उन्होंने पैरेन्ट्स को टिप्स देते हुए कहा कि बच्चों को मल्टीपल गेम्स खिलाएं। इससे उनकी पर्सनॉलिटी इंप्रूव होगी। हां, यदि बच्चा खेल में ही कॅरियर बनाना चाहता है तो एक स्टेज के बाद उन्हें पसंदीदा गेम में ही आगे बढ़ाएं। अपना पसंदीदा गेम को उस पर ना थोपें। उन्होंने कहा कि मैं 1993 के बाद क्रिकेट खेलने इंडिया आया। यहां की संस्कृति और लोग मुझे बहुत पसंद आए, इसी कारण मैंने अपनी बेटी का नाम इंडिया रखा है, क्योंकि इंडिया वालों ने मेरे ऊपर एक अमिट छाप छोड़ी थी।
मैं 1992 में साउथ अफ्रीका की हॉकी टीम में सेलेक्ट हुआ था
उन्होंने कहा कि मुझे बचपन से ही गेम्स का शौक था। मेरे पिता रग्बी प्लेयर और मां टेनिस प्लेयर थीं। पहले मैंने हॉकी भी खेली। 1992 में साउथ अफ्रीका की हॉकी टीम में सेलेक्ट हुआ था, लेकिन हमारी टीम ओलंपिक के लिए नहीं चुनी गई। बाद में मुझे क्रिकेट से लगाव हो गया। उन्होंने कहा कि हम तीन भाई थे और जब हम घर में क्रिकेट खेलते थे तो कभी खिड़की का कांच टूटता था, तो कभी किसी का सामान टूट जाता था। हम लोग डर कर इधर-उधर छिपते थे। इस कारण स्कूल में भी कई डांट तो कभी मार खाई, लेकिन क्रिकेट का जुनून कभी कम नहीं हुआ।
उन्होंने कहा कि बैट्समैन पर ज्यादा प्रेशर होता है। रोमांचक मैच में जब आखरी बॉल पर कुछ रन चाहिए होते हैं तब सभी की निगाहें उसी पर टिकी होती है। उन्होंने कहा कि दुनिया मुझे फ्लाइंग बर्ड कहती है। हर एक क्रिकेटर फील्डिंग करते समय सोचता है कि वह विकेट झपट ले। मैं हॉरिजेंटली विकेट लेता था तो लैंडिंग में प्रॉब्लम होती थी।