मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव शुक्रवार को राजधानी के मानस भवन में संबोधित कर रहे थे। इस आयोजन में मुख्यमंत्री ने अयोध्या के लिए 5 लाख लड्डुओं का प्रसाद भिजवाने के लिए ट्रकों को हरी झंडी दिखा रहे थे।
डॉ. मोहन यादव ने कहा कि हमारे सामने वर्तमान की अयोध्या नगरी का यह जो भौगोलिक स्वरूप है, उसे उसे 2 हजार साल पहले सम्राट विक्रमादित्य के काल में जीर्णोद्धार कर नया रूप दिया गया था। भव्य मंदिर भी सम्राट विक्रमादित्य द्वारा बनाया बनवाया गया था। वह युग फिर वापस आ रहा है। भगवान श्रीराम पुन: गर्भ गृह में विराजमान हो रहे हैं।
मोहन यादव ने कहा कि भगवान श्रीराम जी के समय को 17 लाख वर्ष बीत चुके हैं लेकिन उस समय की घटनाएं ऐसे लगती हैं कि वो घटनाएं कल की बात हो। भगवान श्रीराम जी के जीवन के हर प्रसंग से हमें सीखने की शिक्षा मिलती है।
यह है मान्यता
मान्यता है कि ईस्वी पूर्व अवंतिका नगरी (अब उज्जैन) के सम्राट विक्रमादित्य ने अयोद्या के राम मंदिर को बनवाया था। दो हजार साल पहले इसका जीर्णोद्धार किया गया था। विक्रमादित्य ने अयोध्या का वैभव भी लौटाया था। प्राचीन किताबों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि अयोध्या का जीर्णोद्धार अवंतिका के राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। विक्रमादित्य के पहले अयोध्या का वैभव करीब-करीब खत्म हो गया था। महाकवि कालिदास उस समय विक्रमादित्य के नवरत्नों में शामिल थे। कालिदास ने तब चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के अयोध्या के जीर्णोद्धार के संबंध में लिखा था। यह भी लिखा था कि यह 57 ईस्वी पूर्व राजा विक्रमादित्य ने श्रावस्ती के बौद्ध राजा को हराकर अयोध्या को उसका पुराना वैभव लौटाया था और सभी जमीदोज हो चुके देवालयों का जीर्णोद्धार करवाया था। कहा जाता है कि बाबर ने 1528 में जो राम मंदिर तोड़ा गया था वह सम्राट विक्रमादित्य ने बनवाया था।
प्राचीन विवरण के मुताबिक रामलला के जिस मंदिर की भव्यता को लेकर विमर्श चल रहा है, वह अपने मूल स्वरूप में अत्यंत भव्य था। इस मंदिर में एक सर्वोच्च शिखर और सात कलश थे। मंदिर के शिखर की चमक और ऊंचाई का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसे चालीस किमी दूर मनकापुर से भी देखा जा सकता था।
यह वर्णन ‘श्रीरामजन्मभूमि का रक्तरंजित इतिहास’ नामक किताब में है। इस ग्रंथ में वाल्मीकि रामायण के आधार पर बताया गया है कि रामजन्मभूमि पर्वत के समान उच्च, रत्नजड़ित महलों से दमकता और चमकता था। राजा विक्रमादित्य जब आखेट करते हुए अयोध्या आए तो उन्हें अयोध्या के साथ रामजन्म भूमि भी जीर्ण-शीर्ण हालत में मिली थी। इसके बाद रामजन्म भूमि पर भव्य मंदिर बनवाया गया। 84 स्तंभों का मंदिर बनाया। आसपास छह सौ एकड़ का विस्तृत मैदान था। जिसमें कई गार्डन और मनोहरी लताकुंज थे। उद्यान में दो सुंदर पक्के कूप थे। मंदिर के गोपुर में हर दिन सुबह भैरवी राग में शहनाई वादन होता था। विद्वान भगवान की मंगला आरती के समय श्री सूक्त और पुरुष सूक्त का सस्वर पाठ करते थे। उस समय मंदिर परिसर में भव्य अतिथि शाला और पाठशाला भी थी।