भोपाल से लगातार गायब हो रही हरियाली को देखते हुए कई जानकारों का मानना है कि इन विषम परिस्थितियों में शहर के बीचोंबीच स्थित बड़ी झील यानि बड़ा ताल करीब 1 से 2 दशकों के बाद गायब हो जाए मतलब ऐसी परिस्थितियों में करीब 15—20 सालों के बाद ये भी शायद ही बच सके।
इसके बाद यहां भी पानी को लेकर मारामारी वाली स्थिति पैदा हो सकती है यानि तालाबों के इस शहर में भी पानी के लिए हाहाकार मच सकता है।
करीब एक हजार साल पहले बनाए गए दुनिया भर में अपनी पहचान रखने वाले इस 31 किमी क्षेत्रफल में फैले बड़े ताल के आसपास ही पूरा भोपाल शहर बसा है।
यहां तक कहा जाता है कि शहर के बीचोंबीच जब इसका नीला पानी हिलता है तो पूरे शहर के बाशिंदे अपना तनाव भूलकर इसकी ऊंची-ऊंची लहरों को उठते-गिरते टकटकी लगाए देखने लगते हैं।
आज भी हर शाम इसके किनारों पर शहर के हजारों लोग सैलानियों की तरह जुटते हैं। यह झील शहर की करीब आधी आबादी को रोज पीने के लिए पानी देती है। लेकिन यह भी अब तेजी से प्रदूषित होता जा रहा है। इसे लेकर बीते दिनों कई संगठन नाराजगी भी जता चुके हैं।
जानकारों का मानना है कि तालाब के प्राकृतिक तंत्र को बीते सालों में काफी नुकसान पहुंचा है। इसके आसपास स्थित खेतों में रासायनिक घातक कीटनाशकों और उर्वरकों के बेतहाशा उपयोग और जलग्रहण क्षेत्र में धड़ल्ले से अतिक्रमण के साथ हो रहे निर्माण कार्यों ने झील की सेहत बिगाड़ कर रख दी है। इससे आने वाले 1 से 2 दशकों में तालाब का अस्तित्व ही खत्म हो सकता है।
इरीगेशन विभाग से रिटायर्ड हुई उमेश चंद्र श्रीवास्तव के अनुसार पिछले 20 सालों में इस बड़े ताल की उस तरह से देखभाल नहीं कि गई है, जैसी होनी चाहिए थी। तालाब का जलग्रहण क्षेत्र ही घटकर आधा रह गया है। ऐसे में यदि यही स्थितियां रही तो अब अगले 20-25 वर्षों में यह पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
श्रीवास्तव का कहना है कि जब आसपास के खेतों से रासायनिक पदार्थों से दूषित बारिश का पानी तालाब में आकर मिलता है तो वह साफ-शुद्ध पानी को भी प्रदूषित कर देता है। फिलहाल इसका पानी बी ग्रेड का है, लेकिन खेतों के पानी के आने से यह घटकर-सी या डी ग्रेड का हो जाता है।
उनके अनुसर यह तालाब इतना बड़ा है कि प्रदेश के दो जिलों में इसका फैलाव है। भोपाल और उसके पड़ोसी जिले सीहोर में इसके किनारे पर कई एकड़ के खेत हैं, जिनका सिंचाई का पूरा दारोमदार इसी बड़ी झील (अपर लेक) पर ही है।
इससे एक बड़े क्षेत्र में जलस्तर बनाए रखने में मदद मिलती है। सीहोर जिले में इसका जल ग्रहण क्षेत्र और भोपाल जिले में खासकर एफटीएल (फुल टैंक लेवल) है।
जानकारों का मानना है कि मास्टर प्लान की अनुशंसाओं को यदि जल्द ही अमल में नहीं लाया गया या और भी देर की गई तो करीब 2036 से 2040 तक यह तालाब उजड़ जाएगा।सबसे बड़ा खतरा
जानकारों के अनुसार तालाब को सबसे बड़ा खतरा जलग्रहण और प्रवाह क्षेत्र में हो रहे पक्के अतिक्रमण से है, अभी तो असर कम नजर आ रहा है पर आने वाले सालों में इसका बड़ा असर देखने को मिलेगा।
ये हैं कुछ खास सुझाव…
1. तालाब के फुल टैंक लेवल और कैचमेंट से रासायनिक खेती खत्म की जाए।
2. फुल टैंक लेवल से 300 मीटर तक सभी तरह के निर्माण रोके जाएं।
