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भोपाल

Hamidia Fire Case : ये कहानी बताती हैं कैसे छुपाया जा रहा मासूम बच्चों की मौत का सच

अग्निहादसे के बाद फोन लगाया तो बताया गया कि, बच्चे की हालत गंभीर है। शाम साढ़े तीन बजे हमें बुलाया और बताया कि बच्चे की मौत हो गई है।

भोपालNov 10, 2021 / 11:15 am

Subodh Tripathi

ये कहानी बताती हैं कैसे छुपाया जा रहा मासूम बच्चों की मौत का सच

ये कहानी बताती हैं कैसे छुपाया जा रहा मासूम बच्चों की मौत का सच

भोपाल. हमीदिया अस्पताल में हुई घटना के बाद जो कहानियां निकलकर सामने आ रही है। उससे साफ नजर आ रहा है कि बच्चों की मौत का सच किस तरह छुपाया जा रहा है। बच्चों के शव पर जलने के निशान थे, लेकिन जिम्मेदारों का कहना है इनकी मौत आग के कारण नहीं हुई है। आईये जानते हैं क्या कहते हैं बच्चों के परिजन।

इतना ही बता दो-बच्चे जिंदा भी हैं या नहीं
हमें रोककर यूं बहलाओ मत, यदि हमारे बच्चे मर चुके हैं तो हमें साफ-साफ बता दो, हम उसे सहन कर लेंगे…। कमला नेहरू अस्पताल में सोमवार रात हादसे के बाद नवजातों को जिस बर्न एंड प्लास्टिक वार्ड, पीडियाट्रिक सर्जरी में रखा गया था, वहां तक परिजनों को जाने ही नहीं दिया जा रहा था। एेसे में एसएनसीयू के सभी 30 से अधिक बच्चों के परिजन दहशत में आ गए। अपने बच्चे की हालत जानने के लिए अफरातफरी मच गई, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद किसी ने यह नहीं बताया कि, कौन- कौन से बच्चे दम तोड़ चुके हैं, कौनसे झुलसे हैं और कौनसे बच गए हैं।
बगैर पोस्टमार्टम थमाए गए बच्चे
शासन-प्रशासन ने मंगलवार सुबह से दोहराना शुरू किया कि आग हादसे से केवल 4 नवजातों की मौत हुई। मरचुरी में सात शव रखे होने पर अधिकारी कहते रहे कि, 3 नवजात हादसे के पहले ही दम तोड़ चुके थे। पोस्टमार्टम से ही उनकी मौत की सच्चाई सामने आाएगी। लेकिन चीख-चीखकर दिए जा रहे इन तर्कों के बीच ही कुछ बच्चों के शव एक-एक करके परिजनों को बिना पोस्टमार्टम थमाए जाते रहे। पत्रिका ने दो ऐसे नवजातों के परिजनों से मुलाकात की जिन्हें अग्निहादसे के दूसरे दिन भी मौत का कारण खुद तय करते हुए शव दिए गए, जबकि पोस्टमार्टम अनिवार्यत: किए जाने चाहिए थे, ताकि स्पष्ट हो सके कि मौत का कारण आग थी या नहीं।
बच्चों के शव पर थे जलने के निशान
केस 1. बागमुगालिया के 16 एकड़ निवासी आकाश और उषा के बेटा वार्ड नम्बर तीन में भर्ती था। आकाश ने बताया कि, बच्चा कल तक ठीक-ठाक था। अग्निहादसे के बाद फोन लगाया तो बताया गया कि, बच्चे की हालत गंभीर है। शाम साढ़े तीन बजे हमें बुलाया और बताया कि बच्चे की मौत हो गई है। यह आकाश और उषा की पहली संतान था। शव को घर लाए तो आकाश के पिता व अन्य लोगों ने देखा कि बच्चे के मुंह पर जलने के निशान है। साफ पता चल रहा है कि बच्चा झुलसा है।
ये कहानी बताती हैं कैसे छुपाया जा रहा मासूम बच्चों की मौत का सच
अम्मी मत रोईए, बच्चा जिंदा है, सुनते ही गम के आंसू खुशी में छलके

हादसे से बच्चे की मौत, डॉक्टर बता रहे सामान्य, बाइक से ले गए शव
केस 2. डॉक्टर मेरे बच्चे की मौत सामान्य बता रहे हैं। उन्होंने बिना पोस्टमार्टम कराए ही मुझे शव घर ले जाने को कह दिया, लेकिन बच्चे की मौत इसी हादसे की वजह से हुई है। मेरा बेटा आइसीयू में भर्ती था। आग लगी तो मैं बच्चे को देखने जाने लगा तब पुलिस ने रोक दिया। जैसे-तैसे मैं रात एक बजे दूसरी मंजिल तक पहुंचा तो बच्चे की धड़कन ठीक थी, वह हाथ पैर भी हिला रहा था। मैं तसल्ली से नीचे आ गया, सुबह बताया गया कि बच्चे को नीचे फ्लोर पर शिफ्ट किया गया है, लेकिन मिलने नहीं दिया। दोहपर में मैं जबरन में बच्चे के पास पहुंच गया तो उसमें कुछ हरकत नहीं दिख रही थी। थोड़ी ही देर में फोन आया कि बच्चे की धड़कन नहीं चल रही आप आ जाओ। थोड़ी देर बाद डॉक्टर ने कहा कि आपका बच्चा नहीं रहा। कागजों पर दस्तखत कराकर बच्चे का शव घर ले जाने को कह दिया। मेरी पत्नी को अब तक यह नहीं पता कि उसने जिसे जन्म दिया वह अब दुनियां में नहीं रहा। बेटे को ले जाने के लिए एंबुलेंस भी नहीं मिली, बाइक से ही गांव ले जाना पड़ा।
-राहुल वर्मा, बच्चे के पिता, कुरावर जिला राजगढ़

केस 3. मैं बच्चों को दूध देने वार्ड में गया तो देखा कि वार्ड से बहुत धुआं निकल रहा है। मैं दौड़कर वार्ड के गेट पर पहुंचा तो वह बंद था। मैं गिड़गिड़ा रहा था, गेट खोल दो तो मैं बच्चों को बचा लूंगा, लेकिन स्टाफ भाग चुका था। मैंने जोर-जोर से लात मारी, जिससे गेट खुल गया। समय रहते दरवाजा खोल देते तो मैं अपने सहित सभी बच्चों को निकाल लेता।
– रमेश दांगी, राजगढ

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