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भोपाल

सूबे में 8.54 लाख गाय-सांड़-बैलों का रेला… शहर हों या अंचल की सड़कें जानलेवा हुआ जमावड़ा

पत्रिका अलर्ट… – मध्य प्रदेश की ताकत… देश का दूसरा सबसे ज्यादा गो-वंश वाला राज्य, लेकिन अब मुसीबत… खुले में छोडऩे से आवारा घूम रहे पशु- खेती में रसायनों-मशीनीकरण की आंधी के चलते सांड़ों-बैलों की उपयोगिता घटी तो गायों के बूढ़े होने व दूध कम होते ही निराश्रित छोडऩे का है ट्रेंड – समस्या विकराल होते देख सरकार ने बनाई नीति… प्रदेश में एक गो-अभयारण्य और 3254 ग्राम पंचायतों में गो-शालाएं खोलने के लिए 170 करोड़ रुपए की भारी राशि कर रहे खर्च

भोपालDec 08, 2022 / 08:08 pm

shyam singh tomar

सूबे में 8.54 लाख गाय-सांड़-बैलों का रेला... शहर हों या अंचल की सड़कें जानलेवा हुआ जमावड़ा

सूबे में 8.54 लाख गाय-सांड़-बैलों का रेला… शहर हों या अंचल की सड़कें जानलेवा हुआ जमावड़ा

श्याम सिंह तोमर
भोपाल. मध्य प्रदेश की ताकत है कि यह देश का तीसरा सबसे अधिक गो-वंश वाला राज्य है। इनकी बदौलत दूध उत्पादन में भी सूबे का मुकाम देश में शीर्ष तीन राज्यों में शुमार है। यही खूबी अब मुसीबत बन चुकी है। राज्य में लाखों गो-वंश के नेशनल और स्टेट हाइवे पर घूमने के कारण ट्रैफिक जाम, दुर्घटनाएं, खेतों में घुसकर फसलें नष्ट करने, जल स्रोतों में गिरने-मरने की घटनाएं भी बढ़ गईं। दरअसल, इसके पीछे खेती में आधुनिकता की अंधाधुंध आंधी के साथ गो-पालकों का लापरवाह रवैया जिम्मेदार है, जिनके कारण गाय, बैल और सांड़ दरबदर हो गए। सरकारी रिकॉर्ड में निराश्रित घोषित इन पशुओं के कारण प्रदेश के महानगरों से लेकर हर जिले में रोजाना सड़कों पर दुर्घटनाएं हो रही हैं, जिसमें आम लोग और बेजुबान दोनों जान गंवा रहे हैं। डेयरी एवं पशुपालन विभाग के आंकड़ों पर भरोसा करें तो सूबे में 187.50 लाख यानी एक करोड़ 87 लाख से अधिक गो-वंश है। भैंस वंश की संख्या 103 लाख यानी एक करोड़ तीन लाख आंकी जा रही है। इस तरह कुल दुधारू पशुओं की संख्या 290 लाख यानी 2 करोड़ 90 लाख से अधिक है। पिछले कुछ सालों में खेती में यंत्रीकरण और रसायनों की बेतहाशा झोंक ने किसानों और पशु पालकों को गो व भैंस वंश के पालन से दूर करना शुरू कर दिया है। इसके कारण कृषि उत्पादन भले ही बढ़ा हो लेकिन महानगरों-जिलों को दूसरी तरह की समस्याओं ने घेर लिया है। सड़कों पर गो-वंश आने के बाद वाहन चालक दुर्घटनाग्रस्त होकर जान तक गंवा रहे हैं। चारे की कमी के कारण ये ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में घुसकर फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। विकराल होती समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार को वर्ष 2020 में नीति बनानी पड़ी। 170 करोड़ रुपए की लागत वाली नई योजना में सबसे अधिक फोकस राज्य में गो-शालाएं खोलने और उनमें गायों की तीमारदारी पर है। इनके संचालन की गतिविधियों से स्वयंसेवी संगठनों यानी एनजीओ और महिला स्व-सहायता समूहों को भी जोड़ा गया है। राज्य में पांच लाख गो-वंश के लिए 2000 गो-शालाएं खोलने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है।
फैक्ट फाइल
– 1.87 करोड़ से अधिक गो-वंश है प्रदेश में
– 1.3 करोड़ से अधिक भैंस वंश की है संख्या
– 2.90 करोड़ कुल दुधारू पशु हैं राज्य में
– 8.54 लाख निराश्रित गो-वंश दर्ज हैं 20वीं पशु संगणना में
– 170 करोड़ रुपए के बजट के साथ शुरू की मुख्यमंत्री गो-सेवा योजना
– 3254 ग्राम पंचायतों में योजना के तहत गो-शालाएं खोलनी हैं
– 1404 गो-शालाएं ग्राम पंचायतों में बन चुकी हैं पहले चरण में
– 93450 गो-वंश को आश्रय देने का है दावा
– 2000 गो-शालाएं खोलना बाकी, जिनमें पांच लाख गो-वंश को मिलेगा आसरा
– 627 स्वयंसेवी संस्थाओं की गो-शालाओं में हैं 1 लाख 83 हजार 699 गो-वंश
– 1673 पंजीकृत गो-शालाओं में रहने वाले 2.77 लाख से अधिक के लिए दिया जा रहा अनुदान
गो-वंश की संख्या के हिसाब शीर्ष राज्य
1. राजस्थान
2. उत्तर प्रदेश
3. मध्य प्रदेश
4. पंजाब-हरियाणा व गुजरात
5. बिहार व महाराष्ट्र
6. छत्तीसगढ़
नोट- दक्षिण भारत के राज्यों में गो-वंश की संख्या लगातार घटती जा रही है।

