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भोपाल

OMG: जब निकले नाग के गुच्छे तो डैम से पहले बनाना पड़ा शिव मंदिर

उस समय मैंने काले सर्पों के अलावा मगरमच्छ और गोह को भी मंदिर के बाहर बैठे देखा है। शिवलिंग के पास बैठे-बैठे लगा झटका

भोपालJun 18, 2016 / 05:01 pm

नितेश तिवारी

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भोपाल। नैसर्गिक सौंदर्य के बीच बनाया गया महादेव मंदिर का इतिहास बहुत पुराना तो नहीं, लेकिन अद्भुत है। 30 वर्ष पूर्व बने इस मंदिर के बारे में कई रोचक तथ्य जानने योग्य हैं। इस मंदिर की शुरू से ही देखरेख कर रहे सुनील सिंह ने बताया कि कलियासोत डैम बनाने का ठेका दक्षिण भारत की एक कंपनी एसआरईसी को मिला था। ठेकेदार के लाख प्रयासों के बाद भी बांध का काम रफ्तार नहीं पकड़ रहा था। जहां आज मंदिर है, वहां विशाल टापू था। 


खुदाई में मिले थे नागों के गुच्छे
कंपनी के लोगों ने जब इसे खोदना शुरू किया तो वहां से नागों के गुच्छे निकले। खुदाई पर लगे मजदूर भी घबरा गए। इधर, ठेकेदार को भगवान शिव स्वप्न में दिखे और उन्होंने ठेकेदार से कहा कि जिस स्थान को तू खुदवा रहा है, वह स्थान मेरा है। वहां मंदिर बनाने के बाद ही काम सफल होगा।


ठेकेदार ने बताई थी बात
भगवान शिव के सपने की बात ठेकेदार ने मुझे भी बताई थी। बांध निर्माण के समय मेरा अधिकांश समय वहीं बीतता था। ठेकेदार ने इंजीनियर्स के साथ मिलकर मंदिर का नक्शा डिजायन किया और जैसे ही निर्माण शुरू किया, सिंचाई विभाग के लोगों ने आपत्ति करते हुए रुकवा दिया। मंदिर निर्माण रुकने के बाद मैंने बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं व स्थानीय लोगों के साथ प्रदर्शन किया। 


मंदिर की बाकी आठ भुजाएं वास्तु के हिसाब से डिजायन की गईं
इसके बाद सिंचाई विभाग के अधिकारी कुछ ढीले पड़े और उनके परोक्ष इशारे पर अष्टकोणीय मंदिर का निर्माण वर्ष 1986 में किया गया। मंदिर की डिजायन भी कंपनी के मुखिया रेड्डी ने की थी। रेड्डी का कहना था कि एनर्जी 10 दिशाओं से आती है। आकाश और पाताल को छोड़कर मंदिर की बाकी आठ भुजाएं वास्तु के हिसाब से डिजायन की गईं। मंदिर पर सावन, शिवरात्रि, नवदुर्गा व सोमवार को भीड़ होती है।


शिवलिंग के पास बैठे-बैठे लगा झटका
करीब डेढ़ महीने पहले पुणे के एक वास्तुविद् आए थे। शिवलिंग के पास बैठे-बैठे उन्हें अचानक झटका लगा। उन्होंने अपने कर्मचारियों से गाड़ी में रखे यंत्रों को मंगाया और जांच करने के बाद बताया कि शिवलिंग (पिंडी) के नीचे नैऋत्य से ईशान कोण की तरफ भूमिगत पानी का तीव्र प्रवाह है। वैसे भी वास्तु के अनुसार नैऋत्य कोण में पहाड़ (ऊंचा) और ईशान कोण में जलप्रवाह (नीचा) है। 


बारह महीने होती है पूजा
भूमिगत पानी के चट्टानों से घर्षण के कारण जबर्दस्त ऊर्जा उत्सर्जित हो रही है और पिंडी के आसपास एनर्जी का फ्लो निकल रहा है। यह पॉजिटिव एनर्जी का फ्लो है। मिश्र के पिरामिड की तर्ज पर मंदिर के गुंबद से भी ऊर्जा आ रही है, जो वहां बैठे लोग अर्जित करते हैं। मैं यहां बारहों मास नियमित अभिषेक-पूजन करता हूं। जब पानी ऊपर आ जाता है तो रास्ता बंद हो जाता है। 


मगरमच्छ और गोह को भी मंदिर के बाहर बैठे देखा
उस समय मैंने काले सर्पों के अलावा मगरमच्छ और गोह को भी मंदिर के बाहर बैठे देखा है। 2013 में मंदिर को आने वाले एकमात्र रास्ते पर जब 10 फुट से ज्यादा पानी था तो आना मुश्किल था। बरसात में नाव से मंदिर जाता हूं। यदि सरकार थोड़ा ध्यान दे तो यह जगह बेहतर पर्यटन स्पॉट बन सकती है। यहां नीम, सप्तवर्णी, आंवला, शीशम, जामुन, शरीफा, बेर, मदार, धतूरा, आम पीपल, बेल, शमी, चंदन, तुलसी आदि पेड़-पौधे अपनी सामथ्र्य पर लगाकर पाल रहा हूं।



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