वहीं कई महत्त्वपूर्ण भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, सागर, छिंदवाड़ा, सीहोर, टीकमगढ़, सतना और नर्मदापुरम जैसे जिले भी गायब हैं। बता दें छत्तीसगढ़ ने अध्यक्षों की नियुक्ति में बाजी मार ली है। जिला अध्यक्षों को लेकर तीन दिन के भीतर दूसरी बार सत्ता और संगठन के बीच मंथन हुआ। इस दौरान सीएम डॉ. मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद मौजूद रहे। इस दौरान 10 सबसे ज्यादा विवादित जिलों को लेकर चर्चा हुई और सिंगल नाम तय किए गए।
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2 जनवरी को करीब 40 नामों पर सहमति बनाकर सिंगल नाम तय कर दिल्ली भेजे गए। बताया जाता है कि 40 नामों में से भोपाल, इंदौर, जबलपुर जैसे जिले गायब हैं। इसके बाद से उन जिलों पर जल्द सहमति बनाने के लिए दबाव पड़ा है और फिर सत्ता और संगठन के बीच मंथन का दौर शुरू हो गया है।
देरी से सूची आई तो हंगामे के आसार
प्रदेश के हजारों कार्यकर्ता दो दिन से भोपाल में डेरा डाले हैं। संभावना थी कि छह की शाम तक तो सूची सामने आ ही जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सूत्रों के मुताबिक कई कार्यकर्ता इससे नाराज हैं। माना जा रहा है कि सूची में और देर हुई और पसंद के नेताओं को जिला अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो कई कार्यकर्ता हंगामा खड़ा कर सकते हैं।
‘माफिया नहीं होना चाहिए’
पांढुर्ना – जिलाध्यक्ष वैशाली महाले ने कहा है कि जो भी अध्यक्ष बने, वह माफिया नहीं होना चाहिए। महाले ने संकेत दिया कि भाजपा जिलाध्यक्ष पद पर बदलाव संभव है। उनका कहना है कि पार्टी की प्रतिष्ठा और जिले की कमान जिम्मेदार और सम्मानित व्यक्ति के हाथ में होनी चाहिए।