क्या है चमकी बुखार ?
एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम को हम आमतौर पर चमकी बुखार के नाम से जानते हैं। इस घातक संक्रमण के संपर्क में आते ही रोगी का शरीर सख्त होने लगता है। साथ ही, सिर और शरीर में ऐठंन होने लगती है। इसके अलावा शरीर के हर हिस्से में चमक चलने लगती है। इसी चमक के कारण इसे ‘चमकी’ के नाम से जाना जाता है। इंसेफ्लाइटिस दिमाग से जुड़ी एक गंभीर समस्या है। दरअसल, दिमाग में लाखों कोशिकाएं और तंत्रिकाएं होती हैं, जिसकी वजह से शरीर के सभी अंग सुचारू रूप से काम करते हैं, लेकिन जब इन कोशिकाओं में सूजन आ जाती है तो उस स्थिति को एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम कहा जाता है।
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चमकी बुखार आने पर रोगी की स्थिति
हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, ये एक संक्रामक ( viral ) बीमारी है। इस बीमारी के वायरस शरीर में पहुंचते ही खून में मिलकर अपना प्रजनन शुरू कर देता है। शरीर में इसके वायरस की संख्या बढ़ने पर ये खून के साथ मिलकर व्यक्ति के दिमाग में पहुंच जाते हैं, जिससे दिमाग की कोशिकाएं सूज जाती हैं। हालात ज्यागा बिगड़ने पर सेंट्रल नर्वस सिस्टम ( central nervous system ) खराब हो जाता है।
इस तरह पहचाने लक्षण
चमकी बुखार में बच्चे को लगातार बुखार तेज होता जाता है। बदन में ऐंठन और चमक बढ़ती जाती है। स्थितियां बिगड़ने पर बच्चा दांत पर दांत चढ़ाने लगता है। कमजोरी की वजह से बच्चा बार-बार बेहोश भी हो जाता है। यहां तक कि, शरीर पूरी तरह सुन्न हो जाता है और उसे झटके आने लगते हैं।
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बुखार आने पर ऐसे की जा सकती है पुष्टी
एंसिफलाइटिस के दौरान डॉक्टर एमआरआई या सीटी स्कैन करवा सकते हैं। बुखार आने पर तुरंत खून या पेशाब की जांच कराकर इस बुखार पुष्टी की जा सकती । प्राइमरी एंसिफलाइटिस के मामलों में लंबर पंक्चर यानी रीढ़ की हड्डी से द्रव्य का सेंपल लेकर भी जांच करा लेना उचित होता है, इससे स्पष्ट रूप से रोग प्रमाणित हो सकता है। इसके अलावा, दिमाग की बायोप्सी कराकर भी स्थितियां आसानी से स्पष्ट हो सकती हैं।
बुखार आने पर इस तरह करें बचाव
-बच्चे को तेज बुखार आने पर उसके शरीर को गीले कपड़े से पोछें, ताकि, बुखार का असर बच्चे के दिमाग पर ना पहुंचे। इस विधि को सामान्य बुखार पर ही लागू कर देना चाहिए।
-डॉक्टर से परामर्श करके प्राथमिक तौर पर बुखार की दवा रोगी को बार बार देना जरूरी है ताकि, बच्चा बुखार के संक्रमण में ज्यादा ग्रस्त ना हो सके।
-बच्चे को साफ बर्तन में एक लीटर पानी डालकर ORS का घोल बनाकर बार बार पिलाएं ताकि, उसके शरीर में बुखार से लड़ने की पर्याप्त शक्ति बनी रहे। याद रखें, घोल उतना ही बनाएं, जिसे 10 से 12 घंटों के भीतर खत्म किया जा सके।
-बुखार आने पर रोगी बच्चे को दाईं करवट से लेटाकर रखें और तुरंत ही अस्पताल ले जाएं।
-बच्चे को बेहोशी की हालत में छायादार स्तान पर लिटाकर रखें।
-बुखार आने पर बच्चे के शरीर से कपड़े उतारकर उसे हल्के कपड़े पहनाएं। उसकी गर्दन सीधी रखें।
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बुखार आने पर इन बातों से बचें
-बच्चे को खाली पेट लीची न खिलाएं। खासकर, अधपकी या कच्ची लीची के सेवन से बचें।
-बच्चे को कंबल या गर्म कपड़े न पहनाएं, बल्कि हल्के कपड़े पहनाकर हवादार स्थान पर रखें, क्योंकि बुखार आने पर बहुत तेज़ घबराहट भी होती है।
-बेहोशी की हालत में बच्चे के मुंह में कुछ न डालें।
-मरीज के बिस्तर पर न बेठें और न ही उसे बेवजह तंग करें। हो सके तो उसके आसपास बिल्कुल शांत वातावरण रखें। क्योंकि, शोध में ये बात भी सामने आ चुकी है कि, हमारे शरीर को जो अंग एक्टिव होते हैं, उन्हें पर्याप्त शक्ति प्रदान करने के लिए हमारा शरीर और ऊर्जा उत्पन्न करता है। ऐसे में उस ऊर्जा के साथ संक्रमण पहुंचने से शरीर तेजी से ग्रस्त होगा।
इस बात की रखें सावधानी
गर्मी के मौसम में फल और खाना जल्दी खराब होता है। घरवाले इस बात का खास ख्याल रखें कि, बच्चा जूठे और सड़े फल नहीं खाए। साथ ही, बच्चे को गंदगी से बिल्कुल दूर रखें। खाने से पहले और खाने के बाद हाथ जरूर धुलवाएं, ताकि हाथों के ज़रिये किसी तरह का संकर्मण हमारे मूंह से शरीर में न पहुंच सके। जितना हो सके बच्चों को स्वच्छ पानी ही पिलाएं। बच्चे के नाखून बिल्कुल भी ना बढ़ने दें। घर के बाहर धूप या गर्मी होने पर बच्चों को बाहर खेलने की अनुमति ना दें, क्योंकि ये वायरस ठंड के मुकाबले गर्मी में ज्यादा सक्रीय होता है। रात में कुछ खाने के बाद ही बच्चे को सोने भेजें, अकसर बच्चे बिना खाए पिये ही सो जाते हैं। उन बच्चों की ये आदत ज्यादा होती है, जो बाहर का खाना ही पसंद करते हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस बुखार का मुख्य कारण सिर्फ लीची खाना ही नहीं है, बल्कि गर्मी और उमस के संपर्क में आने से भी इसका संक्रमण फैलता है।