भोपाल। मध्य प्रदेश सहित पूरे भारत देश में कई त्यौहारों का काफी महत्व है, इनमें खासकर सनातनधर्मियों यानि हिंदू-धर्म ( Hindu Dharma ) के प्रमुख त्योहारों में से एक दीपावली ( deepawali ) भी है। इस दिन दीपावली की रौनक यानि रोशनी से डूबे शहर और गांव अलग ही आकर्षण के साथ बेहद खास दिखते हैं।
दीपावली एक पांच दिवसीय त्योहार है, जिसमें पहले दिन धनतेरस,दूसरे दिन नर्क चौदस या रूप चौदस, तीसरे दिन इस पर्व का मुख्य त्योहार दिवाली (महालक्ष्मी पूजन- diwali ), जबकि चौथे दिन भाई दूज व पांचवें दिन गोबरधन मनाया जाता है।
इस दिन मनाई जाती है दिवाली Diwali … 1. कार्तिक मास में अमावस्या के दिन प्रदोष काल होने पर दिवाली (महालक्ष्मी पूजन) मनाने का विधान है। वहीं यदि दो दिन तक अमावस्या तिथि प्रदोष काल का स्पर्श न करें तो सबसे ज्यादा प्रचलित और मान्य मत के अनुसार दूसरे दिन दिवाली मनाने का विधान है।
3. इसके अलावा यदि अमावस्या तिथि का विलोपन हो जाए, यानी कि अगर अमावस्या तिथि ही न पड़े और चतुर्दशी के बाद सीधे प्रतिपदा आरम्भ हो जाए, तो ऐसे में पहले दिन चतुर्दशी तिथि को ही दिवाली मनाने का विधान है।
सबसे खास बात ये है कि सिर्फ भारत में ही नहीं विदेशों में भी दिवाली का त्यौहार धूम-धाम से मनाया जाता है। दरअसल धनतेरस से भाई दूज तक करीब 5 दिनों तक चलने वाला दिवाली का त्यौहार भारत ( INDIA ) और नेपाल ( NEPAL ) समेत दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है।
वर्ष 2019 में इस दिन से है दीपावली पर्व ( deepawali 2019 ) … वहीं इस साल यानि 2019 में दिवाली ( Diwali 2019 ) का त्योहार 27 अक्टूबर, 2019 यानि रविवार के दिन मनाया जाएगी। जबकि इससे पहले 25 को धनतेरस, 26 को नरकचौदस और दिवाली के बाद 28 को भाईदूज व 29 को गोबरधन का पर्व रहेगा।
इस समय करें लक्ष्मी पूजा : Lakshmi puja … 1. देवी लक्ष्मी का पूजन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में किया जाना चाहिए। प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न में पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए।
क्योंकि ये चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। मान्यता है कि अगर स्थिर लग्न के समय पूजा की जाये तो माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में ठहर जाती है। 2. महानिशीथ काल के दौरान भी पूजन का महत्व है लेकिन यह समय तांत्रिक, पंडित और साधकों के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। इस काल में मां काली की पूजा का विधान है। इसके अलावा वे लोग भी इस समय में पूजन कर सकते हैं, जो महानिशिथ काल के बारे में समझ रखते हों।
ऐसे समझें दिवाली का ज्योतिष महत्व… पंडित सुनील शर्मा के अनुसार सनातन धर्म यानि हिंदू-धर्म में हर त्यौहार का ज्योतिष महत्व होता है। माना जाता है कि विभिन्न पर्व और त्यौहारों पर ग्रहों की दिशा और विशेष योग मानव समुदाय के लिए शुभ फलदायी होते हैं।
हिंदू-समाज में दिवाली का समय किसी भी कार्य के शुभारंभ और किसी वस्तु की खरीदी के लिए बेहद शुभ माना जाता है। इस विचार के पीछे ज्योतिष महत्व है। पंडित शर्मा के मुताबिक दरअसल दीपावली के आसपास सूर्य और चंद्रमा तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में स्थित होते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा की यह स्थिति शुभ और उत्तम फल देने वाली होती है।
तुला एक संतुलित भाव रखने वाली राशि है। यह राशि न्याय और अपक्षपात का प्रतिनिधित्व करती है। तुला राशि के स्वामी शुक्र जो कि स्वयं सौहार्द, भाईचारे, आपसी सद्भाव और सम्मान के कारक हैं। इन गुणों की वजह से सूर्य और चंद्रमा दोनों का तुला राशि में स्थित होना एक सुखद व शुभ संयोग होता है।
MUST READ : दीपावली पर ये हैं शुभकामनाओं के खास मैसेजवर्ष 2019 में दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त… लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त :18:44:04 से 20:14:27 तक अवधि :1 घंटे 30 मिनट प्रदोष काल :17:40:34 से 20:14:27 तक वृषभ काल :18:44:04 से 20:39:54 तक
दिवाली महानिशीथ काल मुहूर्त… लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त : 23:39:37 से 24:30:54 तक अवधि : 0 घंटे 51 मिनट महानिशीथ काल : 23:39:37 से 24:30:54 तक सिंह काल : 25:15:33 से 27:33:12 तक ऐसे समझें दिवाली पर लक्ष्मी पूजा की विधि… सनातनधर्मियों के प्रमुख पर्व दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का विशेष विधान है। इस दिन संध्या और रात्रि के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा और आराधना की जाती है।
इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ और प्रकाशवान हो, वहां वे अंश रूप में ठहर जाती हैं इसलिए दिवाली पर साफ-सफाई करके विधि विधान से पूजन करने से माता महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ कुबेर पूजा भी की जाती है। पूजन के दौरान इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
वहीं हिंदू-धर्म के अलावा बौद्ध, जैन और सिख धर्म के अनुयायी भी दिवाली मनाते हैं। जैन धर्म में दिवाली को भगवान महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है। वहीं सिख समुदाय में इसे बंदी छोड़ दिवस के तौर पर मनाते हैं।
1. दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन से पहले घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर में वातावरण की शुद्धि और पवित्रता के लिए गंगाजल का छिड़काव करें। साथ ही घर के द्वार पर रंगोली और दीयों की एक श्रंृख्ला बनाएं।
MUST READ : जिसने कर लिए यह 51 उपाय, उसी के घर आएंगी महालक्ष्मी! 2. पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें। 3. माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं और दीपक जलाकर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें और माता महालक्ष्मी की स्तुति करें। 4. इसके साथ देवी सरस्वती, मां काली, भगवान विष्णु और कुबेर देव की भी विधि विधान से पूजा करें। 5. महालक्ष्मी पूजन पूरे परिवार को एक साथर करना चाहिए। 6. महालक्ष्मी पूजन के बाद तिजोरी, बहीखाते और व्यापारिक उपकरण की पूजा करें। 7. पूजन के बाद श्रद्धा अनुसार ज़रुरतमंद लोगों को मिठाई और दक्षिणा दें।
इसलिए मनाया जाता है दीपावली का पर्व… इस त्योहार के पीछे कई कारण बताए जाते हैं जिसकी वजह से इस रोशनी से नहाए त्यौहार को आप और हम सेलिब्रेट करते हैं। ये हैं कुछ खास कारण…
1. वनवास खत्म करके श्री राम के आयोध्या लौटने पर… मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ आयोध्या वापस लौट आए थे। उनके वापस लौटने की खुशी में उनका पूरा राज्य खुशी से भर गया था। उनके लौटने की खुशी में वहां की प्रजा ने घी के दीये जलाए थे, उस दिन से लेकर आज तक हर कोई इस दिन को सेलिब्रेट करता है।
इसलिए गए थे वन: रामायण के अनुसार मंथरा के भड़काए जाने के बाद कैकेयी ने दशरथ और कौशिल्या के पुत्र राम को 14 वर्ष के वनवास का वचन मांगा था, राम के साथ उनकी पत्नी सीता और सुमित्रानंदन भाई लक्ष्मण भी वनवास चल दिए। वहां पर रावण द्वारा सीता का अपहरण कर लिया गया। जिसके बाद सुग्रीव और हनुमान की मदद से भगवान राम ने रावण का वध कर सीता को छुड़ाया और उनके साथ वापस आयोध्या लौटे।
2.समुद्र मंथन से निकली थीं मां लक्ष्मी – पौरणिक कथा – … दीपावली कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाई जाती है। इसी दिन समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी ने अवतार लिया था। मां लक्ष्मी को धन और वैभव की देवी माना जाता है।
इसी वजह से दिवाली वाले दिन हम लोग लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं, और वरदान में खूब सारा धन और वैभव मांगते हैं। बता दें, लक्ष्मी के समुद्र मंथन में निकलने से दो दिन पहले सोने का कलश लेकर भगवान धनवंतरी भी अवतरित हुए थे, इसी वजह से दिवाली के दो दिन पहले धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है।
3. पांडव लौटे थे अपने राज्य… महाभारत की कहानी तो आप जानते ही होंगे। शकुनी मामा की चाल में फंसकर पांडवों ने अपना सबकुछ गंवा दिया था। उन्हें 13 साल के अज्ञातवास की सजा मिली थी। कार्तिक की अमावस्या वाले दिन ही पांडव (अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव और युधिष्ठिर) अपने राज्य वापस लौटे थे। उनके लौटने की खुशी में वहां की प्रजा ने दीये जलाकर खुशियां मनाई थी। इसलिए भी दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है।
4. राजा विक्रमादित्य के राज्याभिषेक की खुशी में राजा विक्रमादित्य प्राचीन भारत के एक महान राजा थे। उनकी उदारता और साहस के किस्से दूर-दूर तक फैले हुए थे। राजा विक्रमादित्य मुगलों को धूल चटाने वाले भारत के अंतिम हिंदू सम्राट थे। कार्तिक की अमावस्या को उनका राज्याभिषेक हुआ था। इसलिए भी दिवाली मनाई जाती है।
