1-देवों के देव महाशिवरात्रि पर विशेष श्रृंगार, जयकारों से गूंज रहे हैं शिवालय
इस कड़ी में सबसे पहले बात करते हैं देवों के देव महादेव की, जिनकी भक्ति में पूरा देश लीन है। प्रदेश की धर्म नगरी उज्जैन महाशिवरात्रि के मौके पर बाबा महाकाल के दर्शन करने वालों का हुजूम उमड़ा हुआ है। यहां लंबी सुबह से ही भक्त लंबी कतारों में लगकर बाबा महाकाल के दर्शन करने पहुंच रहे हैं। कतारों में लगे कई भक्त बाबा के दर्शन करने विदेशों से आए हुए हैं। भक्तों की कतार करीब दो किलोमीटर लंबी है। मंदिर के गर्भगृह में महाकाल की भस्म आर्ती शुरु हो चुकी है। सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतेज़ाम यहा देखे जा रहे हैं। श्रद्धालू करोड़ों मन्नतें लेकर बाबा के दरबार में पहुंच रहे हैं।
महाशिवरात्रि पर भगवान भोलेनाथ की भक्ति का महत्व विशेष होता है और बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में तो महाशिवरात्रि का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल में महाशिवरात्रि का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है और देश विदेश से बाबा के भक्त उनके दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते हैं। वैसे तो देशभर में भोलेनाथ के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन महाकाल की भस्म आरती सिर्फ और सिर्फ उज्जैन के महाकाल मंदिर में ही होती है। यहां भस्मारती कर बाबा का विशेष श्रंगार किया जाता है। साथ ही, बाबा महाकाल का यहां महाशिवरात्रि से पहले नौ दिनों तक अलग अलग रूप में विशेष श्रंगार भी होता है। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में शिव नवरात्रि रविवार से प्रारंभ हो गई है और भगवान के विवाह से पूर्व उनको हल्दी-चंदन का उबटन लगाया गया। मंदिर के गर्भगृह में 11 पंडितों ने मंत्रोचार के साथ बाबा का महाअभिषेक किया। महाशिवरात्रि को भगवान महाकाल का महाअभिषेक होगा और प्रात: 4 बजे से महाकाल का पुष्प मुकुट श्रंगार किया जाएगा और इसके बाद साल में एक बार होने वाली दोपहर की विशेष भस्मारती होगी औऱ इसी भस्मारती के साथ शिवरात्रि उत्सव की शुरुआत होगी।
2-विरुपाक्ष महादेव मंदिर में उमड़ी है भक्तों की भीड़, इतिहास कर देगा हैरान
उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिलिंग को तो किसी परिचय की ज़रूरत नहीं है, ये तो देश ही नहीं बल्कि, विदेशों से भक्त महादेव की पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मध्य प्रदेश में एक और शिव मंदिर जो 100 किलोमीटर दूर होने पर भी महाकाल मंदिर से सीधा जुड़ा हुआ है। हम बात कर रहे हैं रतलाम जिले के बिलपांक मंदिर की जो 2500 साल से ज्यादा पुराना शिव मंदिर है। मंदिर में शिवरात्रि के पावन पर्व पर दूर दूर से श्रद्धालू पहुंच रहे हैं। पहले की अपेक्षा इस बार मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ नज़र आ रही है। यहां शिवरात्रि पर विशेष पूजा की जाती है और प्रदेश के कई इलाको से हजारों की तादाद में लोग भगवान का आशीर्वाद लेने पहुंच रहे हैं। बढ़ी संख्या में लोगों के पहुंचने से यहां किसी मेले जैसा प्रतीत हो रहा है।
मंदिर में मौर्यकाल का खंबा है प्रमुख
