मध्यप्रदेश के एक ऐसे मुख्यमंत्री का किस्सा बताएंगे। जो उम्र के हर पड़ाव पर सुर्खियों में रहा। नाम है बाबूराम यादव। लेकिन आप इस नेता को बाबूलाल गौर के नाम से जानते हैं। सियासत में इनका एक और भी नाम है पर बाबूलाल के सियासी सफर से पहले हम आपको वो किस्सा बताते हैं कि कैसे बाबूराम यादव, बाबूलाल गौर बन गए। किस्सा तब का है जब बाबूलाल गौर स्कूल में पढ़ते थे। कहा जाता है बाबूराम यादव जिस कक्षा में पढ़ते थे वहां दो और बाबूराम यादव नाम के छात्र थे। टीचर कन्फ्यूज हो जाते। एक दिन टीचर ने कहा जो मेरी बात गौर से सुनेगा और मेरे सवाल का सही जवाब देगा कक्षा में उसका नाम बाबूराम गौर कर दिया जाएगा। टीचर ने सवाल पूछा बाबूलाल ने सही जवाब दिया। टीचर ने कहा- अब उसका नाम बाबूराम गौर होगा। सियासत की दुनिया में कदम रखा तो भोपाल वालों ने बाबूलाल कहना शुरू कर दिया। बाबूराम यादव को यह नाम पसंद आया नाम बदलकर बाबूलाल गौर कर दिया।
अभी हमने थोड़ी देर पहले आपातकाल और जेपी की बात की थी। बाबूलाल गौर अपना पहला चुनाव हार गए थे। बाबूलाल जनसंघ के कार्यकर्ता थे। देश में जेपी आंदोलन जोर पकड़ रहा था। बाबूलाल भी जेपी आंदोलन में कूद चुके थे। भोपाल में कई आंदोलन किए। बाबूलाल गौर जेपी के नजरों में आ गए थे। जेपी उनके काम से खुश थे। जेपी आंदोलन के बाद विधानसभा चुनाव हुए। जेपी ने जनसंघ से कहा यदि बाबूलाल गौर को निर्दलीय खड़ा किया जाएगा तो वे उनका सपोर्ट करेंगे। बाबूलाल गौर चुनाव जीत गए। कुछ समय बाद जेपी भोपाल आए। बाबूलाल ने उनके सर्वोदय संगठन को 1500 रुपए का चंदा दिया। जेपी ने उनके सिर पर हाथ रखा। आशीर्वाद दिया जीवन भर जनप्रतिनिधि बने रहोगे। कभी कोई चुनाव नहीं हारोगे। 2018 के विधानसभा चुनाव तक बाबूलाल गौर लगातार 10 बार विधायक बने।
1974 में भोपाल दक्षिण सीट पर उपचुनाव हुए थे। बाबूलाल गौर निर्दलीय चुनाव मैदान में थे। अर्जुन सिंह कांग्रेस उम्मीदवार का प्रचार करने के लिए पहुंचे थे। कहा जाता है कि कि बाबूलाल गौर ने एक चिट्ठी भिजवाई। चिट्टी में लिखा था। अर्जुन सिंह जी आप मेरा मंच से नाम ले लेना। अर्जुन सिंह को चिट्ठी भेजने के पीछे बाबूलाल गौर ने एक सियासी दांव खेला था। बाबूलाल गौर चाहते थे कि किसी तरह से अर्जुन सिंह सरीखे नेता मंच से उनका नाम ले लें। मैं सुर्खियों में आ जाऊंगा। अर्जुन सिंह इस दांव को समझ नहीं पाए। उन्होंने मंच से बाबूलाल गौर का नाम लिया और बाबूलाल गौर अपना चुनाव जीत गए।
बाबूलाल गौर का जन्म 2 जून, 1930 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था। सक्रिय राजनीति में आने से पहले श्रमिकों के हित में अनेक आंदोलनों में भाग लिया। भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक सदस्य बने। 1946 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े। मध्यप्रदेश के बाहर दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में भी जेपी आंदोलन में भाग लिया। आपातकाल के दौरान 19 महीने जेल में भी रहे। 23 अगस्त 2004 से नबंवर 2005 तक बाबूलाल गौर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे पर चुनाव 2003 में हुए थे। इस लाइन को याद जरूर रखियेगा। हमने बाबूलाल के एक और नाम का जिक्र किया था। ये नाम उन्हें जनता ने दिया था। साल था 90 से 92 का। प्रदेश में सुन्दरलाल पटवा की सरकार थी। बाबूलाल गौर को नगरीय प्रशासन विभाग मिला था। वो अतिक्रमण हटाने के मामले में सख्त होते गए। भोपाल में कहा जाता है कि गौतम नगर में अतिक्रमणकारियों को हटाने के लिए गौर ने सिर्फ बुलडोजर खड़ा करके इंजन चालू करा दिया जिसके बाद अतिक्रमण अपने-आप गायब हो गया। वीआईपी रोड पर झुग्गियां आड़े आईं तो भी बुलडोजर चलवा दिया। बुलडोजर चलाने में प्रदेश के अधिकारी पीछे हट जाते थे पर गौर नहीं उनके इसी काम के कारण प्रदेश में उन्हें बुलडोजर मंत्री भी कहा जाता है।
