इसके तहत सडक़ किनारे या फिर सडक़ में आ रही जमीनों के मालिकों से चर्चा की जाएगी। सडक़ बनने से जमीन की कीमत बढऩे और प्लॉट खुद ही विकसित होने की बात कही जाएगी। जमीन मालिक राजी होते हैं तो सडक़ निर्माण की लागत तय की जाएगी और भूखंड मालिकों से ली जाएगी। कलेक्टर पिथौड़े के अनुसार यदि किसी का 5000 वर्गफीट का प्लॉट है।
उसके किनारे सडक़ प्रस्तावित है, लेकिन वह बन नहीं पा रही। से में संबंधित इंजीनियर उस क्षेत्र के सभी भूमि स्वामियों से चर्चा करेंगे। सडक़ की दूरी और लागत तय करेंगे। भू स्वामियों से राशि लेकर सडक़ बना दी जाएगी। इसमें सबका लाभ है। सडक़ बन जाएगी तो शहर का विकास होगा, संबंधित क्षेत्र के रहवासियों को भी नई रोड से नए अवसर बनेंगे।