इसे मोदी सरकार के आर्थिक आधार पर 10 फीसदी सवर्ण आरक्षण की काट भी कहा जा रहा है। सियासी गलियारों में ऐसी चर्चा है कि प्रदेश में इस बार के मतदान को आरक्षण का मुद्दा भी प्रभावित करेगा, इसलिए कहा जा रहा है कि प्रदेश की सभी 29 में से 10 लोकसभा सीटों पर जीत की चाबी अन्य पिछड़ा वर्ग के हाथों में है।
प्रदेश की आठ लोकसभा सीटों पर 50 फीसदी से ज्यादा आबादी ओबीसी की है। विंध्य की दो सीटों पर 48 फीसदी के करीब है। पिछले चुनावों में पिछड़ा वर्ग आरक्षण ऐसा मुद्दा नहीं रहा, जिसके आधार पर वोट पड़े हों, लेकिन इस बार कमलनाथ ने इसे जीत का आधार बनाने की कोशिश की है। भाजपा अब इसकी काट तलाशने के लिए रणनीति तैयार कर रही है।
इन सीटों पर ओबीसी फैक्टर
भोपाल, जबलपुर, दमोह, खजुराहो, खंडवा, होशंगाबाद, सागर, मंदसौर, सतना और रीवा।
पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार पर नजर
इ न 10 सीटों पर कांग्रेस-भाजपा को अब जातिगत समीकरण साधने होंगे। अभी तक इन सीटों के उम्मीदवार का फैसला जातिगत आधार पर नहीं हुआ है।
कांग्रेस में पिछड़ा वर्ग से खंडवा से अरुण यादव, दमोह से रामकृष्ण कुसमरिया, मंदसौर से मीनाक्षी नटराजन, सागर से प्रभुराम ठाकुर, होशंगाबाद से राजकुमार पटेल और रीवा से देवराज सिंह पटेल दावेदारी कर रहे हैं।
वहीं, भाजपा में दमोह से प्रहलाद पटेल, सागर से लक्ष्मीनारायण यादव, होशंगाबाद से राव उदयप्रताप सिंह और सतना से गणेश सिंह पिछड़ा वर्ग से आते हैं।
हमने पिछड़े वर्ग के आरक्षण को बढ़ाकर अपना वचन निभाया है। ये पिछड़ा वर्ग की लंबे समय से चली आ रही मांग थी। मध्यप्रदेश ऐसा पहला राज्य है, जिसमें पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण है। हमने किसी वर्ग के साथ अन्याय नहीं किया है।
– कमलनाथ, मुख्यमंत्री
ओबीसी को दिया गया ये सिर्फ चुनावी आरक्षण है। प्रदेश सरकार ने चुनावी लाभ लेने के लिए ओबीसी आरक्षण का कदम उठाया है। प्रदेश सरकार ने सवर्णों के 10 फीसदी आरक्षण को समिति बनाकर लटका दिया है, जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा।
– गोपाल भार्गव, नेता प्रतिपक्ष
10 फीसदी सवर्ण आरक्षण का असर
केंद्र के 10 फीसदी सवर्ण आरक्षण को बड़े राजनीतिक बदलाव के रूप में आंका जा रहा था। प्रदेश के विधानसभा चुनाव में हुई भाजपा की हार के पीछे सवर्णों की नाराजगी को बड़ी वजह माना गया था।
प्रदेश में सपाक्स चुनाव में कोई करिश्मा नहीं कर पाया, लेकिन 15 साल के भाजपा शासन को बेदखल करने में उसकी अहम भूमिका मानी जाती है। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का आरक्षण पर ‘माई का लाल’ वाले बयान ने सवर्णों को नाराज कर दिया और वे भाजपा के खिलाफ सड़क के साथ-साथ सियासत में उतर आए।