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भारतीय ज्ञान परंपरा जड़ नहीं, प्रवाहमान है

– हिन्दी भवन में 16 वीं शरद व्याख्यान माला
 

भोपालDec 26, 2018 / 08:14 am

hitesh sharma

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भारतीय ज्ञान परंपरा जड़ नहीं, प्रवाहमान है

भोपाल। भारतीय ज्ञान परंपरा जड़ नहीं बल्कि सतत् प्रवाहमान है, इसमें विवेक के उपयोग की स्वतंत्रता है। भारतीय संस्कृति-सभ्यता आदि भौतिक ज्ञान परंपरा को महत्व नहीं देती आदि वैदिक आध्यात्मिक प्रवृत्ति को महत्व देती है। यह कहना है सागर विवि के दर्शन विभाग के अध्यक्ष प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा का। वे मंगलवार को हिन्दी भवन में 16 वीं शरद व्याख्यान माला में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा साहित्येतर विषयों पर आयोजित की जाने वाली इस व्याख्यान माला में इस बार ‘भारतीय ज्ञान परंपरा के आदि स्त्रोत’ विषय पर व्याख्यान हुआ। इस अवसर पर समिति द्वारा दिए जाने वाले अलंकरण भी प्रदान किए गए। कार्यक्रम के बतौर मुख्य अतिथि स्वामी दिव्यानंद तीर्थ, शंकराचार्य भानपुरा पीठ रहे, अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष सुखदेवप्रसाद दुबे ने की। कार्यक्रम में इंडोनेशिया (बाली) से आए भारतीय संस्कृति के साधक डॉ. प्रभु दरम्यांसा भी उपस्थित रहे।

 

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को मानता है भारतीय ज्ञान
प्रो. शर्मा ने कहा कि किसी भी सभ्यता और संस्कृति का उत्थान-पतन उसकी आर्थिक स्थिति और राजनीतिक स्थिति नहीं होती बल्कि ज्ञान परंपरा होती है। भारतीय संस्कृति ने हमेशा ही ज्ञान परंपरा को महत्व दिया है। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा के आदि स्त्रोत 14 विद्यास्थानों का उल्लेख किया और वेद, उपनिषद् व पुराणों की सूक्ष्म व्याख्या भी की। मुख्य अतिथि स्वामी दिव्यानंद तीर्थ ने कहा कि कार्लमाक्र्स और साइमन फ्रायड की विचारधाराओं ने पूरे विश्व को भ्रमित कर रखा है। इनमें एक अर्थ को महत्व देता है दूसरा काम को लेकिन भारतीय दर्शन इन दोनों को ही महत्व दिया है। अर्थ को धर्म से और काम को मोक्ष से जोड़ा है। भारतीय ज्ञान तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों को ही मानता है।
बाली के मंदिरों में वेस्टर्न ड्रेस पहनकर नहीं जा सकते

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और समिति के अध्यक्ष सुखदेवप्रसाद दुबे ने कहा कि हमारी ज्ञान परंपरा जो मार्गदर्शन देती है उसका पालन किया जाना चाहिए। विशिष्ट अतिथि डॉ. प्रभु दरम्यांसा ने कहा कि बाली में हम भारतीय हिन्दू परंपरा को सहेज रहे हैं। हमारे यहां मंदिरों में पाश्चात्य परिधान पहनकर नहीं जाया जा सकता है। उन्होंने अपने देश में गाए जाने वाली रामायण की बानगी भी दी। डॉ. दरम्यांसा ने उनके देश में परंपराओं से परीचित होने सभी को बाली आने निमंत्रण दिया। कार्यक्रम में समिति के मंत्री संचालक कैलाश पंत सहित अन्य साहित्यकार और प्रबुद्धजन मौजूद रहे।
गीत चतुर्वेदी को कथा सम्मान
कार्यक्रम में समिति द्वारा दिए जाने वाले नरेश मेहता स्मृति वांग्मय सम्मान डॉ. कृपाशंकर सिंह शिमला को प्रदान जाना था लेकिन स्वास्थ्य कारणों से वे नहीं आ सके। उन्हें यह सम्मान समिति के आयोजन बसंत व्याख्यान माला या उनके निवास पर पहुंचाया जाएगा। शैलेश मटियानी स्मृति चित्रा कुमार कथा सम्मान कहानीकार गीत चतुर्वेदी को प्रदान किया गया। इस अवसर पर समिति की पत्रिका अक्षरा के नवीन अंक तथा साहित्यकार गौरीशंकर शर्मा गौरीश के दोहा संकलन का लोकार्पण किया गया।

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