3. कैचमेंट और फुल टैंक लेवल पर 50 मीटर के दायरे में ग्रीन बेल्ट बने।
4. आसपास के भौंरी, बकानिया, मीरपुर और फंदा आदि क्षेत्रों में हाउसिंग, कमर्शियल और अन्य प्रोजेक्ट्स पर प्रतिबंध लगाया जाए।
5. कैचमेंट के 361 वर्ग किमी क्षेत्र में फार्म हाउस की अनुमति भी शर्तों के साथ ही दी जाए।
6. वीआईपी रोड पर खानूगांव से बैरागढ़ तक बॉटेनिकल गार्डन, अर्बन पार्क विकसित करें।
7. वन विहार वाले क्षेत्र में गाड़ियां प्रतिबन्धित कर यहां इको टूरिज्म को बढ़ावा दें।
8. स्मार्ट सिटी फंड की तरह अपर लेक फंड बनाइए।
9. कैचमेंट में पानी का प्राकृतिक बहाव सिमट रहा है, इसे बढ़ाने का जतन होना चाहिए।
10. अतिक्रमण पर तत्काल सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए।
जाने बड़े तालाब से जुड़ी कुछ रोचक बातें…
गौरतलब है कि एक हजार साल पहले परमार वंश के राजा भोज ने इसे बनवाया था। तब से अब तक यह हर साल अथाह जलराशि समेटे इसी तरह लोगों को लुभाता रहा है, लेकिन अब नए दौर के चलन के साथ इसे गन्दा किया जा रहा है, जिससे अब इसके वजूद पर ही सवाल खड़े हो गए हैं।
कुछ समय पहले आई केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की रिपोर्ट कहती है कि बड़ी झील के नजदीक बसे 88 गांवों सहित बैरागढ़ इलाके के करीब तीन हजार से ज्यादा घरों की गंदगी सीधे तौर पर तालाब में मिल रही है। इनमें कई कल-कारखाने भी शामिल हैं, जिनका अपशिष्ट रसायन भी इसमें मिल रहा है।
बैरागढ़ इलाके के पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा 12 साल पहले तक 8 मिलीग्राम प्रति लीटर थी जो अब घटकर केवल 4 मिलीग्राम प्रति लीटर के आसपास रह गई है। इसके अलावा यहां बायोलोजिकल ऑक्सीजन डिमांड 2.6 मिलीग्राम प्रति लीटर से बढ़कर कई गुनी हो गई है। जबकि विशेषज्ञों के अनुसार इसकी अधिकतम मात्रा 5 मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए।
सिकुड़ता जलग्रहण क्षेत्र…
कभी यह तालाब 31 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ था लेकिन कहा जा रहा है कि अब जलग्रहण कई किलोमीटर सिकुड़ गया है। बड़े और छोटे तालाब को जोड़कर पूरे जलक्षेत्र को भोज वेटलैंड कहा जाता है।
करीब दो दशक पहले मध्य प्रदेश सरकार ने इसे भोज वेटलैंड घोषित कर इसे संरक्षित करने और इसके कैचमेंट क्षेत्र को अतिक्रमण से मुक्त रखने और साफ-सुथरा बनाने के लिये करीब 300 करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि खर्च की पर भोपाल के लोग बताते हैं कि तालाब के आसपास मात्र सौन्दर्यीकरण के अलावा जलग्रहण बढ़ाने और उसे साफ बनाने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।
इसमें कोई शक नहीं कि बड़ा तालाब उन दिनों की बेहतरीन जल अभियांत्रिकी का बेजोड़ नमूना तो है ही, तब के लोगों में पानी के सदुपयोग की प्रवृत्ति को भी इंगित करता है।
हमारी खुशकिस्मती है कि हमारी पुरानी पीढ़ी ने 1000 साल पहले पानी का मोल समझा और एशिया के बड़े जलस्रोतों में से एक यह ताल हमें धरोहर के रूप में सौंपा पर आज हम क्या कर रहे हैं।
गर्मी के दिनों में बूंद-बूंद तरसते मध्य प्रदेश की इस सबसे बड़ी धरोहर को सहेजने और संवर्धित करने की जगह हम उसे गन्दगी और गाद से पाटने को आमादा हैं।