सेंचुरी से लगा है। यही से रातापानी सेंचुरी शुरू होती है, जो बुदनी के जंगलों तक फैली है। इस स्थान पर भी बाघ और भालु की दहशत रहती है। इसलिए यहां अकेले न जाते हुए ग्रुप में जाना चाहिए। भूतों का मेलाः यहां से शुरू होता है रोमांचकारी ट्रैक राजधानी से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित है सीहोर जिले का इच्छावर। यहां भूतों का मेला गांव से यह ट्रैक रूट है। यह ट्रैक नदी के किनारे-किनारे चलता है। करीब 10 किलोमीटर लंबे इस ट्रैक में हिमाचल की वादियों सा अहसास भी ट्रैकर्स को होता है। यहां पहाड़ों पर खेती कैसे की जाती है, देखने को मिलता है। सावधानीः यह ट्रैक लंबा होने के कारण किसी अनुभवी ट्रैकिंग दल के साथ ही जाना चाहिए। यह पर्वतारोहियों की खास पसंद बना हुआ है। फर्स्टएड किड एवं जरूरी उपकरण का रखें ध्यान जंगलों और पहाड़ों में ट्रैकिंग के लिए अनुभवी पर्वतारोहियों के साथ जाना चाहिए। क्योंकि ट्रैकिंग करना स्वास्थ्यवर्धक होता है, साथ ही जोखिमभरा भी होता है। ट्रैकिंग पर जाने से पहले फर्स्टएड किट समेत जरूरी उपकरण होना चाहिए। -संजय मधुप, इंटरनेशनल ट्रैकर, यूथ होस्टल
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