बीते तीन सालों में हीमोफीलिया के मरीजों की संया बढ़ी है। डॉ. निगम के अनुसार इलाज की सुविधा के साथ लोगों में जागरुकता बढ़ रही है। भोपाल समेत प्रदेश 8 हब सेंटरों में 27 अप्रेल को विशेष कैंप लगाया जाएगा। इसके अलावा वहीं गांधी चिकित्सा महाविद्यालय के हीमोफीलिया सेंटर में इस बीमारी का मुत इलाज किया जा रहा है।
इस वजह से होती है बीमारी
डॉक्टरों के अनुसार फैक्टर 8 की कमी से हीमोफीलिया ए होता है, यह पांच हजार में एक व्यक्ति को होता है। वहीं फैक्टर 9 की कमी से हीमोफीलिया बी होता है, जो 10 हजार में एक को होता है। इस बीमारी वाहक महिलाएं होती हैं। लेकिन उन्हें बीमारी होने की संभावनाए न के बराबर हैं। लेकिन, उनके बेटे को यह बीमारी होने की संभावना अधिक होती है।
जांच ही एक विकल्प
माता-पिता गर्भ में पल रहे शिशु की छह से आठ हफ्ते या फिर 18 से 20 सप्ताह के बीच जरूर जांच कराएं। इससे यह पता चल जाएगा कि बच्चे को हीमोफीलिया की बीमारी है या नहीं। इसके बाद वह अगर चाहें तो गर्भपात करा सकते हैं।