भारत के पदकों की कुल संख्या 25 पहुंच गई है। इसमें पांच स्वर्ण, नौ रजत और 11 कांस्य हैं। कपिल परमार
सीहोर जिले के रहने वाले हैं। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कपिल की सराहना करते हुए शुभकामनाएं दी हैं।
विपरीत परिस्थितियों में शुरु किया खेल
कांस्य पदक विजेता कपिल जब 15 वर्ष के थे । तब 2009-2010 में खेत में काम करते समय करंट लगने से उनकी आंखों से रोशनी चली गई थी। कपिल 80% ब्लाइंड है। वे 6 महीने कोमा में भी रहे हैं। पैरा जूडो में जे1 वर्ग में वे खिलाड़ी हिस्सा लेते है जो देख नहीं सकते या उनकी कम दृष्टि होती है। उन्होनें विपरीत परिस्थितियों में जू़डो खेलना शुरु किया था। कपिल परमार ने अभी तक भारत का प्रधिनिधित्व 17 अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में किया है। जिसमें से उन्होंने अभी तक 8 स्वर्ण पदक सहित कुल 13 अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते है। वे अभी अपनी कैटेगिरी में विश्व में दूसरे नंबर के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी हैं।
सबसे बड़ी प्ररेणा है भाई -कपिल परमार
कपिल के परिवार में 4 भाई और एक बहन है। कपिल के पिता टेक्सी ड्राइवर है। उनकी बहन प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका है। असफलता के बाद भी कपिल ने जूडो खेलना छोड़ा नहीं । कपिल परमार अपने भाई ललित के साथ मिलकर चाय की दुकान चलाते हैं। उनका भाई उनकी प्ररेणा का स्त्रोत व आज भी आय का प्रमुख स्त्रोत हैं । ये भी पढ़ें: Ladli Behna Yojana: लाड़ली बहनों के लिए खुशखबरी, इन महिलाओं को दोबारा मिलेगा योजना का लाभ गांव में है जश्न का माहौल
पेरिस पैरालिंपिक में कांस्य पदक जीतने के बाद कपिल के परिवार, गांव के आस-पास के लोगों ने जश्न मनाया शुरु कर दिया है। गांव में घर-घऱ मिठाई बंटी गई। आतिशबाजी और डोल नगाड़ो पर जमकार दोस्तों ने डांस किया । सभी को कपिल से उम्मीद थी कि वह देश के लिए पदक जीतकर लाए। पहले से ही जश्न मनाने की तैयारी की गई थी।
भोपाल में लिया शुरुआती प्रशिक्षण
कपिल ने भोपाल के लालघाटी स्थित श्री ब्लिस मिशन फॉर पैरा एंड ब्राइट संस्था में 2017 से प्रशिक्षण शुरू किया। कुछ समय के बाद उनके खेल में काफी अच्छा प्रभाव आया। जिसके बाद वह राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा खेलने लगे। कोच ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और कड़ी मेहनत की । फिर वह खेल विभाग के टीटी स्टेडियम से जुडे़। अब वह लखनऊ की ब्लाइंड एंड पैरा जूडो एसोसिएशन में मुनव्वर अंजार से प्रशिक्षण लेते हैं। कपिल हमारी उम्मीदों पर खरा उतरे है, अकादमी में रहते उन्होंने बहुत मेहनत की और प्रशिक्षकों का भी बहुत बढ़ा योगदान है। – मध्यप्रदेश खेलमंत्री व खेल संचालक