सिनेमा और फिल्म जगत के इंद्रधनुषी रंगों को याद करने और साथ ही इस क्षेत्र में हो रहे परिवर्तन से विद्यार्थियों को अवगत कराने के उद्देश्य से सिनेब्रेशन का सेलिब्रेशन किया गया। इसमें विभाग के विद्यार्थियों द्वारा निर्मित-निर्देशित फिल्मों की स्क्रीनिंग की गई। बता दें की 13 फिल्में चित्रभारती फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग के लिए चयनित हुई हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी विश्वविद्यालय के मुख्य सभागार में हुआ। इसमें युवा डायरेक्टर आशीष बाथरी की ट्र्पेट फिल्म का स्क्रीनिंग भी हुई। इसके साथ ही डांस, ड्रामा, रैंप वॉक, स्टैंड अप कॉमेडी और ट्र्पेट फिल्म के म्यूजिक बैंड की प्रस्तुति हुई।
फिल्म मेकर को कहानीकार की विधा आनी चाहिए
मुझे बचपन से लिखने का शौक है। मैं एक लेखक बनना चाहता था। साथ ही मुझे शुरू से ही फिल्में देखना भी बहुत पसंद है। साल 2013 में मैंने एक फिल्म मेकिंग कंपटीशन में भाग लिया। इसमें रोड सेफ्टी पर शॉर्ट फिल्म तैयार की। फिर साल 2017 में मैंने शॉर्ट फिल्म काजू कतली का लेखन और निर्देशन किया जिसकी आज एमसीयू में स्क्रीनिंग हुई। मेरी बेस्ट फिल्म बापू की गाड़ी है जिसने बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट डीओपी के साथ-साथ कई नेशनल अवार्ड जीते हैं।
ये फिल्म 14 फरवरी 2019 को हुए पुलवामा हमले पर आधारित है। इसमें तिरंगे से सजी गाड़ी में शहीदों के शवों को ले जा रहे ड्राइवर की भावनाओं को मैंने समझा और वहां से मुझे इसका कांसेह्रश्वट आया। ये फिल्म चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल में नॉमिनेट है। एक फिल्म मेकर को कहानीकार की विधा आनी चाहिए। फिल्म मेङ्क्षकग के लिए एक अच्छी टीम का होना बहुत जरूरी है। फिल्म बनाने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वहीं टेक्निकल फैक्टर का भी ध्यान रखना पड़ता है।
– आशीष बाथरी, युवा डायरेक्टर
नेटफ्लिक्स जैसे प्लेट्फॉर्म के साथ किया काम
मुझे बचपन से ही एक्टर बनना था। मैंने यूट्यूब पर खूब वीडियो बानाईं। पहले काफी सारे लोगों के साथ मिलकर काम किया। हमेशा भोपाल में फिल्मों की शूटिंग देखता इससे मेरा इंटरेस्ट बढ़ा। फिर मैंने थिएटर भी ज्वाइन किया। इंजीनियङ्क्षरग के बाद एमसीयू से फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर डिग्री की। फिलहाल प्रोडक्शन मैनेजर का काम कर रहा हूं। नेटफ्लिक्स और एमएक्स ह्रश्वलेयर जैसे प्लेट्फॉर्म के साथ भी काम किया हैं। मेरी बेस्ट फिल्म का नाम है कहानी। यह हमें बताती है कि हमारे कार्य हमारे जीवन को बदल सकते हैं। ये फिल्म चित्र भारती फेस्टिवल में सिलेक्ट हुई है जिसकी पंचकूला, हरियाणा में स्क्रीङ्क्षनग की जाएगी। किसी भी फिल्म को बनाने में एक अच्छी टीम की आवश्यकता सबसे ज्यादा होती है। उसके बाद आवश्यकता आती है बजट की। यह बहुत ही जरूरी है छोटी से छोटी फिल्म में भी अच्छा खासा पैसा लगता है।
– आशीष मिश्रा, फिल्म मेकर
मैं साइंस का स्टूडेंट था लेकिन मेरी रूचि फिल्म प्रोडक्शन में रही है। मैं फिलहाल फिल्म प्रोडक्शन में पढ़ाई कर रहा हूं। मैंने कुछ समय जॉब भी की फिर छोड़ दी। उन्हीं पैसों से मैंने चार फिल्में निर्मित की। मैं अब तक 8 फिल्में बना चुका हूं। इसमें से गौ धर्मा बेस्ट फिल्मों में से एक है, जिसकी डीओपी सिद्धांत दुबे ने की। इसमें दिखाया गया है कि कैसे एक गरीब किसान मजबूर होकर अपनी गाय बेच देता है। जिसका उसे बाद में पछतावा होता है। इस फिल्म में अनुभवी ऐक्टर ने हमरा बहुत साथ दिया उन्होंने निशुल्क अपना अभिनय किया। जब आपके दिमाग में किसी फिल्म का आइडिया और कांसेप्ट आते ही एक अच्छी ह्रश्वलाङ्क्षनग के साथ बिना टाइ्स वेस्ट किए शूट पर लग जाएं। एक अच्छी फिल्म तैयार करने के लिए एक फिल्म मेकर को एडिटिंग, डीओपी, डायरेक्शन, लेखक, म्यूजिक सहित सब का ज्ञान होना चाहिए।
– उत्सव ठाकुर, फिल्म मेकर
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