Mere Ram – जहां हुआ सीताजी का स्वयंवर अब वहां है बड़ा मंदिर, जानिए एमपी से क्या है खास कनेक्शन
रामलला प्राण प्रतिष्ठा का दिन जैसे जैसे पास आ रहा है वैसे वैसे देश दुनिया में इसके प्रति लोगों की ललक बढ़ती जा रही है। लोगों में भक्ति भाव बढ़ रहा है और पूरा वातावरण मानो राममय हो गया है। इस ऐतिहासिक मौके पर हम आपको श्रीराम के जीवन से जुड़े अनेक पहलुओं से अवगत करा रहे हैं। पत्रिका डाट काम पर प्रस्तुत है बुंदेलखंड के मेरे राम सीरीज जिसमें आज हम बता रहे हैं एमपी के ओरछा टीकमगढ़ राजवंश के बारे में जिसकी महारानी वृषभानु ने नेपाल में विख्यात नौलखा मंदिर बनवाया था।
महारानी वृषभानु ने नेपाल में विख्यात नौलखा मंदिर बनवाया था।
भोपाल. रामलला प्राण प्रतिष्ठा का दिन जैसे जैसे पास आ रहा है वैसे वैसे देश दुनिया में इसके प्रति लोगों की ललक बढ़ती जा रही है। लोगों में भक्ति भाव बढ़ रहा है और पूरा वातावरण मानो राममय हो गया है। इस ऐतिहासिक मौके पर हम आपको श्रीराम के जीवन से जुड़े अनेक पहलुओं से अवगत करा रहे हैं। पत्रिका डाट काम पर प्रस्तुत है बुंदेलखंड के मेरे राम सीरीज जिसमें आज हम बता रहे हैं एमपी के ओरछा टीकमगढ़ राजवंश के बारे में जिसकी महारानी वृषभानु ने नेपाल में विख्यात नौलखा मंदिर बनवाया था।
सीताजी के बिना श्रीराम अधूरे हैं। सीता का रावण द्वारा हरण करना और राजा राम द्वारा माता सीता का त्यागकर उन्हें वन में अकेले रहने के लिए भेज दिए जाने के दृष्टांत बेहद मार्मिक हैं लेकिन इन्हीं घटनाओं से राम-सीता के अलौकिक प्रेम की दास्तां भी सामने आती है।
रामायण और श्रीरामचरित मानस में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि श्रीराम और सीता का ब्याह स्वयंवर के माध्यम से हुआ था। राजा जनक ने शिव धनुष तोड़नेवाले से सीताजी का विवाह करने की घोषणा की थी। श्रीराम ने अपने गुरू की आज्ञा से शिवजी का धनुष तोड़ दिया और इसी के साथ सीताजी उनकी जीवनसंगिनी बन गई थीं।
नेपाल में जिस जगह सीता स्वयंवर आयोजित किया गया था वहां आज एक बेहद सुंदर और भव्य मंदिर है। नेपाल के जनकपुर में स्थित इस मंदिर को नौलखा मंदिर के रूप में जाना जाता है। विशेष बात यह है कि सीता माता के विवाह के साक्षी इस स्थान का एमपी से खास कनेक्शन है जोकि ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी दर्ज है। दरअसल नौलखा मंदिर का निर्माण एमपी के बुंदेलखंड इलाके की टीकमगढ़ राजवंश की महारानी ने करवाया था।
यूपी और एमपी के बीच फैले बुंदेलखंड में राम के जीवन के कई ऐतिहासिक प्रसंग जुड़े हुए हैं। यहां के ओरछा टीकमगढ़ राजवंश की श्रीराम के प्रति गहरी श्रद्धा और आस्था थी। टीकमगढ़ राजवंश ने अयोध्या और ओरछा में कई भव्य मंदिर भी बनवाए।
राजाओं की तरह राजपरिवार की रानियां भी अनन्य रामभक्त थीं। ओरछा के राजा मधुकरशाह की महारानी गणेश कुंवर 16 वीं सदी में रामलला को अयोध्या से ओरछा ले आईं थीं। इसी टीकमगढ़ राजपरिवार की महारानी वृषभानु कुमारी ने नेपाल के जनकपुर में 1895 में माता जानकी के मंदिर का निर्माण शुरू कराया जिसे बाद में नौलखा मंदिर के नाम से जाना गया।
