भारतीय राजनीति के इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी का संपूर्ण व्यक्तित्व शिखर पुरुष के रूप में दर्ज है। उनकी पहचान एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार व लेखक के रूप में है। लेकिन ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि अटलजी को ये सभी चीजें विरासत में मिली थीं, जिन्हें वक्त के साथ उन्होंने और परिपक्व किया। अटलजी के पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान थे। कृष्ण बिहारी वाजपेयी मुरैना गांव के सरकारी स्कूल में हेडमास्टर थे, जिनकी देखरेख में अटलजी ने गोरखी स्कूल से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की और BA के लिए तत्कालीन विक्टोरिया (अब महारानी लक्ष्मीबाई) कॉलेज में एडमिशन लिया।
अपने पिता की ही भांति अटलजी भी पढ़ने में काफी होशियार थे और सभी विषयों पर उनकी पकड़ काफी अच्छी थी। संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं पर बेहतर पकड़ के साथ अटलजी कविता लिखना भी शुरू कर चुका थे। अटलजी की कविताओं को उस वक्त काफी सराहना मिली, जिससे उन्हें और बेहतर लिखने के लिए बल मिला।
वकालत में फर्स्ट आने के लिए पिता ने लगाई थी शर्त
स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद अटलजी ने कानपुर के डीएवी कॉलेज में एडमिशन ले लिया। यहां से एम.ए. की परीक्षा पास करने के बाद अटलजी ने पढ़ाई नहीं छोड़ी और वहीं पर एल.एल.बी. में एडमिशन लिया। इसी बीच अटलजी के पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी सरकारी स्कूल से रिटायर हो चुके थे। जवान बेटा काफी दिनों से आंखों से दूर था। बचपन से जिस पौधे को उन्होंने बड़े जतन से सींचा था उसके बारे में सोच सोच कर चिन्तित हो उठते थे, डर था कि कहीं उनका बेटा अटल बिहारी वाजपेयी बाहरी दुनिया की चकाचौंध में पड़कर अपने लक्ष्य से विचलित न हो जाए।
फिर एक कृष्ण बिहारी वाजपेयी ने कुछ सोचा और सीधे कानपुर जा पहुंचे। यहां अटल बिहारी वाजपेयी के ही कॉलेज पहुंचकर उन्होंने भी एल.एल.बी में एडमिशन ले लिया। एडमिशन लेने के बाद वे सीधे अपने बेटे के आवास पर पहुंचे। पिता को अचानक आया देख अटलजी चौंके। उनकी आंखों में ढ़ेर सारे सवाल देख कर अटलजी के पिता ने कहा कि बेटा, मैंने तुम्हारे ही कॉलेज में एल.एल.बी. में दाखिला ले लिया है, अब देखते हैं कि कौन फर्स्ट आता है।
एक ही कॉलेज, एक ही सेक्शन
अपने पिता की इस शर्त को सुनकर अटलजी हैरत में पड़ गए। उन्हें लगा था कि पिता उनसे मिलने के लिए आए हैं, लेकिन यहां तो बात कुछ और ही थी। यहां से अटलजी और उनके पिता के बीच एक ऐसी दौड़ शुरू हुई जो कोई सोच भी नहीं सकता था। अटलजी और उनके पिता दोनों एक ही सेक्शन में थे, इसलिए पढ़ाई के दौरान अजीबोगरीब स्थिति बनने लगी। पिता और पुत्र को एक ही कक्षा में देखकर हर कोई हैरान हो जाता था।
वहीं जब पिता कक्षा में नहीं होते तो लोग अटल से उनके बारे में पूछते और जब अटल कक्षा में नहीं आते तो पिता से भी ऐसे ही सवाल पूछे जाते। कुछ समय तक ऐसे ही चलता रहा, बाद में अटलजी ने आवेदन देकर अपना सेक्शन अलग करवा लिया। इस तरह दोनों पिता पुत्र एल.एल.बी. की पढ़ाई साथ करते रहे। हालांकि कहानी यहां पर खत्म नहीं होती है। सबसे चौंकाने वाली बात ये थी जब एल.एल.बी. की पढ़ाई पूरी हुई और नतीजे आए तो अटलजी के पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी के नंबर अटलजी से भी ज्यादा थे।