नारायण के सहारे ब्राह्मण राजनीति पर फोकस
नारायण त्रिपाठी का कद विंध्य की सियासत में बढ़ गया है। नारायण त्रिपाठी तीसरी बार मैहर से विधायक हैं। हालांकि बार-बार पार्टी बदलने के कारण उनकी छवि धूमिल हुई है लेकिन इसके बाद भी नारायण त्रिपाठी सतना लोकसभा सीट पर बड़ा प्रभाव रखते हैं। सतना लोकसभा सीट में कांग्रेस के पास ब्राह्मण नेता का आभाव है। बीते तीन लोकसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस ने भाजपा के गणेश सिंह ( ganesh Singh ) के सामने हर बार अपना उम्मीदवार बदला पर किसी को जीत नहीं मिली। कांग्रेस की हार के पीछे की वजह ब्राह्मण वोट बैंक का खिसकना माना जाता रहा है।
अजय सिंह की काट
विंध्य में इस समय अजय सिंह (राहुल भैया) कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं। विधानसभा चुनाव 2018 और लोकसभा चुनाव 2019 में हार के बाद अजय सिंह का दबदबा प्रदेश और विंध्य की सियासत में कम हुआ है। लेकिन इसके बाद भी अजय सिंह कांग्रेस में सक्रिय हैं। ऐसे में अगर नारायण त्रिपाठी कांग्रेस में शामिल होते हैं तो विंध्य की सियासत में नारायण त्रिपाठी का कद बढ़ेगा। ऐसे में अजय सिंह कमजोर पड़ सकते हैं। अजय सिंह को दिग्विजय सिंह के गुट के नेता माने जाते हैं। लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह की हार के बाद से कांग्रेस में दिग्विजय सिंह का कद भी घटा है।
सिंधिया गुट होगा साइड लाइन
नारायण त्रिपाठी मैहर से विधायक हैं। मैहर कांग्रेस के बड़े नेताओं में से एक श्रीकांत चतुर्वेदी ज्योतिरादित्य सिंधिया ( Jyotiraditya Scindia ) गुट के माने जाते हैं। ऐसे में अगर नारायण त्रिपाठी कांग्रेसमें शामिल होते हैं तो सिंधिया गुट के नेताओं को झटका लग सकता है। 2016 के उपचुनाव में ओर कांग्रेस के मनीष पटेल के लिए कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह और मोहन प्रकाश, अरुण यादव और अजय सिंह ने प्रचार किया था उसके बाद भी नारायण त्रिपाठी उपचुनाव जीतने में सफल रहे थे।
नारायण त्रिपाठी के कांग्रेस के समर्थन के साथ ही मैहर में कांग्रेस नेताओं ने उनका विरोध शुरू कर दिया है। मैहर में दिग्विजय सिंह, अजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के नेता हैं। ऐसे में कमलनाथ को मुश्किलों का भी सामना करना पड़ सकता है। नारायण त्रिपाठी अभी भी भाजपा विधायक हैं। अगर वो अभी कांग्रेस की सदस्यता लेते हैं तो उनके ऊपर दब-बदल कानून लग सकता है और उनकी विधायकी जा सकती है। ऐसे में नारायण त्रिपाठी के सामने भी मुश्किले हैं।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत तो हुई पर उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस पूर्ण बहुमत से दूर रही जबकि भाजपा को 109 सीटों पर जीत मिली है। विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस को प्रदेश में केवल एक सीट पर जीत मिली है। ऐसे में अगर आज उपचुनाव होते हैं तो कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। क्योंकि किसान कर्जमाफी और अघोषित बिजली कटौती से विंध्य में कमल नाथ सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा है।