रतलाम जिले में स्थित इस मंदिर की विशेषता ये है कि, यहां एक खंबा है जो मौर्यकाल से लगा हुआ है। इससे पता चलता है कि विरुपाक्ष महादेव मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है। इस मंदिर के बारे में खास बात ये भी है कि, अब तक किसी इतिहासकार को नहीं पता कि, मंदिर को कब बनाया गया व ये कितना पुराना है। हालांकि, यहां लगे मौर्यकाल के एक खंबे से ये कयास लगाया गया कि, शायद इसे 2500 साल पहले बनाया गया होगा। मंदिर की एक विशेषता ये भी है कि, मंदिर प्रांगण में स्थापित खंबों की मूल गणना भी अब क कोई नहीं कर सका है। इसके अलावा, मंदिर से उज्जैन महाकाल मंदिर जाने के लिए एक गुफा भी है जो सीधे महाकाल मंदिर के प्रांगण में खुलती है। हालांकि, सुरक्षा के मद्देनज़र इस गुफा को बंद कर दिया गया है।
3-महाशिवरात्रि पर भोजपुर महोत्सव का आयोजन, जानिए मंदिर के बारे में खास
महाशिवरात्री के अवसर पर भोपाल से सटे भोजेश्वर मंदिर में आज सुबह से ही भक्तों का तांता लगा हुआ है। सुबह से ही भक्तों के लिए शिव दर्शन शुरु कर दिया गया है। भक्त काफी उत्साह में भोले बाबा की कामना कर रहे हैं। प्रशासन द्वारा सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतेज़ाम किये गए हैं। हर आने जाने वाले की कड़ी निगरानी रखते हुए भक्तों के सहूलत की व्यवस्थाओं का ध्यान रखा जा रहा है। भोजेश्वर मंदिर से जुड़े कुछ रोचक किस्से हैं, जिनके बारे में हम आपरको बताएंगे।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर नामक एक स्थान स्थित शिव मंदिर मध्यकालीन से एक प्रसिद्ध व रहस्यों से भरा शिव मंदिर है, जो भोजपुर शिव मंदिर या भोजेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर को पूरब के सोमनाथ के नाम से भी जाना जाता है। शिवरात्रि के इस पावन मौके पर भोजपुर मंदिर से जुड़ी खास मांन्यताए और रहस्यों के बारे में बताएंगे।
विश्व में एक ही पत्थर से निर्मित सबसे बड़ा शिवलिंग
वैसे तो भोजपुर के बारे आज कम ही लोग जानते हैं, लेकिन मध्यकाल में इस नगर की ख्याती काफी दूर-दूर तक फैली हुई थी। इस नगर को धार के राजा भोज ने स्थापित करवाया था। जानकारों की माने तो इस मध्यकालीन नगर को प्रसिद्धि दिलाने मुख्य श्रेय भोजपुर के भोजेश्वर शिव मंदिर और यहां निर्मित एक विशाल झील को जाता है। राजा भोज द्वारा बनवाए गए इस मंदिर की प्रसिद्धि ‘पूरब के सोमनाथ मंदिर’ के रूप में भी है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग की ऊंचाई 7.5 फीट और परिधि 17.8 फीट है, जो स्थापत्य कला का एक बेमिसाल नमूना माना जाता है। ये विश्व में एक ही पत्थर से निर्मित सबसे बड़ा शिवलिंग है। यह शिवलिंग एक वर्गाकार और विस्तृत फलक वाले चबूतरे पर त्रिस्तरीय चूने-पत्थर की पाषाण-खंडों पर स्थापित है। जानकारों की माते तो, मंदिर का शिखर निर्माण कार्य कभी भी पूर्ण नहीं हो सका था। शिखर को पूरा करने के लिए जो भी प्रयास किए गए उसके अवशेष अब भी मंदिर के प्रांगण में बड़े-बड़े पत्थरों के रूप में पड़े हैं। हालांकि, इस मंदिर का शिखर क्यों नहीं बन सका, इसका स्पष्ट रहस्य कोई नहीं जानता। मंदिर का निर्माण परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज 1010 ई से 1055 ई के बीच कराया था।
4-ओम के आकार की पहा़ड़ी पर बसा है शिवालय, शिव -पार्वती यहां खेलने आते है चौसर-पांसे
