भोपाल समेत कई जिलों में सोमवार को पुरानी पेंशन के मुद्दे पर कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया। भोपाल में कर्मचारी हाथों में तख्तियां और सिर पर एनपीएस की टोली पहनकर नारेबाजी कर रहे थे। वल्लभ भवन के कर्मचारियों ने गेट नंबर 6 पर प्रदर्शन किया। नारे लगाते हुए एक रैली भी निकाली, बाद में ज्ञापन भी सरकार के नाम सौंपा। कर्मचारियों का कहना है कि साल 2005 में पुरानी पेंशन बंद कर दी गई थी। उसके बाद जो कर्मचारी सेवा निवृत्त हो रहे हैं उन्हें 800 से डेढ़ हजार रुपए तक ही पेंशन मिल रही है। जो जीवन यापन करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
राज्य सरकार तत्काल लागू करें
भोपाल में तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रदेश सचिव उमाशंकर तिवारी कहते हैं कि एक जनवरी 2005 के बाद जो भी सरकारी भर्ती हुई है, उसमें पुरानी पेंशन लागू नहीं है। जो बहुत ही गलत निर्णय है। कर्मचारी के लिए इससे ज्यादा दुखदायी समस्या कोई नहीं हो सकती। शिवराज सरकार को कर्मचारियों की पुरानी पेंशन प्रणाली को तत्काल लागू करना चाहिए। क्योंकि सेवानिवृत्ति के बाद कई कर्मचारी बीमारियों की गिरफ्त में भी आ जाते हैं। उन्हें परिवार का साथ नहीं मिल पाता है, ऐसे में वे अपना ध्यान रख सकें। ऐसे में पुरानी पेंशन स्कीम ही सभी सरकारी कर्मचारियों को राहत देगी। नई पेंशन स्कीम में कर्मचारी या उनके परिवार का जीवन यापन करना मुश्किल हो जाएगा। मध्यप्रदेश में इस योजना को लागू कराने के लिए प्रदेश के साढ़े सात लाख से अधिक कर्मचारी अपनी बात मनवाकर रहेंगे।
खरगौन में प्रदर्शन
इधर, खरगौन में भी प्रदर्शन तेज हो गए हैं। कर्मचारियों ने प्रदर्शन कर नारेबाजी की। नौकरी खत्म, बुढ़ापा भारी, नेता खा गए पेंशन हमारी…। जो पुरानी पेंशन की बात करेगा वहीं प्रदेश पर राज करेगा…। जैसे नारों के बीच एक बार फिर शिक्षकों, कर्मचारियों-अधिकारियों ने पुरानी पेंशन लागू करने की मांग को लेकर एकजुटता दिखाई। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के बैनर तले अनाज मंडी में 52 विभागों के 2 हजार से अधिक शिक्षक, अधिकारी-कर्मचारी इकट्ठा हुए। यहां से शाम 4 बजे शहर में प्रभावी रैली निकालकर शक्ति प्रदर्शन किया।
कर्मचारियों ने कहा- जीवन के अनमोल 24 साल नौकरी को दिए। समर्पित भाव से सेवाएं दी। आस थी कि सेवानिवृत्ति पर सम्मानजनक पेंशन मिलेगी। लेकिन किसी के हाथ में 800 को किसी के हिस्से हजार रुपए आ रहे हैं। ऐसे में उम्र के अंतिम पढ़ाव पर खुद के साथ परिवार का भरण पोषण करना चुनौती बन गया है। पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर हाथों में मांगों के समर्थन में विभिन्न स्लोगन लिखे महिला अधिकारी-कर्मचारी, शिक्षक-शिक्षिकाएं नारेबाजी करते हुए चिलचिलाती धूप में सड़कों पर उतरे। नारों में कर्मचारियों का आक्रोश साफ झलक रहा था। एसडीएम कार्यालय पहुंचे कर्मचारियों ने राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुखमंत्री के नाम तहसीलदार को ज्ञापन सौंपा। संघ के जिलाध्यक्ष ग्यारसीलाल पटेल, जिला प्रभारी दिनेश पटेल ने कहा यह अंतिम निवेदन है। यदि इसके बाद भी सरकार ने कर्मचारियों के बुढ़ापे की लाठी को गंभीरता से नहीं लिया तो 7 लाख से अधिक कर्मचारियों को अपने भविष्य को गंभीरता से लेकर मैदान संभालना होगा।
नई पेंशन में क्या है
साल 2004 में सरकार ने राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) नाम से नई पेंशन योजना शुरू की थी। एनपीएस सरकारी कर्मचारियों को निवेश के लिए प्रोत्साहन देती है। रिटायरमेंट के बाद पेंशन राशि का एक हिस्सा एकमुश्त निकालने की छूट है। बाकी रकम के लिए एन्युटी प्लान खरीद सकते हैं। एन्युटी एक तरह का इंश्योरेंस प्रोडक्ट है। इसमें एकमुश्त निवेश किया जाता है। इसे मंथली, क्वाटरली या सालाना विड्रॉल किया जा सकता है। कर्मचारी की मृत्यु होने तक उसे नियमित आमदनी मिलती है। मृत्यु के बाद पूरा पैसा नामिनी को मिलता है। नई पेंशन स्कीम में कर्मचारियों को बहुत कम फायदे मिलते हैं। उनका भविष्य सुरक्षित नहीं है। सेवानिवृत्त होने के बाद भी जो पैसा उन्हें मिलेगा, उस पर टैक्स भी देना पड़ेगा।
क्या थी पुरानी पेंशन योजना
भाजपा की अलट सरकार ने 1 अप्रैल 2004 को पुरानी पेंशन योजना बंद कर दी थी। इस योजना के तहत सरकारी कर्मचारियों को अच्छी पेंशन मिलती है। इसका फार्मूला ऐसा है कि रिटायरमेंट के समय अंतिम वेतन जितना मिलता है, उसकी आधी रकम पेंशन मानी जाती थी। लेकिन अब ऐसा नही है।
पुरानी पेंशन योजना यानी ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत सरकार साल 2004 से पहले कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद एक तय पेंशन देती थी। यह पेंशन कर्मचारी के रिटायरमेंट के समय उनके वेतन पर आधारित होती थी। इस स्कीम में रिटायर हुए कर्मचारी की मौत के बाद उनके परिजनों को भी पेंशन दी जाती थी। जबकि नई पेंशन योजना में शेयर बाजार की स्थिति के आधार पर पेंशन दी जाती है। नई पेंशन योजना के तहत कितनी पेंशन मिलेगी इसका कोई तय आधार नही है। वर्तमान में नेशनल पेंशन स्कीम से सेवानिवृत्त हो रहे कर्मचारियों, अधिकारियों को बहुत कम पेंशन राशि मिल रही है, जिसके कारण उनकी सामाजिक आर्थिक सुरक्षा नहीं हो पाती है। परिवार का भरण पोषण और स मानजनक जीवन जीना मुश्किल हो रहा है। कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा हो।