यही कारण रहा कि करीब दो साल बाद व्यक्ति ने आर्टिफिशियल कॉर्निया की मदद से डॉक्टरों को ए बी सी डी पढ़कर सुनाई। प्रबंधन का दावा है कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मप्र के सरकारी अस्पताल में होने वाली यह अपनी तरह की पहली सर्जरी है।
डॉ. भारती आहूजा ने की केराटोप्रोस्थेसिस तकनीक से सर्जरी
नेत्र विभाग की कॉर्निया स्पेशलिस्ट डॉ. भारती आहूजा ने मरीज में केराटोप्रोस्थेसिस तकनीक की मदद से मरीज को दोबारा देखने में सक्षम बनाया। इस जटिल सर्जरी से पहले की प्लानिंग में उनकी सहायता नेत्र विशेषज्ञ डॉ. एसएस कुबरे और डॉ. प्रतीक गुर्जर ने की। वहीं, एक घंटे चली इस जटिल सर्जरी में एनेस्थीसिया विभाग की टीम और सपोर्ट स्टाफ का अहम रोल रहा। ये भी पढ़ें: PM Kisan Yojana: ‘फार्मर रजिस्ट्री’ होने पर ही मिलेंगे किस्त के रुपए, तुरंत करें ये काम तीन चरण में हुई सर्जरी
डॉ. आहूजा ने बताया कि केराटोप्रोस्थेसिस एक जटिल ऑपरेशनल प्रक्रिया है। सबसे पहले मरीज की क्षतिग्रस्त कॉर्निया को हटाया। इसके बाद कृत्रिम कॉर्निया के सबसे पहले पार्ट फ्रंट प्लेट के साथ नेत्रदान में मिली कॉर्निया को लगाया गया। इसके बाद इसमें कृत्रिम कॉर्निया के दूसरे बैक प्लेट और तीसरे लॉकिंग प्लेट को जोड़ा गया। आंख की खराब हो चुकी संरचना में सुधार आया और मरीज में सर्जरी सफल रही।
इसलिए रेयर सर्जरी…
विशेषज्ञों के अनुसार यह उन लोगों में ही अपनाई जाती है, जिनकी नॉर्मल कॉर्निया ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सकता है। जिनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई हो। यह सर्जरी आयुष्मान भारत योजना में कवर नहीं है। इस कृत्रिम कॉर्निया के देश में गिने चुने मेनुफेक्चर हैं। वहीं, विदेश से मंगाने पर इसकी कीमत लाखों में पहुंच जाती है। हमीदिया में यह कॉर्निया डॉक्टरों के प्रयास से आई, उन्होंने भारत में इसे बनाने वाली कंपनी से संपर्क कर इसको मंगाया। खास बात यह रही कि इस सर्जरी के लिए मरीज पर सिर्फ 10 हजार का खर्च आया।
नेत्रदान जरूरी तभी होगी नई सर्जरी
आर्टिफिशियल कॉर्निया के साथ भी नेत्र दान में मिली कॉर्निया को लगाया जाता है। ऐसे में साफ है कि नेत्रदान के बिना लोगों की आंखों की रोशनी लौटाना संभव नहीं है। इस सर्जरी ने आगे कई लोगों में रोशनी लौटाने के नए द्वार खोले हैं। – डॉ. भारती आहूजा, कॉर्निया स्पेशलिस्ट, हमीदिया अस्पताल