मध्य प्रदेश के खंडवा में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि के मौके पर देशभर से श्रद्धालु जुटने लगे हैं। यह ससिलसिला रविवार रात से ही शुरू हो गया। भगवान भोले नाथ के दर्शन और पूजन करने के लिए महिला, पुरुष और बच्चे तड़के सुबह से ही लंबी कतारों में खड़े हैं। पूरा मंदिर परिसर ॐ नमः शिवाय और हर-हर महादेव के नारों के साथ गूंज रहा है। मां नर्मदा के तट पर बसा भगवान भोलेनाथ का यह एक मात्र ज्योतिर्लिंग है, जहां दर्शन मात्र से ही भक्तों का कल्याण हो जाता है। भक्तों के लिए आज दिनभर मंदिर के पट खुले रहेंगे। शाम के बाद भगवान की शाही सवारी निकालकर देर रात विवाह का कार्यक्रम आयोजित होगा।
दुनियाभर में भगवान शिव के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन औकार के आकार की पहाडी पर बसे औंकारेश्वर मंदिर की बात कुछ अलग ही है। मान्यता के अनुसार इस मंदिर में रोज को भगवान शिव और पार्वती यहां आकर चौसर-पांसे खेलते हैं। यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा हैं। ओम के आकार की पहा़ड़ी पर बसा है मंदिर। नर्मदा किनारे बसा ओंकारेश्वर मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसके दर्शन के बिना चारों धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। पुराणों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना राजा मांधाता ने की थी । वे भगवान राम के पूर्वज थे। यह मंदिर वेद कालीन है।
5-मंदिरों में उमड़ा जनसैलाब, गली गली गूंजा बम भोले का जयकारा
जबलपुर में महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर सुबह से ही श्रद्धालू हजारों की संख्या में गुप्तेश्वर महादेव मंदिर पहुंच रहे हैं। हाथों में कांवड़,धतूरा, भांग, बेर आदि के साथ ताड़ के पत्तों से बना दूल्हे का मुकुट लेकर भगवान को भेंट कर रहे हैं। गुप्त गुफा में विराजमान महादेव का जलाभिषेक करते हुए मंत्रोच्चारण के बीच भगवान का पूजन वंदन किया जा रहा है। इस अवसर पर भक्त भंडारा प्रसाद का वितरण कर रहे हैं। बता दें, इसके पहले माता पार्वती और भगवान का अभिषेक पूजन व स्नान कराया गया। तो वही, सिहोरा के बाबाताल स्थित शिव मंदिर में बड़ी संख्या में भक्ता पहुंचकर भगवान का पूजन कर रहे हैं। वहीं, किसानों द्वारा शहर में सुख शांति और अच्छी फसल की कामना की जा रही है। संस्कार धानी के अन्य शिव दरबारों में भी भक्तों की भीड़ उमड़ रही है।
6-पेड़ ने दिया था गोपेश्वर महादेव को जन्म, 250 साल पुराना है मंदिर
श्रावण मास में विशेष रूप से भगवान भोलेनाथ की भक्ति की जाती है। बम भोले के साथ कावड़ यात्राओं का कारवां तो शिवालयों में ओम नम: शिवाय की गुंज से शुरू होता है। यहां सुबह से ही भक्त बड़ी संख्या में दर्शन करने पहुंच रहे हैं। हर ओर बम बम बोले की धूम है। वैसे तो हर एक भक्त के कण कण में भगवान शिव समाए हैं। लेकिन पुराणों के अनुसार माता अहिल्या को सबसे बड़ा शिव भक्त माना गया है। उन्होनें इंदौर शहर में कई स्थानों पर महाशिव के मंदिर बनवाए थे। शहर में कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं, जिनकी महिमा आज भी मानी जाती है, जो की पेड़ के नीचे से प्रकट होने वाले गोपेश्वर महादेव कहलाए जाते हैं। इंदौर शहर में 250 साल पुराना मंदिर है गोपेश्वर महादेव का। इस मंदिर की खासियत यह है कि, यहां विराजे महादेव पेड़ के नीचे से मिले थे। यह बात इतिहास से मालूम पड़ी है। कहा जाता है कि, इस स्थान पर गोपेश्वर महादेव स्वंय प्रकट हुए है।