ऐसे बच्चे कार्टून और शो के किसी किरदार को अपनाते हुए उसके कैरेक्टर की तरह व्यवहार करने लगते हैं। इसे इडेंटिफिकेशन कहा जाता है। इसमें बच्चा वर्चुअल वर्ल्ड को ही रियल मानने लगता है। उसी किरदार को अपना आदर्श मानते हैं। उनके व्यवहार और गतिविधियों को अपनाने लगते हैं। रोकथाम के लिए गांधी मेडिकल कॉलेज में चाइल्ड गाइडेंस क्लीनिक लग रहे हैं।
इन बच्चों पर ज्यादा खतरा
– जिनके माता पिता दोनों नौकरी करते हैं। जिससे वे बच्चों को पर्याप्त ध्यान और स्नेह ना दे सकें। – जिनके माता पिता के बीच अकसर तनाव या विवाद होता हो। जिसके कारण बच्चा रियल वर्ल्ड को खराब मानने लगे। – जिन बच्चों को स्कूल में साथी बच्चों द्वारा ज्यादा परेशान किया जाता हो।
ये तीन बदलाव दिखें तो रहें अलर्ट
● बच्चा केवल कुछ दिनों के लिए किरदार की नकल करें। यह गंभीर नहीं है लेकिन बच्चे पर ध्यान देना जरूरी है। ● बच्चा कई हफ्तों या महीनों से किरदार की नकल कर रहा हो। ऐसे में परिजनों को खुद से बच्चों को समझाना चाहिए। ● लंबे समय से किरदार की नकल कर रहा है। कभी भी और कहीं भी वो अलग बिहेव करे। ऐसे में मनोचिकित्सक की मदद लेनी चाहिए।
डिवाइस एडिक्शन से कैसे रखें बच्चों को दूर
डिवाइस एडिक्शन से बच्चे वर्चुअल वर्ल्ड को ही अपनी जिंदगी मान लेते हैं। परिजन बच्चों को ज्यादा से ज्यादा सोशल एक्टिविटी से जोड़े। –डॉ. जेपी अग्रवाल, मनोरोग विशेषज्ञ