ईशिका चौधरी, मिडफील्डर
मैं 2016 में मप्र अकादमी ग्वालियर में आई थी। घर के पास ही गल्र्स और बॉयज हॉकी खेलते थे। इसलिए मैंने भी हॉकी स्टिक थाम ली। पिता शासकीय स्कूल में टीचर हैं। वे कहते थे कि बेटा पढ़ाई पर ध्यान दो, खेल में कुछ नहीं रखा। मेरी जिद थी कि हॉकी में ही कॅरियर बनाना है। पिता ने कहा कि खेलना है तो सीरियस खेलना वरना पढ़ाई पर ही फोकस करना। अकादमी में कोच परमजीत बरार के मार्गदर्शन में हॉकी खेल की बारीकियां सीखीं। फिर इंडिया सीनियर कैंप में चुनी गई। मैं नीदरलैंड की कप्तान ईबा को रोल मॉडल मानती हूं। लॉकडाउन में दो सालों तक बेंगलूरु कैंप में रही। अपने घर भी नहीं गई। यहां अपनी कमजोरियों और बेसिस्क पर काम किया।
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बिच्छू देवी खरिबम गोलकीपर
मैं 2015 में मप्र अकादमी में आई थी। बेंगलूरु कैंप में सविता पूनिया और रजनी एतिमारपु जैसी अनुभवी गोलकीपर से खेल के प्रमुख पहलुओं को जानने का मौका मिला। इससे पहले भी 2018 में सीनियर राष्ट्रीय कैंप में थी। 2019 में अर्जेंटीना टूर में सीनियर टीम का हिस्सा बनी। फिर इंजरी हुई और ड्रॉप हो गई। शुरुआत में फुटबॉल प्लेयर थी। पिता के कहने पर हॉकी स्टिक थामी। मेरे पिता किसान हैं। सीनियर टीम में फिर से जगह बनाना और ओलंपिक में पदक जीतना चाहती हूं।
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खुशबू खान, गोलकीपर
मैं कठिन परिस्थितियों में तैयारी कर यहां तक पहुंची हूं। मेरा सफर कठिनाईयों भरा रहा। भोपाल में एक छोटे से कमरे में ही पूरा परिवार रहता है। पिता ऑटो चालक हैं। इसके बाद भी उन्होंने मुझे हॉकी खेलने के लिए मना नहीं किया। वो मेरे लिए ओवरटाइम करते थे। उनकी मेहनत को मैंने जाया नहीं होने दिया और भारतीय जूनियर टीम में जगह पाकर ही मानी। अब लक्ष्य भारतीय जूनियर टीम को वल्र्ड कप में अपने शानदार खेल से पदक जिताना है। लॉकडाउन से ही नेशनल कैंप में रही हूं। यहां सीनियरों का कैंप भी लगाया गया था। हमारी टीम की तैयारियां बहुत अच्छी हुई हैं। सीनियर महिला टीम के साथ अभ्यास मैच खेले हैं। जिससे अच्छा अनुभव भी मिला है। ओलंपिक में सीनियर टीम के प्रदर्शन से हमारी जूनियर टीम का हौसला बढ़ा है। अब हमें स्वर्ण पदक जीतकर ही लौटना है।