20वीं संगणना के आंकड़ों में लाखों गोवंश निराश्रित श्रेणी में
हर पांच वर्ष पर होने वाली पशु गणना के तहत साल 2019 में हुई 20वीं पशु संगणना के अनुसार राज्य में निराश्रित गो-वंश की संख्या 8 लाख 54 हजार से अधिक है। अब अगली यानी 21वीं पशु संगणना वर्ष 2024 में होगी, जिसमें निराश्रित की संख्या बढ़कर दोगुनी भी हो सकती है। देश-प्रदेश में पिछले कुछ सालों में रासायनिक खाद पर निर्भरता, खेती में मशीनों के उपयोग व यंत्रीकरण के चलते बैलों की उपयोगिता कम होती चली गई। इसके चलते किसानों-पालकों ने पशुओं को पालना छोड़ दिया। जिनके पास पहले से थे, उन्होंने भी इनसे मुंह फेरना शुरू कर दिया। इसी के कारण निराश्रित गोवंश की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हो गई है।
सूखा और हरा चारा की कमी भी बड़ी समस्या
मालूम हो कि प्रदेश में 50 से 60 फीसदी तक चारे की उपलब्धता है, यानी मांग से आधी। गर्मी के मौसम में भूसे की कीमत बेहताशा बढ़ जाती है। दरअसल, ट्रैक्टर से जुताई और हार्वेस्टर से फसलों की कटाई के कारण सूखा चारा मिलना दूभर हो गया है। खेतों में कचरे से मुक्ति के नाम पर आधी कटी पराली जलाकर रही-सही कसर पूरी कर दी। प्रदेश में किसान धीरे-धीरे हरा चारा उगाना भी कम करते जा रहे हैं। इसके कारण राज्य में हर साल चारे का संकट मुंह खोलकर खड़ा हो रहा है। पशुओं का खेतों का बर्बाद करने का क्रम इसी वजह से हो रहा है, क्योंकि उन्हें भूखा रहना पड़ रहा है। ऐसे में किसानों की लागत घटने के बजाय बढ़ रही है, क्योंकि उन्हें लंबे-चौड़े खेतों की फेंसिंग करवानी पड़ रही है। रातभर खेतों की चौकीदारी करनी पड़ रही है।
ऑपरेशन-1
हालात भयावह हुए तो सरकार ने युद्ध स्तर पर किए प्रयास
राज्य सरकार ने 170 करोड़ रुपए के बजट वाली मुख्यमंत्री गो-सेवा योजना शुरू की है, जिसमें 3254 ग्राम पंचायतों में गो-शालाएं खोलने को स्वीकृत दी है। पहले चरण में इनमें से 1404 गोशालाएं बन चुकी हैं, जिनमें 93 हजार 450 गोवंश को आश्रय देने का दावा है। अभी 1841 गो-शालाओं का काम चल रहा है, जिनमें 5 लाख गो-वंश को रखा जा सकेगा। चारे की कमी से निपटने के लिए हर गोशाला के पास पांच एकड़ का चारागाह भी विकसित किया जा रहा है। लेकिन ये उपाय ऊंट के मुंह में जीरा बराबर है, अत: हर किसान अगर खेती की जमीन में से 10 फीसदी हरे चारे के लिए आरक्षित करे तो मांग पूरी हो जाएगी।