5. दीपावली में श्रीकृष्ण और नरकासुर एक अन्य कथा के अनुसार नरकासुर नामक राक्षस ने अपनी असुर शक्तियों से देवता और साधु-संतों को परेशान कर दिया था। इस राक्षस ने साधु-संतों की 16 हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया था। नरकासुर के बढ़ते अत्याचारों से परेशान देवता और साधु-संतों ने भगवान श्री कृष्ण से मदद की गुहार लगाई।
इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवता व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई, साथ ही 16 हजार स्त्रियों को कैद से मुक्त कराया।
इसी खुशी में दूसरे दिन यानि कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा। 6. इसके अलावा दिवाली को लेकर यह भी पौरणिक धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इंद्र ने स्वर्ग को सुरक्षित पाकर खुशी से दीपावली मनाई थी।
वहीं सिख समुदाय में बंदी छोड़ दिवस : 6वें गुरु को मिली थी आजादी… मुगल बादशाह जहांगीर ने सिखों के 52 राजाओं को ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया था। हालांकि गुरु को कैद करने के बाद वो परेशान रहने लगा।
सपने में उसे एक फकीर ने गुरु गोविंद सिंह को आजाद करने को कहा। सुबह उठकर जहांगीर ने गुरु समेत सभी राजाओं को आजाद कर दिया। सिख समुदाय के लोग इसलिए दिवाली का त्यौहार मनाते हैं।
ये जरूर करें दिवाली पर… 1. कार्तिक अमावस्या यानि दीपावली के दिन प्रात:काल शरीर पर तेल की मालिश के बाद स्नान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की हानि नहीं होती है। 2. दिवाली के दिन वृद्धजन और बच्चों को छोड़कर् अन्य व्यक्तियों को भोजन नहीं करना चाहिए। शाम को महालक्ष्मी पूजन के बाद ही भोजन ग्रहण करें। 3. दीपावली पर पूर्वजों का पूजन करें और धूप व भोग अर्पित करें। प्रदोष काल के समय हाथ में उल्का धारण कर पितरों को मार्ग दिखाएं। यहां उल्का से तात्पर्य है कि दीपक जलाकर या अन्य माध्यम से अग्नि की रोशनी में पितरों को मार्ग दिखायें। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। 4. दिवाली से पहले मध्य रात्रि को स्त्री-पुरुषों को गीत, भजन और घर में उत्सव मनाना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में व्याप्त दरिद्रता दूर होती है।
ऐसे समझें दीपावली के इस काल (समय) को ….1. दीपावली पर प्रदोष काल को लेकर ये है मान्यता : How to Perform the Pradosh Kaal Activity प्रदोष काल में मंदिर में दीपदान, रंगोली और पूजा से जुडी अन्य तैयारी इस समय पर कर लेनी चाहिए तथा मिठाई वितरण का कार्य भी इसी समय पर संपन्न करना शुभ माना जाता है।
इसके अतिरिक्त द्वार पर स्वास्तिक और शुभ लाभ लिखने का कार्य इस मुहूर्त समय पर किया जा सकता है। वहीं इस समय पर अपने मित्रों व परिवार के बडे सदस्यों को उपहार देकर आशीर्वाद लेना व्यक्ति के जीवन की शुभता में वृ्द्धि करता है। मुहूर्त समय में धर्मस्थलों पर दानादि करना चाहिए।
2. दीपावली पूजन में निशिथ काल को लेकर ये है मान्यता : How to perform Nishith Kaal in Deepavali Puja धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण कर लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त समय का प्रयोग श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन, अन्य मंन्त्रों का जपानुष्ठान करना चाहिए।
3. दीपावली पूजन में महानिशीथ काल : Maha Nishith Kaal धन लक्ष्मी का आहवाहन और पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण कर लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त समय का प्रयोग श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन, अन्य मंन्त्रों का जपानुष्ठान करना चाहिए।
महानिशीथ काल का दीपावली पूजन में ऐसे करें प्रयोग: How to Include Maha Nishith Kaal in Deepawali Puja महानिशीथकाल में मुख्यतः तांत्रिक कार्य, ज्योतिषविद, वेद् आरम्भ, कर्मकाण्ड, अघोरी,यंत्र-मंत्र-तंत्र कार्य व विभिन्न शक्तियों का पूजन करते हैं और शक्तियों का आवाहन करना शुभ माना जाता है। अवधि में दीपावली पूजन के पश्चात गृह में एक चौमुखा दीपक रात भर जलता रहना चाहिए। यह दीपक लक्ष्मी एवं सौभाग्य में वृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
Hindi News / Bhopal / इस दिन है 2019 में दिवाली, अबकि बार बच्चों को जरूर बताए दीपावली मनाने के ये 6 कारण…