सीता माता के मायके यानि पड़ोसी देश नेपाल के जनकपुर में भव्य और खूबसूरत मंदिर बनवानेवाली महारानी वृषभानु कुमारी राजा महेन्द्र प्रताप सिंह बुंदेला की पत्नी थीं। उन्होंने पुत्र प्राप्ति की कामना से सीता माता के मंदिर निर्माण का संकल्प लिया थां। उनके वंशज और रिश्ते में वृषभानु कुमारी के नाती विश्वजीत सिंह बताते हैं कि मंदिर निर्माण के लिए नौ लाख रुपए खर्च करने के संकल्प लेने के कारण इसका नाम नौलखा पड़ गया थां। यह मंदिर सन 1911 में बनकर तैयार हुआ।
तुरंत फल देती है मां काली की साधना, जानें उनका प्रिय दिन और मंत्र महारानी वृषभान कुंवर के नाम का शिलालेख भी लगा बताया जाता है कि महारानी वृषभानु कुंअर पुत्र की कामना लिए नेपाल गईं। उन्होंने पुत्र की मनौती मांगी और पुत्र प्राप्ति पर माता जानकी के भव्य मंदिर निर्माण का संकल्प लिया। कुछ समय बाद राजपरिवार में पुत्र का जन्म हुआ जिसके बाद उन्होंने जनकपुर में नौलखा मंदिर का निर्माण करवाना शुरू कर दिया। मंदिर में आज भी इसके साक्ष्य है। यहां महारानी वृषभान कुंवर के नाम का शिलालेख भी लगा है।
खास बात यह भी है कि राम सीता विवाह की तिथि यानि विवाह पंचमी का पर्व ओरछा और जनकपुर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस मौके पर ओरछा के रामराजा सरकार मंदिर से भक्त नेपाल के जनकपुर जाकर कार्यक्रमों में शामिल होते थे। जनकपुर के नौलखा मंदिर से भी कई भक्त और संत विवाह पंचमी मनाने ओरछा आते थे।
सिंदूर लेकर जाते हैं दंपत्ति मंदिर परिसर में विवाह मंडप भी है। मान्यता है कि इसी मंडप में श्रीराम और माता सीता का विवाह हुआ था। विवाहित दंपत्ति यहां से सिंदूर लेकर जाते हैं। विवाह के इच्छुक युवा भी यहां आते हैं।
देवी सीता को समर्पित यह मंदिर राजपूत वास्तु और स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है। मंदिर 4860 वर्ग फुट में है और इसके आसपास 100 से ज्यादा तालाब और कुंड हैं। इसे जनकपुर धाम के नाम से भी जाना जाता है।
एक नजर में – 16 साल में पूरा हुआ था मंदिर का निर्माण – 1895 से प्रारंभ हुआ निर्माण कार्य – 1911 में बनकर तैयार हुआ मंदिर – मंदिर में 57 साल से चल रहा अखंड कीर्तन – सन 1967 से राम और सीता नाम का हो रहा जाप
यह भी खास- कुछ इतिहासकार बताते हैं कि 1657 ईस्वी में यहां माता सीता की सोने की मूर्ति मिली थी। कहां है नौलखा मंदिर नेपाल के जनकपुर में जानकी मंदिर है। इसे ही नौलखा मंदिर कहा जाता है। यह नेपाल के काठमांडू से करीब 400 किलोमीटर दूर है। काठमांडू तक हवाई सेवाएं भी उपलब्ध हैं। यहां से बस द्वारा जनकपुर जा सकते हैं।
भारत से जनकपुर कैसे पहुंचें 1. फ्लाइट से जनकपुर कैसे पहुंचें – जनकपुर में हवाई अड्डा है लेकिन किसी भी भारतीय शहर से जनकपुर के लिए कोई सीधी उड़ान नहीं है। यहां के लिए काठमांडू से दैनिक उड़ानें हैं। कुछ एयरलाइंस की छोटे विमानों की उड़ानें उपलब्ध हैं।
2. ट्रेन से जनकपुर कैसे पहुंचें जनकपुर रेलवे स्टेशन है हालांकि इसे आरामदायक नहीं माना जाता है। भारत में ट्रेन से जयनगर तक पहुंचकर वहां से टैक्सी लेना बेहतर विकल्प माना जाता है। 3. सड़क से जनकपुर कैसे पहुंचें भारत में जमनागाय या सीतामढी से जनकपुर क्रमशः 30 किमी और 45 किमी दूर है। यहां से जनकपुर के लिए टैक्सी ले सकते हैं। यहां और आसपास के शहरों से जनकपुर के बस सेवा उपलब्ध है। काठमांडू से भी लगातार बस मिलती हैं।