ऑपरेशन-2
सूबे की 1673 गो-शालाओं में पल रहे 2.77 लाख पशुओं के लिए अनुदान
डेयरी एवं पशुपालन विभाग के आंकड़ों के हिसाब से सूबे की 1673 पंजीकृत गो-शालाओं में पाले जा रहे 2 लाख 77 हजार से अधिक के लिए अनुदान दिया जा रहा है। इनमें प्रत्येक पशु को हर दिन के लिए 20 रुपए के मान से अनुदान राशि दी जाती है। इन सक्रिय श्रेणी वाली गो-शालाओं के संचालन का जिम्मा ग्राम पंचायतों के हवाले है। विशेषज्ञों का कहना है कि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की तरह अपने प्रदेश में भी गोधन न्याय योजना शुरू की जा सकती है। इस योजना से लाभार्थियों की आय में वृद्धि होती है और पशुओं की देखभाल भी हो जाती है। ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि प्राकृतिक खेती के लिए गोबर से कई तरह के खाद बनाए जातेे हैं। इन्हें फास्टफेटिक रिच ऑर्गेनिक मेन्योर की श्रेणी में रखा गया है। बायो फर्टिलाइजर्स जिनमें राइजोबियम आदि की भी जरूरत पड़ती है।
ऑपरेशन-3
407 महिला स्व-सहायता समूहों को भी दिया जिम्मा
राज्य में 2020 से लागू मुख्यमंत्री गो-सेवा योजना के तहत गो-शालाओं में से कुछ संचालन ग्राम पंचायत तो कहीं-कहीं महिला स्व-सहायता समूहों से करवाया जाता है। वहीं कुछ ऐसी भी हैं जिन्हें ग्राम पंचायत स्तर पर एनजीओ से करवाया जा रहा है। इसी कड़ी में 407 गो-शालाओं के संचालन यानी चलाने का जिम्मा महिला स्व-सहायता समूहों को दिया गया है। इसका फायदा ये है कि समूह की महिलाएं गंभीरता से इस काम को कर रही हैं तो उनके जीविकोपार्जन में मदद हो रही है। ये समूह गोबर और गो-मूत्र से साबुन, शैम्पू, उबटन, धूपबत्ती, गो-शिल्प, गो-दीप, जैविक खाद, कीट नियंत्रक और कंडे आदि बनाकर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रहे हैं। 10 गो-शालाएं प्रदेश के केंद्रीय कारागारों में संचालित हैं। रिकॉर्ड के मुताबिक राज्य में 627 स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से संचालित गो-शालाओं में 1 लाख 83 हजार 699 गोवंश रहते हैं।
गो-शालाओं की मॉनिटरिंग के अब ये सिस्टम
गो-शालाओं में पशुओं की स्थिति जांचने और मॉनीटरिंग के लिए जिला स्तर पर उप-संचालक पशु चिकित्सा सेवाओं को जिम्मा दिया गया है। इसके अलावा सॉफ्टवेयर पर जानकारी सतत अपडेट की जाती है। प्रत्येक पशु की टैगिंग कर रिकॉर्ड रखा जाता है तो उनका टीकाकरण भी इसका जरिया है। उधर, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अधीन नस्ल सुधार की गतिविधियां चला रखी हैं। इनमें सामान्य सीमन, सेक्सशॉर्टेड सीमन, भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक यानी एम्ब्रियो ट्रांसप्लांट तकनीक (ईटीटी), इनविट्रो फर्टीलाइजेशन तकनीक (आईवीएफ), गोकुल ग्राम, नेशनल कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर (एनकेवीसी) आदि शामिल हैं।
मप्र की प्रजनन नीति के अनुसार देसी नस्लों का संरक्षण किया जा रहा है
दूध उत्पादन की तुलना में पशुधन अधिक है। दरअसल, जैसे ही दूध बंद हुआ पालक उन्हें छोड़ देते हैं। इसी तरह से दूसरी श्रेणी कम दूध देने वाली गायों की है। कृषि यंत्रीकरण के कारण नर वत्सों यानी बैल-सांड़ आदि का उपयोग न के बराबर है। इसलिए भारत सरकार का गोकुल मिशन नस्ल सुधार कार्यक्रम राज्य में लागू है। इनमें साहीवाल, गिर, थारपाकर, रावी, कांकरेज, रेड सिंधी, हरियाणा आदि नस्लों को बढ़ावा दिया जा रहा है। मध्य प्रदेश की प्रजनन नीति के अनुसार देसी नस्लों का संरक्षण किया जाना है। इसके लिए दूध उत्पादन बढ़ाने (नस्ल सुधार) में चयनित प्रजनन पद्धति समेत आईवीएफ, एमओईटी, सेक्सशॉर्टेड सीमन को अपनाया जा रहा है। कोशिश है कि नर वत्सों की संख्या सीमित करना है। 90 फीसदी फीमेल और 10 फीसदी मेल पर लक्ष्य किया जा रहा है।
-डॉ. एचबीएस भदौरिया, प्रबंध संचालक, मप्र राज्य पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम

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