प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने इस संविधान संशोधन पर तत्काल अंतरिम रोक लगाने से इनकार करते कहा कि हम इस मुद्दे पर अपने स्तर पर निरीक्षण करेंगे।
गैर सरकारी संगठन ‘यूथ फॉर इक्वालिटी’ की ओर से तहसीन पूनावाला ने यह जनहित याचिका दाखिल की है।– विवेक मिश्रा, भोपाल
कोर्ट का ये फैसला स्वागत योग्य है। हां उन्होंने सरकार से जवाब जरूर मांगा है, लेकिन तत्काल अंतरिम रोक नहीं लगाकर फैसले की गंभीरता को समझा है।
– विजय शर्मा, ग्वालियर
– एचपी शुक्ला, भोपाल
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान पारित 103 वां संविधान संशोधन विधेयक के अनुसार इस दस प्रतिशत आरक्षण के दायरे में 8 लाख रुपए या उससे कम सालाना आय वाले परिवार या ऐसे परिवार जिनके पास पांच एकड़ या उससे कम कृषि भूमि है आएंगे।
याचिका में वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी मामले में 9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया गया है कि यह संशोधन संविधान के मौलिक ढांचे का उल्लंघन करता है। जनहित याचिका के अनुसार ‘आर्थिक मानदंड आरक्षण देने का का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। संविधान में यह प्रावधान नहीं’
यह संविधान संशोधन इंदिरा साहनी मामले में तय आरक्षण की अधिकतम 50% सीमा का भी उल्लंघन करता है।
3. निजी क्षेत्र में आरक्षण भी गैरकानूनी
निजी गैर वित्तीय सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में आरक्षण टीएम पाइ – पीए इनामदार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है।
8 लाख रु वार्षिक आय की सीमा यह सुनिश्चित करती है कि ओबीसी व एससी/एसटी वर्ग के सभ्रांत लोग आरक्षण का दोहरा लाभ ले सकेंगे, वहीं इन्ही समुदायों के निचला तबका पूरी तरह वंचित रहेगा। यह अनुच्छेद 14 में दिए गए बराबरी के मूल अधिकार का हनन है।
– रामविलास पासवान, केंद्रीय मंत्री