धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को मानता है भारतीय ज्ञान
प्रो. शर्मा ने कहा कि किसी भी सभ्यता और संस्कृति का उत्थान-पतन उसकी आर्थिक स्थिति और राजनीतिक स्थिति नहीं होती बल्कि ज्ञान परंपरा होती है। भारतीय संस्कृति ने हमेशा ही ज्ञान परंपरा को महत्व दिया है। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा के आदि स्त्रोत 14 विद्यास्थानों का उल्लेख किया और वेद, उपनिषद् व पुराणों की सूक्ष्म व्याख्या भी की। मुख्य अतिथि स्वामी दिव्यानंद तीर्थ ने कहा कि कार्लमाक्र्स और साइमन फ्रायड की विचारधाराओं ने पूरे विश्व को भ्रमित कर रखा है। इनमें एक अर्थ को महत्व देता है दूसरा काम को लेकिन भारतीय दर्शन इन दोनों को ही महत्व दिया है। अर्थ को धर्म से और काम को मोक्ष से जोड़ा है। भारतीय ज्ञान तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों को ही मानता है।
कार्यक्रम में समिति द्वारा दिए जाने वाले नरेश मेहता स्मृति वांग्मय सम्मान डॉ. कृपाशंकर सिंह शिमला को प्रदान जाना था लेकिन स्वास्थ्य कारणों से वे नहीं आ सके। उन्हें यह सम्मान समिति के आयोजन बसंत व्याख्यान माला या उनके निवास पर पहुंचाया जाएगा। शैलेश मटियानी स्मृति चित्रा कुमार कथा सम्मान कहानीकार गीत चतुर्वेदी को प्रदान किया गया। इस अवसर पर समिति की पत्रिका अक्षरा के नवीन अंक तथा साहित्यकार गौरीशंकर शर्मा गौरीश के दोहा संकलन का लोकार्पण किया गया।