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इस तरह दिया शोध का विवरण
इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन की हाल ही में प्रकाशित एक ताजा शोध में ये दावा किया गया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, फेसमास्क काफी हद तक वैक्सीन जैसा ही काम कर रहा है। क्योंकि, नियमित रूप से फेसमास्क पहनने वाले लोगों के शरीर में 90 फीसदी या उससे अधिक संक्रमण नहीं पहुंच पाता। संक्रमण शरीर में कम मात्रा में पहुंचने से शरीर का इम्यून सिस्टम ही संक्रमण से लड़कर उसे खत्म करता है और आगे उससे लड़ने के लिए शरीर एंटीबॉडी भी डेवलप करने लगता है।
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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एन्वायर्नमेंटल हेल्थ ने की ये बात
शोध पर अपना नजरिया रखते हुए आईसीएमआर के भोपाल स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एन्वायर्नमेंटल हेल्थ (निरेह) के निदेशक और एपिडियोमोलॉजिस्ट डॉ. आरएन तिवारी ने बताया कि, जब से कोविड महामारी की शुरुआत हुई, तभी से इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि, संक्रमण से बचे रहने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना है और मास्क का इस्तेमाल करना है। एक्सपर्ट्स पहले से ही जानते थे कि, मास्क का इस्तेमाल सामाजिक वैक्सीन के रूप में कार्य करेगा, जिसपर हालिया शोध ने मोहर लगाई है। उन्होंने कहा कि, मास्क, संक्रमित मनुष्य से, वायरस को वातावरण में फैलने से बहुत हद तक रोकता है। कोरोना से लड़ते हुए अब तक ये अनुभव रहा है कि, ज्यादातर संक्रमितों में कोई लक्षण प्रकट नहीं होते हैं उनमें वायरस लोड काफी कम होता है।
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मास्क का इस्तेमाल ही सबसे कारगर
माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट और डायरेक्टर एम्स,भोपाल के डॉ. सरमन सिंह ने बताया कि यह पहली स्टडी है जो वैरियोलेशन पर बात करते हुए बताती है कि कोरोना का 10 से 20 फीसदी तक मामूली संक्रमण होना भी इससे बचाव का तरीका है। यानी थ्री-प्लाई मास्क जो वायरस से 70 से 80 फीसदी तक बचाव करता है, वह भी बेहतर है। एन-95 मास्क संक्रमण से 95 फीसदी तक बचाव करता है। जापान, कोरिया व सिंगापुर जैसे देशों ने बिना वैक्सीन मास लेवल पर फेस मास्क के इस्तेमाल से कोरोना को काबू किया है।
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18वीं शताब्दी के वैरियोलेशन सिद्धांत पर आधारित शोध
वैरियोलेशन सिंद्धात को वैक्सीन का जनक माना जाता है। 18वीं शताब्दी के अंत में इंग्लैंड के डॉक्टर एडवड जैनर ने स्मालपॉक्स (छोटी माता) के इलाज के जरिए इस सिद्धांत का पता लगाया गया था। निरेह भोपाल के एपिडियोमोलॉजिस्ट डॉ. योगेश साबदे के मुताबिक, वैक्सीन के से पहले स्मॉलपॉक्स के संक्रमण से लोगों को बचाने इस बीमारी से ठीक हो चुके लोगों शरीर से निकली सूखी त्वचा के मामूली हिस्से को स्वस्थ व्यक्ति की त्वचा पर रगड़ा जाता था। इससे स्वस्थ व्यक्ति में स्मालपॉक्स वायरस का मामूली संक्रमण होता था और वायरस के खिलाफ इम्युनिटी विकसित हो जाती था, इस कारण वह व्यक्ति बाद में बीमार नहीं पड़ता था।