तोड़ दी रूढ़ीवादी परंपराएं
बता दें कि मृतक राधेश्याम सोहानी 70 वर्ष भेल के पूर्व कर्मचारी थे। वे लवकुश नगर में रहते थे, जिनका भोपाल के ही कस्तूरबा अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया। उनकी 4 बेटियां है। कोई बेटा नहीं था। राधेश्याम के दुनिया छोड़कर चले जाने के बाद चारों बेटियों ने रूढ़ीवादी परंपराएं को तोड़ते हुए हिन्दू रीति-रिवाज के साथ अपने पिता का अंतिम संस्कार किया। अंतिम संस्कार के दौरान वहां खड़े सभी लोगों ने चारों बेटियों की तारीफ की। सभी का कहना था कि एक पिता के लिए अंतिम विदाई इससे अच्छी और क्या हो सकती है, जब पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए बेटियों ने बेटों के सारे फर्ज को निभाया है।
पिता ने बेटों की तरह पाला
बड़ी बेटी सुनीता का कहना है कि उनके पिता ने हम चारों बहनों को बेटों की तरह पाला है। हम चारों में कभी भी किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया गया और हमने भी बेटे के न होने की कमी को महसूस नहीं होने दिया। पापा ने सभी की अच्छे घरों में शादी की है। उनका कहना है कि जमाना तेजी से बदल रहा है और लोगों को अपनी सोच भी बदलनी होगी।
महिलाओं का है जमाना
पुराने जमाने की कुरीतियां रही हैं कि दाह संस्कार का काम केवल बेटे ही कर सकते हैं लेकिन अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जो काम बेटे कर सकते हैं, उस काम को बेटियां भी कर सकती हैं। आज महिलाओं का जमाना है, महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। हमने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया है और हम वह सभी कार्य करेंगे, जो एक बेटे को करना चाहिए।