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भोपाल

सैकडों डॉक्टरों ने न बांड भरे न गांवों में सेवाएं दीं

चिकित्सा शिक्षा विभाग ने सख्ती दिखाई तो 204 डॉक्टरों ने जमा किये 5 करोड़ 39 लाख रूपये

भोपालNov 10, 2019 / 09:03 am

सुनील मिश्रा

मध्य प्रदेश में 270 MBBS सीटों का इजाफा, डीएमई ने 130 और बढ़ाने के लिए लिखा पत्र

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भोपाल/ अनिवार्य ग्राामीण सेवा बंधपत्र (बांड) के तहत 204 से ज्यादा डॉक्टरों ने न तो सेवाएं दीं और न ही बांड की राशि जमा की। मेडिकल कॉलेजों व स्वास्थ्य संचालनालय ने भी यह पता करने की कोशिश नहीं की कि कितने डॉक्टरों ने बांड की शर्तें पूरी की । दो महीने पहले मेडिकल कॉलेजों ने 2002 से अब तक बांड भरने वाले डॉक्टरों से नोटिस देकर जवाब मांग तो चौकाने वाली जानकारी सामने आई है। 204 डॉक्टरों ने न तो सेवा दी थी न ही बांड की राशि जमा की थी। कॉलेजों के सख्त नोटिस के बाद डॉक्टरों ने पंजीयन खत्म होने के डर से इन 204 डॉक्टरों ने 5 करोड़ 39 लाख रुपए बांड की राशि के तौर पर जमा कराए हैं।

2002 से लागू है बांड सिस्टम

प्रदेश में डॉक्टरों की कमी को देखते हुए सरकारी कॉलेजों से एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद एक साल की अनिवार्य ग्रामीण सेवा का बांड 2002 में लागू किया गया था। 2006 से पीजी के बाद दो साल का बांड लागू कर दिया गया। छह साल पहले छात्रों ने आंदोलन किया तो पीजी बांड एक साल कर दिया गया। बांड की राशि शुरू में दो लाख थी। अब 10 लाख कर दी गई है।

इतने डॉक्टरों ने जमा की बांड राशि

कॉलेज एमबीबीएस पीजी डिप्लोमा पीजी डिग्री

जीएमसी भोपाल 30 2 3

एजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर 21 4 4

जीआरएमसी ग्वालियर 71 7 7

एनएससीबी मेडिकल कॉलेज जबलपुर 33 4 6

एसएस मेडिकल कॉलेज, रीवा 1 00 02

बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज, सागर 9 0 0

– इतना मिलता है मानदेय

एमबीबीएस 55,000

पीजी डिग्री 57,000

पीजी डिप्लोमा 59,000

– हर साल इतने निकलते हैं बांडेड डॉक्टर

एमबीबीएस डिग्रीधारी 529

पीजी डिग्रीधारी 333

मेडिकल विवि का एक आदेश बना हजारों छात्रों की परेशानी

मप्र मेडिकल सांइस यूनिर्वसिटी का एक आदेश हजारों छात्रों की परेशानी का सबब बन रहा है। विवि के नियम के बाद इस बार सत्र लेट होने की आशंका भी है। दरअसल विवि ने कॉलेजों में होने वाली प्रायोगिक परीक्षाओं में आने वाले एक्सटर्नल एक्सपर्ट बाहरी कॉलेजों के होते हैं। कई बार यह एक्सपर्ट परीक्षा में शामिल होने से मना कर देते हैं। इस स्थिति के बावजूद विवि ने एक ऐसा निर्णय दिया है जिससे सत्र पूरा करने में देर होगी। दरअसल विवि ने परीक्षाओं के लिए सिर्फ एक ही परीक्षक का नाम देने को कहा है।

पहले देते थे तीन नाम

विशेषज्ञों के मुताबिक अब तक एग्जामिनर के लिए तीन विशेषज्ञों के नाम दिए जाते थे। इनमें से अगर एक नहीं आ पाए तो दूसरे विशेषज्ञ को भेज दिया जाता था। लेकिन एक्सपर्ट पैनल में एक-एक नाम होने और वे किसी कारण परीक्षा में शामिल नहीं हो पाएगा तो इसका इसका असर परीक्षा पर पडेगा। मालूम हो कि फिलहाल प्रदेश में लगभग 41 आयुष कॉलेज संचालित हैं। आयुष मेडिकल एसोसिएशन के प्रवक्ता डॉ राकेश पांडेय के अनुसार इस मामले में विवि के कुलपति से शिकायत करेंगे। उनके दखल से इस संबंध में कार्रवाई की उम्मीद है।

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