डॉक्टरों को दिखाया लेकिन कोई असर नहीं हुआ। फिर कमला नेहरू अस्पताल में कुछ दिनों तक इलाज चला। वहां बच्चे को होश आया। कई दिनों तक तो बच्चों की बीमारी का पता ही नहीं लगा। समय के साथ बाकी बच्चों के मुकाबले इसकी ग्रोथ कम थी। बताया गया दिमागी विकास कम है। पति प्राइवेट जॉब करते हैं इस स्थिति में इलाज का खर्च बहुत मुश्किल से उठा पाते हैं। रानू ने बताया कि पूरा परिवार गैस पीडि़त है। सासु मां की तबियत भी ठीक नहीं रहती। वहीं ससुर जी का देहांत हो चुका है।
आज भी त्रासदी का बोझ
2 और 3 दिसम्बर को भोपाल गैस त्रासदी की 35वीं बरसी मनाने जा रहा है। 34 साल पहले यूनियन कार्बाइड कारखाने ने जो जहर उगला उससे आज भी लोग परेशान हैं। इनमें से रचित एक है। इसके माता पिता गैस पीडि़त हैं। ऐसे कई परिवार हैं जो खुद तो इस दर्द को झेल ही रहे हैं उसके साथ नई पीढ़ी में आ रहे विकारों के चलते उनकी पीड़ा दोगुनी हो गई।
उस पर इलाज के लिए न तो पर्याप्त सुविधाएं हैं और न ही चिकित्सक। गैस पीडि़तों के लिए बने सुपर स्पेशलिटी बीएमएचआरसी में कई विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी है। इस कारण कई विभाग बंद हैं। इसका खामियाजा गैस पीडि़त भुगत रहे हैं। उन्हें पर्याप्त इलाज नहीं मिल रहा है। ऐसे में निजी अस्पतालों में महंगे इलाज ने बोझ और बढ़ा दिया।