script81 किलो का भाला और 72 किलो का कवच लेकर मैदान में उतरते थे महाराणा प्रताप | Maharana Pratap used to fight with 81 kg spear and 72 kg armor | Patrika News
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81 किलो का भाला और 72 किलो का कवच लेकर मैदान में उतरते थे महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप 81 किलो का भाला, 72 किलो का कवच, ढाल, दो तलवारे लेकर युद्ध में उतरते थे, बताया जाता है कि इन सबका वजन करीब 200 किलो से अधिक होता था, इतना वजन आज के अच्छे अच्छे योद्धा भी नहीं उठा पाते हैं।

भोपालMay 22, 2023 / 02:34 pm

Subodh Tripathi

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भोपाल. आज देशभर में महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जा रही है, वे महान योद्धा थे, जो युद्ध के मैदान में भी 81 किलो का भाला और 72 किलो का कवच लेकर उतरते थे, महाराणा प्रताप के शोर्य की कहानी आज भी हल्दीघाटी में नजर आती है, वे भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी थे, जो मेवाड़ के राजा होने के साथ ही अपनी वीरता और युद्ध कला के लिए जाने जाते थे।

 

जानकारी के अनुसार हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच जमकर युद्ध हुआ था, करीब 300 साल पहले हुए युद्ध के निशान आज भी हल्दी घाटी में नजर आते हैं, क्योंकि युद्ध के मैदान में आज भी तलवारें नजर आती है, बताया जाता है कि इस युद्ध में न तो अकबर की जीत हुई थी और न ही महाराणा प्रताप की जीत हुई थी। महाराणा प्रताप मेवाड़ के सिसौदिया राजपूत राजवंश के राजा थे, हल्दी घाटी का युद्ध 21 जून 1576 को हुआ था, यह युद्ध करीब चार घंटे चला था।

 

200 किलो वजनी तलवार, भाले लेकर युद्ध में जाते थे महाराणा
महाराणा प्रताप 81 किलो का भाला, 72 किलो का कवच, ढाल, दो तलवारे लेकर युद्ध में उतरते थे, बताया जाता है कि इन सबका वजन करीब 200 किलो से अधिक होता था, इतना वजन आज के अच्छे अच्छे योद्धा भी नहीं उठा पाते हैं।

 

दुश्मन को दे देते थे तलवार
अच्छी बात यह है कि महाराणा प्रताप कभी निहत्थे पर वार नहीं करते थे, अगर युद्ध के दौरान दुश्मन के पास तलवार नहीं होती थी, तो वे खुद अपनी तलवार दे देते थे, ताकि युद्ध बराबरी में हो, कहा जाता है कि युद्ध में महाराणा प्रताप का एक सेनापति सिर कटने के बाद भी लड़ता रहा था।

आधा राज्य देने का ऑफर दिया था
अकबर ने महाराणा प्रताप को ऑफर दिया था कि वे हार मान लें तो आधा भारत महाराणा प्रताप का हो जाएगा। लेकिन उन्होंने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया था, लेकिन हल्दीघाटी के युद्ध के बाद से उनका दिल पसीज गया था, इसलिए उन्होंने जंगल में जीवन बीताने का फैसला ले लिया था, उनके घोड़े चेतक की मृत्य से भी वे दु:खी हो गए थे। चेतक ने हल्दी घाटी के युद्ध में वीरता और बुद्धिमत्ता का परिचय दिया था, क्योंकि घायल हो जाने के बाद भी चेतक महाराणा प्रताप को युद्ध भूमि से बाहर निकाल लाने में सफल रहा था।

उदयपुर में रहते हैं वंशज प्रिंस लक्ष्यराज सिंह
महाराणा प्रताप के वशंज प्रिंस लक्ष्यराज सिंह उदयपुर में रहते हैं, वे उदयपुर के राजा अरविंद सिंह के बेटे हैं, जिन्हें गाडिय़ों का काफी शौक है, वे बड़े-बड़े इवेंट में नजर आते हैं, वे 22 मई को राजधानी भोपाल में महाराणा प्रताप की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में शामिल हुए, यहां लालघाटी पर स्थित मनुआभान की टेकरी पर स्थापित की गई राजमाता महारानी पद्मावती की प्रतिमा का भी अनावरण किया गया। इसी के साथ महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें याद किया गया।

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