हमने आपको एक वॉरेंट का जिक्र किया था। वॉरेंट जारी होना किसी के लिए भी खुशी की बात नहीं पर सियासत में एक वॉरेंट ने बाबूलाल गौर की किस्मत बदल दी और मुख्यमंत्री की कुर्सी दिला दी। वॉरेंट का संबंध कर्नाटक से था और खुशी बाबूलाल गौर के घर में मनाई गई थी। 2003 में मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने थे राज्य में 10 सालों से कांग्रेस की सरकार थी। मुख्यमंत्री थे दिग्विजय सिंह। मध्यप्रदेश में भाजपा ने उमा भारती के चेहरे पर चुनाव लड़ा। भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला। उमा भारती प्रदेश की सीएम बनीं। वॉरेंट वाला किस्सा यहीं से शुरू होता है। 15 अगस्त, 1994 को कर्नाटक के हुबली में उमा भारती ने तिरंगा झंडा फहराया था इस दौरान वहां हंगामा हुआ था। हुबली की एक अदालत ने दंगा भड़काने के मामले में उमा भारती के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया। उमा भारती पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा। उमा ने इस्तीफा दिया और सत्ता बाबूलाल गौर को सौंप कर चली गईं। तर्क दिया गया कि गौर सबसे वरिष्ठ हैं। अब बात उस शपथ की जो सीएम बनने से पहले बाबूलाल गौर ने ली थी। तारीख थी 23 अगस्त 2004 बाबूलाल गौर ने एक शपथ ली थी पर ये शपथ राज्यपाल ने नहीं पूर्व सीएम उमा भारती ने दिलाई थी। उमा ने बाबूलाल को सीएम पद की शपथ से पहले खुद एक शपथ दिलवाई। उमा भारती ने बाबूलाल के हाथों में गंगाजल दिया। बाबूलाल ने शपथ ली उमा भारती जब कहेंगी में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा। इस शपथ के बाद मध्य प्रदेश के राज्यपाल बलराम जाखड़ ने बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई। यह बात और है कि उसके बाद उमा चाहकर भी मध्यप्रदेश में वापसी नहीं कर पाईं। उमा उसके बाद कई मंचों पर बाबूलाल गौर के खिलाफ बोलती रहीं। उन्होंने एक बार कहा था कि मुझसे व्यक्ति चुनने में गलती हो गई थी। बेहतर होता कि उस समय मैं बाबूलाल गौर की जगह पर गौरीशंकर शेजवार को चुनती। वैसे शेजवार को उमा भारती का काफी करीबी भी माना जाता है।
बाबूलाल गौर मध्यप्रदेश के सीएम बने। अफसरशाही के जरिए सरकार चलाने की कोशिश शुरू कर दी। मगर मध्यप्रदेश में एक जासूसी कांड खुला। मध्य प्रदेश पुलिस की इंटेलीजेंस यूनिट के कुछ सिपाही अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे और गौर सरकार में मंत्री अनूप मिश्रा के घर के बाहर जासूसी करते पकड़ाए गए। अनूप मिश्रा ने अरुण जेटली को जानकारी दी। पार्टी अलाकमान नाराज हुआ। मध्यप्रदेश में बदलाव के संकेत मिलने लगे 29 नवम्बर 2005 बाबूलाल गौर ने के इस्तीफे के बाद। शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के सीएम बने पर ये इस्तीफा उमा के कहने पर नहीं दिया गया था। सीएम से इस्तीफा देने के बाद बाबूलाल गौर प्रदेश के मंत्री बनने के लिए अड़ गए और मंत्री बनकर ही माने। मध्यप्रदेश में ये पहला वाकया था जब मुख्यमंत्री से इस्तीफा देने के बाद कोई नेता मंत्री बना था। शिवराज सरकार में वो वाणिज्य और उद्योग मंत्री बने।
गौर साब विवादों के साथ हमेशा रहते हैं और पार्टी पर दबाव बनाकर अपनी बात मनवाने की कला भी उन्हें बेहतर आती है। तभी तो विधानसभा चुनावों में निर्दलीय मैदान में उतरने की धमकी देकर अपनी बहू को टिकट दिलाने में कामयाबी हासिल कर ली। अब लोकसभा चुनाव हैं। त्योरियां अब भी बाबूलाल गौर की चढ़ी हुई हैं। कभी खुलकर तो कभी छुपकर टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। कह रहे हैं मध्यप्रदेश देख लिया अब दिल्ली देखने की इच्छा है। देखिए गौर साब की इच्छा पूरी होती है या फिर यहीं पर रुककर दम तोड़ देती है।