आर्या श्रीवास्तव की बड़ा तालाब संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि भोपाल झीलों के लिए जाना जाता है लेकिन अब झीलों का शहर खतरे में है। जब कानून नहीं बना था तब प्रशासन जिसकी लाठी उसकी भैंस, सत्ता बंदूक की नली से निकलती है, भीड़तंत्र जैसे सिद्धांतों पर आधारित था। लेकिन अब विकास, शिक्षा और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के लिए कलम तलवार से शक्तिशाली, कानून एवं व्यवस्था की समस्या से कानून का शासन छीना नहीं जा सकता है जैसे सिद्धांतों पर आधारित है। यह पंक्तियां भोपाल के जिला प्रशासन और उच्चाधिकारियों की अक्षमता और नाकामी के संबंध में कही जा रही हैं जो बड़ा तालाब के अतिक्रमण को हटाने में अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं। जबकि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर की वेटलैंड साइट है। प्रशासन के अधिकारी इसलिए अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर पाए क्योंकि वहां लॉ एंड ऑर्डर की समस्या पैदा हो गई, भीड़ ने उन्हें घेर लिया आदि। यह िस्थति तब है कि उनके पास इतना बड़ा अमला है।
कई बार आदेश फिर भी 18 नाले सीधे मिल रहे तालाब में एनजीटी ने कहा है कि कहने को तो भोपाल अति विकसित शहर है लेकिन यहां 62 नालों का पानी बिना ट्रीटमेंट के सीधे जलस्रोतों जैसे बड़ा तालाब में मिल रहा था। इससे लाखों लोगों को पेयजल की सप्लाई की जाती है। कई बार आदेश के बावजूद अभी भी 18 नाले सीधे तालाब में मिल रहे हैं। यह बहुत दयनीय िस्थति है कि रोज 390 एमएलडी सीवेज निकल रहा है जबकि ट्रीटमेंट की व्यवस्था केवल 130 एमएलडी की है।
यह बहुत दुर्भायपूर्ण कि मुख्य सचिव भी कार्रवाई नहीं करा सके
एनजीटी ने कहा है कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुख्य सचिव जैसा प्रशासन का मुखिया भी ट्रिब्यूनल के आदेश का पालन नहीं करा पाया।
एनजीटी ने कलेक्टर को समिति बनाकर तालाब के भदभदा तरफ के हिस्से का सीमांकन कराने और अतिक्रमण चिन्हित करने और उन्हें हटाने के निर्देश दिए थे। इसके बाद नगर निगम द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में बताया गया कि सर्वे कर 227 अतिक्रमण चिन्हित कर लिए हैं लेकिन इन्हें भी हटाया नहीं गया है क्योंकि यहां कुछ जमीन वक्फ बोर्ड की बताई जा रही है और कुछ निजी। इसके लिए एसडीएम टीटी नगर और वक्फ बोर्ड को पत्र लिखे गए हैं। इस प्रकार एक दूसरे विभागों पर जिम्मेदारियां डाली जाती रही। इसके बाद एनजीटी ने मुख्य सचिव को भी निर्देशित किया था कि वह 3 महीने में कार्यवाही कर रिपोर्ट पेश करें। इसमें भोपाल में सीवेज ट्रीटमेंट के इंतजाम, एसटीपी की िस्थति, उससे निकलने वाले पानी से तालाबों को रीचार्ज करने और जलस्रोतों के आसपास अतिक्रमण हटवाने और उसकी मॉनीटरिंग की समुचित व्यवस्था के निर्देश दिए गए थे। लेकिन कोई कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी। जल स्रोतों में सीवेज मिलने से नहीं रोक पाने पर एमपीपीसीबी ने नगर निगम पर 25 करोड़ का पर्यावरण क्षति हर्जाना लगाने का नोटिस भी जारी किया था।
तीन माह में करें कार्रवाई, जुर्माना भी लगेगा
एनजीटी ने कलेक्टर और निगम कमिश्नर को अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई और जलस्रोतों में सीवेज मिलने से रोकने के लिए तीन माह का समय दिया है। ट्रिब्यूनल ने कहा है कि इस समय के बाद तालाब में अनुपचारित सीवेज मिलता हुआ नहीं पाया जाना चाहिए। एमपीपीसीबी को सीपीसीबी की गाइडलाइन के अनुसार पर्यावरण क्षति हर्जाना आकलित करने के भी निर्देश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई 12 मार्च को तय की गई है।
एनजीटी ने यह भी उठाए सवाल
– अतिक्रमण हटाने के लिए संसाधन और मैन पॉवर नहीं मिलना समझ से परे है। – इतनी बड़ी पुलिस फोर्स होने के बावजूद सरकारी अमला चंद लोगों के विरोध पर बिना कार्रवाई वापिस कैसे लौट आया।
– इसका भी कोई कारण नजर नहीं आता कि अतिक्रमण हटाने जैसी कार्रवाई और कानून के पालन के लिए पुलिस बल नहीं मिला। यदि ऐसा है तो डीजीपी को व्यक्तिगत रूप से इसे देखना चाहिए।
– निगम कमिश्नर ने अतिक्रमण हटाने के लिए चार माह का समय मांगा था। लेकिन समय गुजर गया कार्रवाई नहीं हुई। इसके लिए सभी अधिकारी जिम्मेदार हैं।